धर्म-कर्म

मंडूक तंत्र व श्रीयंत्र पर बना हुआ है यह शिव मंदिर

यह मंदिर काफी रोचक है। पूरा मंदिर मंडूक तंत्र (Manduk Tantra) और श्रीयंत्र (Shriyantra) पर बना हुआ है। मेंढक मंदिर में स्थापित नंदी जी की मूर्ति खड़ी हुई है। जिसके लिए इस मंदिर की पूरे देश में अलग ही पहचान है। मंदिर का निर्माण करीब 230 वर्ष से भी अधिक पहले हुआ था। इसका निर्माण तत्कालीन ओयल स्टेट के राजा बख्श सिंह ने करवाया था।

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से 12 किलोमीटर दूर कस्बा ओयल के मोहल्ला शिवाला में स्थित मेंढक मंदिर मंडूक तंत्र और श्रीयंत्र पर बना हुआ है। इस मंदिर (Shiv Mandir) की पूरे देश में अलग छाप और पहचान है। यहां प्रतिदिन कस्बे के साथ ही आसपास के गांवों से लेकर शहरों के लोग पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। महाशिवरात्रि और सावन के महीने में यहां आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है।

यह मंदिर काफी रोचक है। पूरा मंदिर मंडूक तंत्र (Manduk Tantra) और श्रीयंत्र (Shriyantra) पर बना हुआ है। मेंढक मंदिर में स्थापित नंदी जी की मूर्ति खड़ी हुई है। जिसके लिए इस मंदिर की पूरे देश में अलग ही पहचान है। मंदिर का निर्माण करीब 230 वर्ष से भी अधिक पहले हुआ था। इसका निर्माण तत्कालीन ओयल स्टेट के राजा बख्श सिंह ने करवाया था।

बताया जाता है कि उस समय राजा ने युद्ध में जीते हुए धन के सदुपयोग और राज्य में सुख शांति व समृद्धि के लिए इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। यह भी कहा जाता है कि उस वक्त अकाल से बचने के लिए तांत्रिकों की सलाह के बाद इसका निर्माण करवाया गया था। यह मंदिर अपनी ऐतिहासिक व प्राचीनता के लिए जाना जाता है।

दिन में तीन बार रंग बदलता है शिवलिंग
इसमें स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है। यह शिवलिंग नर्मदा नदी से लाया गया था, इसलिए इसे नर्मदेश्वर जी महाराज का नाम भी दिया गया है। पूरे मंदिर पर राजस्थानी स्थापत्य कला प्रदर्शित की गई, जो कि अपने में विशेष है। मंदिर के सबसे ऊपर लगा छत्र पूर्व में सूर्य की किरणों की दिशा में घूमता रहता था जो अब क्षतिग्रस्त हो गया है।

मंदिर के बाहरी दीवारों पर शव साधना करती उकेरी मूर्तियां इसे तांत्रिक मंदिर साबित करती हैं। ओयल शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था। यहां के शासक भगवान शिव के उपासक थे। इस मंदिर की वास्तु परिकल्पना कपिला के एक महान तांत्रिक ने की थी। तंत्रवाद पर आधारित इस मंदिर की वास्तु संरचना अपनी विशेष शैली के कारण लोगों का मनमोह लेती है।

मंदिर की खासियत
यह पूरा शिव मंदिर एक विशालकाय मेंढक की पीठ पर बना है। पहले नीचे एक मगरमच्छ के मुंह में मछली बनी है, फिर मेंढक और उसके ऊपर चारों वेद रुपी चार सीढ़ियां, इसके पश्चात आठ पंखुडियों वाला कमल पुष्प व उसके ऊपर अष्टकोणीय तांत्रिक पूजन यंत्र बना है। मंदिर के चारों ओर चार गुंबद भी बने हैं। मंदिर के मुख्य द्वार के पास जमीन से करीब 50 फीट ऊपर एक कुआं बना है, जिसमें पानी जमीन के स्तर से भी ऊपर उपलब्ध रहता है, जो सभी को आर्श्चचकित करता है।

वहीं मंदिर के अन्दर एक विशाल श्वेत शिला के अरघे पर नर्मदेश्वर महादेव विराजमान हैं। पास ही एक विशालकाय नंदी महाराज की भी मूर्ति स्थापित है। मंदिर के चारों ओर कई देवी देवताओं व भक्तजनों की साधनाएं करती मूर्तियां भी स्थापित हैं। वहीं मंदिर और चारों गुम्बदों में मनोरम कलाकृतियां भी बनी हैं। मंदिर के शीर्ष पर स्थापित कलश पर अष्टधातु निर्मित चक्र के बीच में नटराज की मूर्ति विराजमान है। मान्यता है कि पहले मंदिर का छत भी सूर्य की रोशनी के साथ घूमता था, लेकिन अब क्षतिग्रस्त है।

बेहद खूबसूरत और अदभुत इस मेंढक मंदिर को यूपी की पर्यटन विभाग ने भी चिन्हित कर रखा है। दुधवा टाइगर रिजर्व कॉरीडोर में इस मंदिर को भी विश्व मानचित्र पर लाने के प्रयास जारी हैं।