धर्म-कर्म

जानें क्यों हुआ भगवान विष्णु और महादेव में महाप्रलयंकारी युद्ध!

देवाधिदेव महादेव शिव को भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) का आराध्य और श्री हरि विष्णु (Shri Hari Vishnu) को देवाधिदेव महादेव (Mahadev) का आराध्य बताया जाता रहा है। भगवान विष्णु अगर जगत का पालन करते हैं तो भगवान शिव (Bhagwan Shiv) इस संसार का संहार करते हैं। दोनों में कोई न बड़ा है और न ही छोटा है।

देवाधिदेव महादेव शिव को भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) का आराध्य और श्री हरि विष्णु (Shri Hari Vishnu) को देवाधिदेव महादेव (Mahadev) का आराध्य बताया जाता रहा है। भगवान विष्णु अगर जगत का पालन करते हैं तो भगवान शिव (Bhagwan Shiv) इस संसार का संहार करते हैं। दोनों में कोई न बड़ा है और न ही छोटा है।

ब्रह्मा के साथ मिलकर भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान शिव त्रिदेवों की संकल्पना और कार्यों को पूर्ण करते हैं। लेकिन फिर भी कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं जब भगवान श्री हरि विष्णु को भगवान शिव ने संकटों से उबारा है तो कभी भगवान शिव को श्री हरि विष्णु ने संकटों से उद्धार किया है। इन दोनों ही लीलाओं की गाथाएं हैं।

जब माता सती के वियोग में भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु अपने सुदर्शन चक्र का प्रयोग करते हैं तो कभी भोलेनाथ को भस्मासुर से बचाने के लिए विष्णु मोहनी का रुप भी धारण करते हैं। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियां भी बनी हैं जब भगवान श्री हरि विष्णु को नियंत्रित करने के लिए भगवान भोलेनाथ को आगे आना पड़ा है।

ऐसी ही एक कथा है कि भगवान श्री हरि विष्णु के महावतार नृसिंह भगवान के अवतरण की अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए श्री हरि विष्णु भयंकर रौद्ररुप में प्रगट होते हैं। इस अवतार में उनके शरीर का उपरी भाग शेर का और शरीर के नीचे का भाग मानव का है। नृसिंह भगवान अति क्रोध में प्रगट होते हैं और अपने रौद्र रुप में ही हिरण्यकश्यप को अपने नखो से चीर डालते हैं

हिरण्यकश्यप के वध के बावजूद नृसिंह भगवान का क्रोध शांत नहीं होता है। एक वक्त ऐसा आता है, जब उनके अंदर के करुणा का विष्णु तत्व भी समाप्त हो जाता है। ऐसा लगने लगता है कि नृसिंह भगवान अपने रौद्र रुप से तीनों लोकों को खत्म कर देंगे। भगवान विष्णु के करुणा रुपी तत्व के खत्म होने के बाद नृसिंह भगवान को नियंत्रित करना लगभग असंभव हो जाता है।

तत्पश्चात देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव अपने गण वीरभद्र को नियंत्रित करने के लिए भेजते हैं। वीरभद्र पहले तो नृसिंह भगवान की स्तुति करते हैं और उन्हें अपना क्रोध शांत करने के लिए कहते हैं। लेकिन नृसिंह भगवान वीरभद्र पर ही आक्रमण कर देते हैं। दोनों के बीच महान युद्ध शुरु होता है। इस युद्ध में वीरभद्र पराजित हो जाते हैं। नृसिंह भगवान का क्रोध और भी बढ़ने लगता है। तब भगवान भोलेनाथ एक ऐसे महान रौद्र रुप में प्रगट होते हैं जो आज तक किसी ने नहीं देखा था।

लिंग पुराण की कथा के अनुसार भगवान शिव के शरीर का आधा भाग मृग का था और शेष भाग शरभ पक्षी का। पौराणिक कथाओं में शरभ पक्षी का जिक्र आता है। महाभारत में भी शरभ नामक एक पक्षी का जिक्र है जिसके आठ पैर होते हैं और शेर की तरह एक लंबी पूंछ भी होती है। शरभ पक्षी के बारे में कहा गया है कि वो शेर को भी लेकर उड़ सकता था। भगवान शिव के इस अवतार को शरभ अवतार कहा गया।

लिंग पुराण के अनुसार भगवान शिव शरभावतार में भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार से युद्ध शुरु करते हैं और जब युद्ध लंबा चलता है तो वो नृसिंह भगवान को अपने पूंछ में लेकर पाताल में चले जाते हैं। लंबे समय तक शरभावतार की पूंछ में जकड़े रहने के बाद जब नृसिंह भगवान की चेतना लौटती है और क्रोध समाप्त होता है तो वो भगवान शिव को पहचान जाते हैं। इसके बाद भगवान शिव की स्तुति नृसिंह भगवान करते हैं।

चूंकि भगवान नृसिंह में विष्णु तत्व समाप्त हो चुका था इसलिए फिर से भगवान शिव के आह्वान पर विष्णु नृसिंह भगवान के इस अवतार को समाप्त कर देते हैं। इन्ही नृसिंह भगवान के शरीर की त्वचा ( जो कि बाघ की थी ) को भगवान शिव अपना आसन बनाते हैं। इसके साथ ही नृसिंह भगवान के अवतरण का उद्धेश्य खत्म हो जाता है। इस कथा को न केवल लिंग पुराण में उल्लेख है बल्कि शिव महापुराण में भी इस कथा का विस्तार से वर्णन है।