सूर्यदेव (Suryadev) को साक्षात देवता माना जाता है, क्योंकि एक यही है जो प्रत्यक्ष दिखते हैं। जानकारों के अनुसार देश में मौजूद कई प्राचीन मंदिर आज भी इतिहास के साक्षी बने ज्यों के त्यों खड़े हैं। हालांकि कुछ प्राचीन मंदिर अब खंडित हो चुके हैं लेकिन फिर भी ये मंदिर इतिहास की कई रहस्यों व कहानियों को समेटे हुए हैं।
इसी तरह का एक मंदिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की डीडीहाट तहसील में स्थित है। डीडीहाट से 15 किलोमीटर की दूरी पर चौबाटी क़स्बा है, यहां सड़क मार्ग से करीब ढाई किलोमीटर दूर सूर्य का मंदिर है। यह इस जिले का सबसे बड़ा सूर्य का मंदिर है। दस मंदिरों के इस समूह में मुख्य मंदिर सूर्यदेव का है। मंदिर में स्थित मूर्ति के आधार पर कहा जा सकता है कि यह मंदिर दसवीं सदी का है और यह मंदिर स्थानीय ग्रेनाइट प्रस्तर खण्डों का बना है। गांव वाले अपनी नई फसल आदि भी सबसे पहले इसी मंदिर में चढ़ाते हैं।
मंदिर परिसर में सूर्यदेव के अलावा शिव-पार्वती, विष्णु, भैरव, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती आदि के भी छोटे-छोटे मंदिर हैं। सूर्य मंदिर के आधार पर इस गांव को आदित्यगांव भी कहा जाता है। मंदिर में लगी सूर्य की मूर्ति सबसे बड़ी है। इस मूर्ति में भगवान सूर्यनारायण सात अश्वों के एक चक्रीय रथ पर सुखासन में बैठे हैं जिनके दोनों हाथ कंधे तक उठे हैं।
मुख्य मंदिर को ध्यान से देखने पर दिखता है कि यह पूर्व की ओर झुका हुआ है। बताया जाता है कि यह मंदिर कई सालों से इसी तरह से झुका है। मंदिर के झुकने की जानकारी गांव वालों ने पुरातत्व विभाग को दे दी है, लेकिन ये मंदिर कब और कैसे पूर्व की ओर झुका इसका रहस्य आज तक बरकरार है। वहीं कुछ भक्तों के अनुसार ये सूर्य देव का ही चमत्कार है।
पुरात्तव विभाग के अधीन होने के बावजूद इस मंदिर का रख-रखाव गांव वाले आपस मिलजुल कर धन इकट्ठा करके करते है। मंदिर के रख-रखाव के लिये दान करने वालों की एक सूची भी मंदिर के परिसर में लगी हुई है। इस तरह जो भी श्रद्धालु चाहे यहां दान करके अपना नाम सूची में लिखवा सकते हैं।