धर्म-कर्म

राजा सुरथ की भक्ति देख सूर्यपुत्र यमराज ने हरि दर्शन तक मृत्यु न होने का दिया वरदान

राजा सुरथ की भक्ति देखकर सूर्यपुत्र यमराज प्रसन्न हुए। अपने वास्तविक रूप में आकर सुरथ से वरदान मांगने को कहा। राजा ने मांगा कि जब तक हरि के दर्शन न हो जायें, तब तक मेरी मृत्यु न हो। यमराज ने बताया कि जल्द ही भगवान विष्णु का रामावतार होगा। प्रभु उस युग में मानव लीला […]

राजा सुरथ की भक्ति देखकर सूर्यपुत्र यमराज प्रसन्न हुए। अपने वास्तविक रूप में आकर सुरथ से वरदान मांगने को कहा। राजा ने मांगा कि जब तक हरि के दर्शन न हो जायें, तब तक मेरी मृत्यु न हो। यमराज ने बताया कि जल्द ही भगवान विष्णु का रामावतार होगा। प्रभु उस युग में मानव लीला करेंगे। उन्हीं के रूप में तुम्हें हरि के दर्शन होंगे।

इसके बाद शीघ्र ही राजा सुरथ को सूचना मिली कि अयोध्या के राजा दशरथ के यहाँ श्रीराम का अवतार हो गया है। श्रीराम के दर्शन की आस में वह उनकी हर सूचना लेते रहते थे।

जब प्रभु ने राज सिंहासन संभालने के बाद अश्वमेध का घोड़ा छोड़ा तो सुरथ को अपना मनोरथ पूरा होता नजर आया। उन्होंने यज्ञ के घोड़े को रोकने का निश्चय किया। अश्व की रक्षा में चल रहे शत्रुघ्न से सुरथ का घोर संग्राम हुआ। जिसमें सुरथ ने शत्रुध्न को सेना समेत बंदी बना लिया।

शत्रुघ्न की रक्षा के लिए अंगद और हनुमान जी भी आए। राजा सुरथ ने सबको रामास्त्र के बल पर बाँध लिया। सुरथ ने उनसे कहा, मैंने आप सबको रामास्त्र से बाँधा है, जिसे काटने का सामर्थ्य आपमें नहीं है। यदि आप मुक्ति चाहते हैं तो अपने स्वामी को युद्ध के लिए भेजें। हनुमान जी से राजा सुरथ का मर्म छिपा नहीं था। उन्हें श्रीराम का वरदान था कि उनका हर अस्त्र उन पर प्रभावहीन रहेगा लेकिन रामभक्त सुरथ का मनोरथ पूरा करने के लिए वह बंधे रहे। लक्ष्मण ने सुना तो तुरन्त कुंडलपुर जाकर सुरथ को दंड देने को तैयार हो गए। श्रीराम ने लक्ष्मण को रोका और कहा-बिना मेरे गए यह विघ्न नहीं टलने वाला।

प्रभु स्वयं अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित कुंडलपुर पहुँच गए। श्रीराम को देख सुरथ ने शस्त्र फेंके और प्रभु के चरणों में गिर गए। सुरथ ने कहा कि उनके दर्शन मात्र के लिए उन्होंने काल को रोक रखा है। श्रीराम ने उन्हें अपने दिव्य रूप के दर्शन दिए। प्रभु ने सुरथ से वर मांगने को कहा। प्रभु दर्शन पाकर सुरथ धन्य हो गए और कहा अब कोई और कामना नहीं है। फिर भी यदि आप कुछ देना चाहते हैं तो सेवा का अवसर दीजिए। अश्वमेध का यह कार्य पूरा करने में मुझे सेवा में ले लीजिए।

श्रीराम ने हंसकर कहा- आपने मेरे अनुज और मित्रों को बाँध रखा है। मैं तो ऐसे ही बंध गया हूँ। आपकी इच्छा कैसे पूरी नहीं होगी। सुरथ प्रभु के चरणों में एक बार फिर नतमस्तक हो गए। इसके बाद शत्रुघ्न, हनुमान और अंगद आदि को मुक्त किया और अश्व के साथ रामसेना में शामिल होकर चलने लगे।