राम नवमी (Ram Navami) से लगभग एक माह बाद वैशाख शुक्ल नवमी तिथि को सीता जी का प्रकाट्य हुआ था, इसलिए इसे जानकी जयंती (Janki Jayanti) या सीता नवमी (Sita Navami) कहते हैं। इस दिन माता सीता की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। जानिए ज्योतिष के अनुसार, सीता नवमी की तिथि, पूजा मुहूर्त और कथाओं के बारे में।
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत 9 मई दिन सोमवार को शाम 6 बजकर 32 मिनट पर होगी। इस तिथि का समापन अगले दिन 10 मई मंगलवार को शाम 7 बजकर 24 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर सीता नवमी या जानकी जयंती 10 मई को मनाई जाएगी।
शुभ मुहूर्त
जानकी जयंती का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 57 मिनट से दोपहर 01 बजकर 39 मिनट तक है. दोपहर में सीता नवमी का क्षण 12 बजकर 18 मिनट पर है. जानकी जयंती के दिन का शुभ मुहूर्त कुल 02 घण्टा 42 मिनट का है।
सीता नवमी या जानकी जयंती के दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और माता सीता की पूजा करती हैं। उनकी कृपा से उनको अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है, जिससे उनके पति दीर्घायु होते हैं।
पौराणिक शास्त्रों की कथा
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुष्य नक्षत्र के मध्याह्न काल में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि तथा हल के नोक को भी ‘सीता’ कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम ‘सीता’ रखा गया था। अत: इस पर्व को ‘जानकी नवमी’ भी कहते हैं।
मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है एवं राम-सीता का विधि-विधान से पूजन करता है उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है। इस दिन माता सीता के मंगलमय नाम श्री सीतायै नमः और श्रीसीता-रामाय नमः का उच्चारण करना लाभदायी होता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक वेदवादी श्रेष्ठ धर्मात्मा ब्राह्मण निवास करते थे। उनका नाम देवदत्त था। ब्राह्मण की बड़ी सुंदर रूपगर्विता पत्नी थी, उसका नाम शोभना था। ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अन्य किसी ग्राम में भिक्षाटन के लिए गए हुए थे। इधर ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई।
पूरे गांव में उसके इस निंदित कर्म की चर्चाएं होने लगीं। परंतु उस दुष्टा ने गांव ही जलवा दिया। दुष्कर्मों में रत रहने वाली वह दुर्बुद्धि जब मरी तो उसका अगला जन्म चांडाल के घर में हुआ। पति का त्याग करने से वह चांडालिनी बनी और ग्राम जलाने से उसे भीषण कुष्ठ हो गया तथा व्यभिचार-कर्म के कारण वह अंधी भी हो गई।
इस प्रकार वह अपने कर्म के योग से दिनों दिन दारुण दुख प्राप्त करती हुई देश-देशांतर में भटकने लगी। एक बार दैवयोग से वह भटकती हुई कौशलपुरी पहुंच गई। संयोगवश उस दिन वैशाख मास, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी, जो समस्त पापों का नाश करने में समर्थ है। सीता नवमी के पावन उत्सव पर भूख-प्यास से व्याकुल वह प्रार्थना करने लगी- हे सज्जनों! मुझ पर कृपा कर कुछ भोजन सामग्री प्रदान करो। मैं भूख से मर रही हूं। ऐसा कहती हुई वह स्त्री श्री कनक भवन के सामने बने एक हजार पुष्प मंडित स्तंभों से गुजरती हुई उसमें प्रविष्ट हुई। उसने पुनः पुकार लगाई-भैया! कोई तो मेरी मदद करो, कुछ भोजन दे दो।
उसकी पुकार सुनकर एक भक्त ने उससे कहा- देवी! आज तो सीता नवमी है, भोजन में अन्न देने वाले को पाप लगता है, इसीलिए आज तो अन्न नहीं मिलेगा। कल पारण करने के समय आना तो ठाकुर जी का प्रसाद भरपेट मिलेगा, लेकिन वह नहीं मानी। अधिक कहने पर भक्त ने उसे तुलसी एवं जल प्रदान किया। वह पापिनी भूख से मर गई। किंतु इसी बहाने अनजाने में उससे सीता नवमी का व्रत पूरा हो गया।
व्रत के प्रभाव से वह पापिनी समस्त पापों से मुक्त होकर निर्मल होकर स्वर्ग में आनंदपूर्वक अनंत वर्षों तक रही। तत्पश्चात् वह कामरूप देश के महाराज जयसिंह की महारानी काम कला के नाम से विख्यात हुई। उस महान साध्वी ने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाए, जिनमें जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई।
सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी का पूजन-अर्चन करते है, उन्हें सभी प्रकार के सुख-सौभाग्य प्राप्त होते हैं। इस दिन जानकी स्तोत्र, रामचंद्रष्टाकम्, रामचरित मानस आदि का पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।