धर्म-कर्म

Bhagwan Vishnu का प्रमुख आयुध ‘श्री सुदर्शन-चक्र’ की कथा

‘श्री सुदर्शन-चक्र’ भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) जी का प्रमुख आयुध है, जिसके माहात्म्य की कथाएँ पुराणों में स्थान-स्थान पर दिखाई देती है। मत्स्य-पुराण के अनुसार एक दिन सूर्य देव भगवान ने विश्वकर्मा जी से निवेदन किया-कृपया मेरे प्रखर तेज को कुछ कम कर दें, क्योंकि अत्यधिक उग्र तेज के कारण प्रायः सभी प्राणी सन्तप्त हो […]

‘श्री सुदर्शन-चक्र’ भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) जी का प्रमुख आयुध है, जिसके माहात्म्य की कथाएँ पुराणों में स्थान-स्थान पर दिखाई देती है। मत्स्य-पुराण के अनुसार एक दिन सूर्य देव भगवान ने विश्वकर्मा जी से निवेदन किया-कृपया मेरे प्रखर तेज को कुछ कम कर दें, क्योंकि अत्यधिक उग्र तेज के कारण प्रायः सभी प्राणी सन्तप्त हो जाते हैं।

विश्वकर्मा जी ने सूर्य को चक्र-भूमि पर चढ़ा कर उनका तेज कम कर दिया। उस समय सूर्य से निकले हुए तेज-पुञ्जों को ब्रह्माजी ने एकत्रित कर भगवान् विष्णु के ‘सुदर्शन-चक्र’ के रुप में, भगवान शिव के त्रिशूल रुप में तथा इन्द्र के वज्र के रुप में परिणत कर दिया।

पद्म-पुराण के अनुसार भिन्न-भिन्न देवताओं के तेज से युक्त ‘सुदर्शन-चक्र’ को भगवान शिव ने श्रीकृष्ण जी को दिया था। वामन-पुराण के अनुसार भी इस कथा की पुष्टि होती है। शिव-पुराण के अनुसार खाण्डव-वन को जलाने के लिए भगवान शंकर ने श्रीकृष्ण को ‘सुदर्शन-चक्र’ प्रदान किया था। वामन-पुराण के अनुसार दामासुर नामक भयंकर असुर को मारने के लिए भगवान शंकर ने श्री विष्णु को ‘सुदर्शन-चक्र’ प्रदान किया था।

बताया जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा था कि आप लोगों के पास जो अस्त्र हैं, उनसे असुरों का वध नहीं किया जा सकता। आप सब अपना-अपना तेज दें। इस पर सभी देवताओं ने अपना-अपना तेज दिया। सब तेज एकत्र होने पर भगवान विष्णु ने भी अपना तेज दिया।

फिर महादेव शंकर ने इस एकत्रित तेज के द्वारा अत्युत्तम शस्त्र बनाया और उसका नाम ‘सुदर्शन-चक्र’ रखा। भगवान् शिव ने‘सुदर्शन-चक्र’ को दुष्टों का संहार करने तथा साधुओं की रक्षा करने के लिए श्री विष्णु को प्रदान किया।

हरि-भक्ति-विलासमें लिखा है कि ‘सुदर्शन-चक्र’ बहुत पूज्य है। वैष्णव लोग इसे चिह्न के रुप में धारण करें। वहीं, गरुड़-पुराण’ में ‘सुदर्शन-चक्र’ का महत्त्व बताया गया है और इसकी पूजा-विधि दी गई है।

श्रीमद्-भागवत में ‘सुदर्शन-चक्र’ की स्तुति इस प्रकार की गई है-हे सुदर्शन! आपका आकार चक्र की तरह है। आपके किनारे का भाग प्रलय-कालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है। आप भगवान श्रीविष्णु की प्रेरणा से सभी ओर घूमते हैं। जिस प्रकार अग्नि वायु की सहायता से शुष्क तृण को जला डालती है, उसी प्रकार आप हमारी शत्रु-सेना को तत्काल जला दीजिए।

विष्णु-धर्मोत्तर-पुराण में ‘सुदर्शन-चक्र’ का वर्णन एक पुरुष के रुप में हुआ है। इसकी दो आँखें तथा बड़ा-सा पेट है। चक्र का यह रुप अनेक अलंकारों से सुसज्जित से है।