पुराने आगरा के रावतपाड़ा में स्थित ‘मनकामेश्वर मंदिर’ (Mankameshwar Mandir) की मान्यता है कि यहां शिवलिंग (Shivling) की स्थापना खुद भगवान शिव (Bhagwan Shiv) ने द्वापर युग में की थी। प्रचलित कथा के अनुसार, मथुरा में श्रीकृष्ण के जन्म के बाद उनके बाल-रूप के दर्शन की कामना लेकर कैलाश से चले महादेव ने एक रात यहां बिताई थी और साधना की थी। उन्होंने यह प्रण किया था कि यदि वह कान्हा को अपनी गोद में खिला पाए तो यहां एक शिवलिंग की स्थापना करेंगे।
उसके अगले दिन जब वह गोकुल पहुंचे तो यशोदा मैया ने उनके भस्म-भभूत और जटा-जूटधारी रूप को देख कर मना कर दिया कि कान्हा उन्हें देख कर डर जाएगा। तब शिव वहीं एक बरगद के पेड़ के नीचे ध्यान लगा कर बैठ गए। शिव को आया जान कन्हैया ने लीला शुरू कर दी और रोते-रोते भगवान शिव की तरफ संकेत करने लगे। तब यशोदा मैया ने शिव को बुला कर कान्हा को उनकी गोद में दिया, तब जाकर कृष्ण चुप हुए।
वापस लौटते समय भगवान शिव ने यहां आकर शिवलिंग की स्थापना की और कहा कि जिस तरह से यहां मेरे मन की कामना पूरी हुई, उसी तरह से सच्चे मन से यहां आने वाले मेरे हर भक्त की मनोकामना पूरी होगी।इस मंदिर की खासियत यह है कि यदि कोई अंदर न जाना चाहे तो यहां बाहर से ही शिवलिंग के दर्शन हो जाते हैं।
चांदी मढ़े इस शिवलिंग के पास वही व्यक्ति जा सकता है, जिसने भारतीय वेशभूषा- धोती, साड़ी आदि पहनी हो। मंदिर परिसर के भीतर मुख्य गर्भ गृह के पीछे कई सारे छोटे-छोटे मंदिर हैं। यहां देसी घी से प्रज्ज्वलित होने वाली 11 अखंड जोत निरंतर जलती रहती हैं। अपनी मनोकामना पूरी होने पर भक्त यहां आकर एक दीप जलाते हैं, जिसकी कीमत सवा रुपए से लेकर सवा लाख रुपए तक हो सकती है।
आगरा देश के सभी प्रमुख शहरों से रेल, सड़क व हवाई मार्ग से जुड़ा है। आगरा कैंट रेलवे स्टेशन से मनकामेश्वर मंदिर की दूरी करीब 6 किलोमीटर, पुराना किला से एक व ताजमहल से साढ़े चार किलोमीटर है। मंदिर के पास की गलियां बनारस और वृंदावन की याद दिलाती हैं। यहां विभिन्न मिठाइयों के प्रसाद के अलावा एक विशेष प्रकार का पान भी मिलता है, जो सिर्फ यहीं बनता है।