धर्म-कर्म

महादेव के लिए माता लक्ष्मी ने यहां खोदा था कुंड, मां पार्वती हैं देवदार के वृक्ष के रूप में

उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। भगवान शिव इसी धरा पर निवास करते हैं। इसी जगह पर भगवान शिव का एक बेहद खूबसूरत ताड़केश्वर भगवान का मंदिर है।

उत्तराखंड (Uttarakhand) को महादेव शिव (Mahadev Shiv) की तपस्थली भी कहा जाता है। भगवान शिव (Lord Shiva) इसी धरा पर निवास करते हैं। इसी जगह पर भगवान शिव का एक बेहद खूबसूरत ताड़केश्वर भगवान का मंदिर (Temple of Tadkeshwar Bhagwan) है। यह मंदिर भगवान शिव (Bhagwan Shiv) को समर्पित है। ‘गढ़वाल राइफल’ (Garhwal Rifle) के मुख्यालय लांसडाउन (lansdowne) से यह मंदिर 36 किलोमीटर दूर है। माना जाता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत भगवान पूरी करते हैं।

ताड़केश्वर महादेव का मंदिर आदिकालीन 1500 वर्ष पुराना है। देवदार और बलूत के घने जंगलों से घिरा यह स्थान उन लोगों के लिए आदर्श स्थान है, जो प्रकृति में सौंदर्य की तलाश करते हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु न केवल देश से बल्कि विदेशों से भी आते हैं। भगवान शिव का यह ताड़केश्वर महादेव मंदिर सिद्ध पीठों में से एक है। बलूत और देवदार के वनों से घिरा हुआ ये मंदिर देखने में बहुत मनोरम लगता है। यहां कई पानी के छोटे छोटे झरने भी बहते हैं। यहां आप किसी भी दिन सुबह 8 बजे से 5 बजे तक दर्शन कर सकते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि पर यहां का नजारा अद्भुत होता है। इस अवसर पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।

यहां की सबसे खास बात है मंदिर परिसर में मौजूद चिमटानुमा और त्रिशूल की आकार वाले देवदार के पेड़। ये पेड़ श्रद्धालुओं की आस्था को और भी ज्यादा मजबूत करते हैं। इसके साथ ही मंदिर परिसर में एक कुंड भी मौजूद है। मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था। वर्तमान में इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग महादेव के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों का लाना वर्जित है।

पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय द्वारा ताड़कासुर दैत्य का वध करने के बाद भगवान शिव ने इसी जगह पर आकर विश्राम किया। विश्राम के दौरान जब सूर्य की तेज किरणें भगवान शिव के चेहरे पर पड़ीं, तो माता पार्वती ने शिवजी के चारों ओर 7 वृक्ष लगाए। ये विशाल वृक्ष आज भी ताड़केश्वर धाम के प्रांगण में मौजूद हैं।

सिद्धपीठ श्री ताड़केश्वर महादेव की महिमा के बारे में बताया जाता है कि ताड़केश्वर एक सिद्ध पुरूष अजन्म संत थे। वह शिव स्वरुप थे तथा भगवान शिव के ही तेजोमयी अंश से प्रकट हुए थे। वह दिगम्बर भेष धारी एक हाथ में त्रिशूल व चिमटा तथा दूसरे हाथ से डमरू बजाते हुए अपने ईष्ट भगवान शिव का जाप करते हुए इधर-उधर विचरण किया करते थे।

इस दौरान यदि कोई व्यक्ति गलत काम करते हुए देखा गया या अपने स्वार्थ के लिए गाय बैलो को पीटते हुए देखा गया तो उसे जोर से आवाज देकर फटकारते थे तथा उसे आर्थिक या शारीरिक दंड देने की चेतावनी देते थे। वह सिद्ध पुरूष मानव को गलत काम करने के लिये ताड़ते थे। ताड़ने का अर्थ होता है डाँटना, फटकारना, पीटना इसलिए वह सिद्ध पुरूष जन समुदाय में ताड़केश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गए।