धर्म-कर्म

अलौकिक शक्तिपीठ: देवी के आशीर्वाद से पांडवों को मिली थी महाभारत के युद्ध में विजय

भारत में कई ऐसे स्थान हैं, जिनका नामकरण वहां के कुल देवता या देवी के नाम पर हुआ है। बिहार (Bihar) के भोजपुर (Bhojpur) जिले का मुख्यालय आरा भी एक ऐसा ही शहर है, जिसका नामकरण अरण्य देवी (Aranya Devi) के नाम पर हुआ है। यहां के लोग इन्हें आरन देवी (Aaran Devi) भी कहते हैं।

भारत में कई ऐसे स्थान हैं, जिनका नामकरण वहां के कुल देवता या देवी के नाम पर हुआ है। बिहार (Bihar) के भोजपुर (Bhojpur) जिले का मुख्यालय आरा भी एक ऐसा ही शहर है, जिसका नामकरण अरण्य देवी (Aranya Devi) के नाम पर हुआ है। यहां के लोग इन्हें आरन देवी (Aaran Devi) भी कहते हैं। चौक इलाके में स्थित यह मंदिर काफी प्राचीन है, हालांकि इसकी स्थापना कब हुई थी, इसकी निश्चित जानकारी नहीं है।

इस मंदिर में दो मूर्तियां हैं। एक बड़ी और एक छोटी मूर्ति। मंदिर के मुख्य पुजारी और व्यवस्थापक संजय मिश्र उर्फ संजय बाबा कहते हैं कि जो छोटी वाली मूर्ति है, वह आदिशक्ति की है। यह स्वयंभू हैं। सत्ययुग में राजा हरिश्चंद्र से भी पहले आदिशक्ति यहां अवतरित हुई थीं।

युगों पहले यह स्थान वनों से घिरा हुआ था। चारों तरफ राक्षसों का आतंक था। वनों में रहने वाले ऋषि-मुनि इन राक्षसों के आतंक से त्रस्त थे। उन्हें राक्षसों से मुक्ति दिलाने के लिए देवी यहां अवतरित हुईं। इन्हें ‘वन देवी’ भी कहा जाता था। पहले मंदिर एक किले में स्थित था, इसलिए इन्हें ‘किला देवी’ भी कहा जाता था।भगवान राम भी इस रास्ते से होते हुए जनकपुर गए थे। पांडव भी अपने वनवास के दौरान इस स्थान पर आए थे और भगवती की पूजा की थी। भगवती ने उन्हें युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया और निर्देश दिया कि विजय के बाद वे उनके जैसी ही एक देवी की स्थापना करें।

महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव आए और यहां बड़ी वाली मूर्ति की स्थापना की।संजय बाबा के मुताबिक, यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। कई पुराने धार्मिक ग्रंथों में इनका उल्लेख है। इस मंदिर के बारे में कई किवदंतियां मशहूर हैं। द्वापर युग में यह क्षेत्र रतनपुर के नाम से जाना जाता था। यहां के राजा मोरध्वज देवी के अनन्य उपासक थे।उनका राज्य हर प्रकार से समृद्ध था, पर उनकी कोई संतान नहीं थी। देवी के आशीर्वाद से उन्हें एक बेटा हुआ। कई वर्ष गुजर गए। एक रात राजा मोरध्वज ने सपने में देखा कि देवी उनके पुत्र को मांग रही हैं। राजा ने इसे देवी की इच्छा मान पुत्र को अर्पित करने का फैसला किया।

राजा और रानी बेटे को लेकर देवी की वेदी के पास गए और पुत्र को बीच में रख कर जैसे ही उसके सिर पर आरा चलाना शुरू किया, देवी स्वयं प्रकट हो गईं और तीनों को आशीर्वाद देकर अंर्तध्यान हो गईं।छोटी प्रतिमा महालक्ष्मी का रूप हैं। इनके पूजन व ध्यान से व्यवसाय, नौकरी व सौभाग्य प्राप्त होता है। बड़ी प्रतिमा सरस्वती का रूप हैं। ये संतान, विद्या, बुद्धि देती हैं और रोग-व्याधियों का नाश करती हैं।