सूर्यदेव (Suryadev) के दो पुत्र हैं-यम और और शनि। इसके अलावा उन्हें दो पुत्रियां भी हैं, जिनमें से एक का विवाह श्री कृष्ण के साथ हुआ था। वह श्री कृष्ण की पटरानी कहलाती हैं। आज उन्हें संसार में पूजा भी जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देव की दो पुत्रियां थीं। एक का नाम कालिंदी था और दूसरी का नाम भद्रा था। कालिंदी बहुत शांत स्वभाव की थीं और भद्रा का स्वभाव उग्र था।
एक बार कालिंदी ने अपने पिता सूर्य से पृथ्वी पर जाकर ताप करने की इच्छा जताई। पुत्री की बात मानते हुए सूर्य देव ने उन्हें ब्रज धाम में जाकर ताप करने का सुझाव दिया। कालिंदी ने कई वर्षों तक घोर तप किया। जब द्वापर युग में श्री कृष्ण ने जन्म लिया तब कालिंदी ने प्रभु से उनके दर्शन के लिए अनुरोध किया।
श्री कृष्ण ने लीला रचाई। पिता वासुदेव ने कन्हैया को टोकरी में रखा और गोकुल के लिए निकल पड़े। वासुदेव जी ने जब नदी में प्रवेश किया तब कालिंदी ने श्री कृष्ण के चरण स्पर्श किया और उनका स्वागत किया।
कहते हैं कि कालिंदी नदी ही आगे चलकर यमुना कहलाईं। यमुना किनारे श्री कृष्ण ने बाल लीलाएं रचाईं लेकिन बाद में धर्म की स्थापना के लिए ब्रज मंडल छोड़ दिया। तब कालिंदी यानी कि यमुना ने श्री कृष्ण से विवाह हेतु तपस्या की।
महाभारत युद्ध के बाद जब श्री कृष्ण अर्जुन के साथ पुनः ब्रज धाम पहुंचे तब अर्जुन की नजर नदी में ताप कर रहीं कालिंदी पर पड़ी और उन्हें कालिंदी से उनका परिचय पूछा। तब कालिंदी ने बताया कि वह श्री कृष्ण से विवाह हेतु तपस्या कर रही हैं। अर्जुन ने श्री कृष्ण को यह बात बताई। तब श्री कृष्ण ने कालिंदी को कई वर्षों पश्चात उस समय पुनः दर्शन दिए और उनकी तपस्या के वरदान स्वरूप स्वयं सूर्य देव से कालिंदी का हाथ मांगने सूर्य लोक पहुंचे और इस तरह श्री कृष्ण ने कालिंदी से विवाह किया।
कालिंदी आज यमुना नाम से प्रख्यात हैं और न सिर्फ समस्त ब्रज मंडल में बल्कि जहां से भी इनका प्रवाह है वहां-वहां पूजनीय हैं। ब्रज वासी तो यमुना को मां के रूप में पूजते हैं और उनकी जयंती पर उनके जन्मोत्सव को भव्य तौर पर मनाते हैं।
श्री कृष्ण की जिन आठ पटरानियों का वर्णन शास्त्रों में मिलता है उनमें से एक यमुना भी हैं। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति मां यमुना की पूजा-आराधना कर उन्हें प्रसन्न करता है, उस पर श्री कृष्ण की कृपा हमेशा बनी रहती है।