धर्म-कर्म

गणेशजी की पूजा का महत्वपूर्ण केंद्र श्री मयूरेश्वर मंदिर

श्री मयूरेश्वर मंदिर (Shri Mayureshwar Temple) पुणे (Pune) से 80 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मोरेगांव गणेशजी (Ganeshji) की पूजा का महत्वपूर्ण केंद्र है। मयूरेश्वर मंदिर (Mayureshwar Mandir) के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार हैं। ये चारों दरवाजे चारों युग, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं।

श्री मयूरेश्वर मंदिर (Shri Mayureshwar Temple) पुणे (Pune) से 80 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मोरेगांव गणेशजी (Ganeshji) की पूजा का महत्वपूर्ण केंद्र है। मयूरेश्वर मंदिर (Mayureshwar Mandir) के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार हैं। ये चारों दरवाजे चारों युग, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं।

मान्यताओं के अनुसार, मयूरेश्वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस का वध किया गया था। गणेशजी ने मोर पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध किया था। इसी कारण यहां स्थित गणेशजी को मयूरेश्वर कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान गणेश ने दानव सिंधु से लोगों का बचाव किया था। मोरया गोसावी ने इस मंदिर के संरक्षण हैं। आज मोरया गोसावी जो कि पेशवा शासकों के परिवार से है, इसे व्यवस्थित कर रहे हैं। मोरगांव गणेश मंदिर की पूजा का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र है ।

मोरेगांव मंदिर आठ श्रद्धेय मंदिरों की तीर्थ यात्रा का शुरूआती बिन्दु है। साथ ही तीर्थयात्री तीर्थयात्रा के अंत में मोरगांव मंदिर की यात्रा नहीं करता है तो तीर्थ अधूरा माना जाता है। मयूरेश्वर मंदिर में मुस्लिम वास्तुकला का प्रभाव दिखता है, क्योंकि इसके निर्माण और संरक्षक के रूप में एक मुस्लिम मुखिसा उस समय था। मंदिर के चारों कोने मीनारों के के साथ एक लंबे पत्थर चारदिवारी से घिरे हैं। मंदिर के चार द्वार चार युगों की याद दिलाते हैं। पूर्वी द्वार पर राम और सीता की छवि जो कि धर्म, कर्तव्य के प्रतीक के रूप में, दक्षिणी द्वार पर शिव और पार्वती जो कि धन और प्रसिद्धि के प्रतीक के रूप में, पश्चिमी गेट पर कामदेव और रति जो कि इच्छा, प्रयार और कामुक खुशी के प्रतीक के रूप में और उत्तरी द्वार पर वराह और देवी माही जो कि मोक्ष और शनि ब्रह्म का प्रतीत हैं ।

मंदिर के द्वार पर एक बहुत बड़ी नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है, जिसका मुंह भगवान की मूर्ति की तरफ है। यह नंदी भगवान शिव मंदिर ले जाया जा रहा था। विश्राम के लिए उसे गणेश मंदिर पर रखा गया तो बाद में उसने वहां से जाने से मना कर दिया। तब से आज नंदी और मूसा दोनों गणेश मंदिर के मुख्य द्वार के सरंक्षक माने जाते हैं। इस मंदिर में गणपति जी बैठी मुद्रा में विराजमान है तथा उनकी सूंड बाई ओर की तरफ तथा चार भुजाएं एवं तीन नेत्र स्पष्ट प्रदर्शित हैं। गणेश मूर्ति के सामने गणेश के वराह मूसा एवं मोर हैं तथा गर्भगृह के बाहर नगना, भैरव हैं।

मंदिर के विधानसभा भवन में गणेश के विभिन्न रूपों का चित्रण 23 विभिन्न मूर्तियों में स्थापित हैं। दिन में तीन बार सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और रात्रि 8 बजे पूजा की जाती है । मयूरेश्वर दूर से एक छोटे किले की तरह दिखता है।

मयूरेश्वर की मूर्ति के पास केवल मुख्य पुजारी को प्रवेश की अनुमति है। गर्भगृह में विराजमान देवता की आंखें और नाभि कीमती हीरों से जड़ी हुई है। सिर पर नागराज की नुकीले देखी जा सकती हैं। गणेश मूर्ति सिद्धि और बुद्धि की पीतल की मूर्तियों से घिरे हुए है। मूर्ति पर 100-150 साल तक सतत अभिषेक एवं सिंदूर से वास्तवित मूर्ति से यह बहुत बड़ी दिखने लगी है। मुख्य द्वार गर्भगृह में देवता का सामना एक कछुआ और एक नंदी से होता है।

हिन्दू मिथक के अनुसार मयूरेश्वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस की हत्या से संबंधित है । सभी देवताओं को सिंधु के कहर से बचाने के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना की और भगवान गणेश मोर पर सवार होकर युद्ध में राक्षस सिंधु का नाश किया और बाद में मोर को भाई स्कंद को भेंट कर दिया ।