आज एक विशेष शिव मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जिसे मनुष्य नहीं, बल्कि पारलौकिक शक्तियों ने बनाया है। यह एलोरा (Ellora) का कैलाश मंदिर (Kailash Temple) है जो कि औरंगाबाद (Aurangabad) में है। यह मंदिर अत्यंत विशाल और अद्भुत है। यह जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर का निर्माण एक बड़े पहाड़ को ऊपर से नीचे की ओर तराशते हुए किया गया है। जो कि आज के युग में भी नामुकिन सी बात लगती है। यही नहीं मंदिर के निर्माण समय को लेकर भी रहस्य अभी तक बरकरार है।तो जानिए, इस मंदिर का पूरा रहस्य और आखिर क्यों विज्ञान भी इस मंदिर की गुत्थियां नहीं सुलझा पाया?
कैलाश मंदिर जितना रहस्यमयी है उतनी ही अचरज भरा और इसे बनाने की कला भी है। इस मंदिर में किसी भी तरह की ईंट या चूने का इस्तेमाल नहीं किया गया है। कहते हैं कि इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था और इसे बनाने में केवल 18 साल लगे थे। जबकि पुरातत्वविज्ञानियों की मानें तो 4 लाख टन पत्थर को काटकर किए गये इस मंदिर का निर्माण इतने कम समय में संभव ही नहीं है।
उनकी मानें तो अगर 7 हजार मजदूर डेढ़ सौ वर्षों तक दिन-रात काम करें तो ही इस मंदिर का निर्माण हो सकता है। जो कि नामुमकिन सी बात है। ऐसे में इस मंदिर का निर्माण मनुष्यों द्वारा तो इतने कम समय में संभव ही नहीं है।
भगवान शिव के दिए अस्त्र से हुआ मंदिर निर्माण
मंदिर को लेकर जानकारी मिलती है कि इसका निर्माण राष्ट्रकुल के राजा कृष्ण प्रथम ने कराया था। कहा जाता है कि एक बार राजा गंभीर रूप से बीमार हो गए। तमाम इलाज के बाद भी वह स्वस्थ नहीं हो पा रहे थे तब रानी ने भोलेनाथ से प्रार्थना की कि वह राजा को स्वस्थ कर दें। उनके स्वस्थ होते ही वह मंदिर का निर्माण करवाएंगी और मंदिर का शिखर देखने तक व्रत रखेंगी। तब राजा स्वस्थ हो गए लेकिन रानी को बताया गया कि मंदिर का निर्माण और शिखर बनने में तो कई वर्ष लग जाएंगे। ऐसे में इतने वर्षों तक व्रत रख पाना संभव नहीं होगा। तब रानी ने भोलेनाथ से मदद मांगी।
मान्यता है कि तब उन्हें भूमिअस्त्र मिला। जो कि पत्थर को भी भाप बना सकता था। इस अस्त्र का जिक्र ग्रंथों में भी मिलता है। मान्यता है कि उसी अस्त्र से इस मंदिर का निर्माण हुआ और मंदिर बनने के बाद उस अस्त्र को मंदिर के नीचे गुफा में रख दिया गया। दुनियाभर के विज्ञानी भी यही मानते हैं कि इतने कम समय में पारलौकिक शक्तियों द्वारा ही ऐसे मंदिर का निर्माण संभव है। आज के अत्याधुनिक समय में भी ऐसा मंदिर इतने कम समय में और एक पत्थर को ऊपर से नीचे तराशकर बनाना संभव नहीं है।
पुरातत्वविज्ञानी भी हुए नतमस्तक
मंदिर के नीचे कई हाथियों का निर्माण किया गया है। मान्यता है कि मंदिर पूरी तरह से उन्हीं के ऊपर टिका हुआ है। मंदिर में सौ से ज्यादा पैनल हैं। इनके ऊपर भगवान विष्णु के कई रूप औेर महाभारत के दृश्य भी चित्रित किया गया है।
इस मंदिर की दीवारों पर अलग ही तरह की लिपियों का प्रयोग किया गया है। इनके बारे में आज तक कोई कुछ भी समझ नहीं पाया है। कहा जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान अंग्रेजों ने मंदिर के नीचे गुफाओं पर शोध कार्य शुरू किया। लेकिन वहां हाई रेडियोऐक्टिविटी के चलते शोध कर पाना मुश्किल हो गया।
मान्यता है कि वहां पर भूमि अस्त्र और मंदिर निर्माण में प्रयोग किए गये अस्त्र हो सकते हैं। इसके बारे में सुनकर अंग्रेजों ने यह रिसर्च बंद करके इन गुफाओं को बंद कर दिया था। बता दें कि आजादी मिलने के बाद भी इन गुफाओं को बंद ही रखा गया है। पुरातत्वविज्ञानियों का मानना है कि इन गुफाओं के आगे भी दूसरी दुनिया हो सकती है। जहां से यह रेडियोऐक्टिव किरणें आती हैं, क्योंकि यह किरणें गुफाओं में किसी एक स्रोत से ही आती हैं।