यशोदा जयंती, माता यशोदा का जन्मदिन उत्सव है। यशोदा भगवान कृष्ण और नंदा की पत्नी के लिए पालक हैं। यशोदा जयंती उत्तर भारतीय चंद्र कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष षष्ठी को मनाई जाती है। भक्तों को जल्दी उठना चाहिए और यशोदा जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहिए। उन्हें इस दिन माता यशोदा के साथ-साथ भगवान कृष्ण की भी पूजा करनी चाहिए। यह दिन भगवान कृष्ण के गांव गोकुल में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है, जहां यशोदा माता उनके और नंदा के साथ रहती थीं। मंदिरों में भी उनके लिए प्रार्थना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से संतान प्राप्ति की कामना रखने वालों को लाभ होता है।
यशोदा जयंती पर माताएं उपवास रख संतान के सुख के लिए मंगलकामनाएं करती हैं। मान्यता है कि इस दिन संतान सुख से वंचित लोग अगर माता यशोदा का व्रत रखकर विधिपूर्वक पूजा करते हैं, उन्हें भी संतान सुख प्राप्त हो जाता है। कहा जाता है कि माता यशोदा नाम ही यश और हर्ष देने वाला है, जिसके चलते इस व्रत को रखने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनके जीवन की कठिनाइयों में कमी आती है।
यशोदा जयंती का शुभ मुहूर्त:
षष्ठी तिथि प्रारंभ- 4 मार्च, रात 12 बजकर 21 मिनट से।
षष्ठी तिथि समाप्त- रात 09 बजकर 58 मिनट पर।
यशोदा जयंती पूजन विधि:
प्रातःकाल स्नान आदि कर मां यशोदा का ध्यान करते हुए भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति सामने रखकर दीपक जलाएं। मां यशोदा जी के नाम की लाल चुनरी पूजा स्थल पर कलश पर रखें। मां को मिष्ठान और भगवान कृष्ण को मक्खन का भोग लगाएं। गायत्री मंत्र के जाप के साथ भगवान विष्णु की आरती करें। अंत में मन ही मन अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
यशोदा जयंती की पौराणिक कथा
माना जाता है कि अपने पूर्व जन्म में माता यशोदा ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वर मांगने को कहा। माता ने बोला हे ईश्वर मेरी तपस्या तभी पूर्ण होगी जब आप मुझे मेरे पुत्र के रूप में प्राप्त होंगे। भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें कहा कि आने वाले काल में वासुदेव एवं देवकी मां के घर जन्म लूंगा, लेकिन मुझे मातृत्व का सुख आपसे ही प्राप्त होगा। समय के साथ ऐसा ही हुआ एवं भगवान कृष्ण देवकी एवं वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में प्रकट हुए, क्योंकि कंस को मालूम था कि उनका वध देवकी एवं वासुदेव की संतान द्वारा ही होगा तो उन्होंने अपनी बहन एवं वासुदेव को कारावास में डाल दिया। जब कृष्ण का जन्म हुआ तो वासुदेव उन्हें नंद बाबा एवं यशोदा मैय्या के घर छोड़ आए ताकि उनका अच्छे से पालन-पोषण हो सके। तत्पश्चात माता यशोदा ने ही कृष्ण को पाल-पोसकर बड़ा किया और मातृत्व का सुख प्राप्त किया।
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