कथाओं के अनुसार, भगवान शिव (Lord Shiva) की पत्नी पार्वती (Mata Parvati) हमेशा अपने काम भगवान शिव के गणों को आदेश देकर करवाती थी। गण भी उनकी आज्ञा का तुरंत पालन करते थे। गणों के इस स्वभाव से पार्वती बहुत खुश रहती थीं। कहा जाता है कि पार्वती माता की दो सखियां जया और विजया बहुत ही रूपवान, गुणवान और मधुर वचन बोलने वाली थीं। पार्वती माता उनसे बहुत प्यार करती थीं। पार्वती माता उनके साथ बहुत समय बिताती थीं।
कहा जाता है कि एक दिन जया और विजया ने पार्वती माता को अपना कोई गण होने की बात कही। इस पर पार्वती माता ने भगवान शिव के गणों के नाम गिनाते हुए कहा कि एक क्या अपने पास करोड़ों गण हैं। इस पर सखियों ने कहा-लेकिन ये गण भगवान शिव की आज्ञा का पालन पहले करेंगे। वहीं, कुछ दिन बाद माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। उन्होंने नंदी को कहा कि वे नहाने जा रही हैं और कोई आए तो उसे द्वार पर ही रोक देना।
यह कह कर माता पार्वती नहाने चले गई। इसके बाद अभी पार्वती स्नान ही कर रही थी कि अचानक वहां भगवान शिव आ गए और अंदर जाने लगे। इस पर नंदी ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन भगवान शिव ये कह कर अदंर चले गए कि उन्हें कोई काम है। इसी बीच स्नान कर रही पार्वती भगवान शिव को देखकर लज्जा से सिकुड़ गई।
वहीं, भगवान शिव बिना कुछ कहे अपना काम करके वहां से वापस चले गए। पार्वती माता को लगा कि नंदी ने उनके आदेश की उपेक्षा की है। इसके बाद पार्वती माता को अपनी सखियों की बात याद आई कि शिव के गण पहले शिव की आज्ञा मानेंगे। इस पर पार्वती ने सोचा कि अगर मेरा अपना गण होता तो वे भगवान शिव को कभी अंदर नहीं आने देता। इसके बाद उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक चेतन पुरुष की रचना की, जो सभी गुणों से संपन्न, दोषों से रहित, सुंदर अंग वाला, अद्भुत शोभायमान, महाबली और पराक्रमी था। पार्वती माता ने उसे सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित कर पुत्र कहा और विनायक नाम दे दिया। यही विनायक मस्तक कटने के बाद गणेश के नाम से जाने गए। इसकी एक अलग कथा है।