धर्म-कर्म

इस मंदिर में जागृत अवस्था में विराजमान है माँ

इस मंदिर में मां जागृत अवस्था में विराजमान है। माँ के दर्शन के लिए लिए टिकारी शहर, इसके आस पास के गावँ के तथा टिकारी से बाहर रहने वाले लोग भी आते रहते हैं।

इस मंदिर में मां जागृत अवस्था में विराजमान है। माँ के दर्शन के लिए लिए टिकारी शहर, इसके आस पास के गावँ के तथा टिकारी से बाहर रहने वाले लोग भी आते रहते हैं।

माँ का मंदिर टिकारी बस स्टैंड से 500 मीटर उत्तर की तरफ और टिकारी किला से सटे उत्तर पूर्व कोना पर बहेलिया बिगहा में अवस्थित है।

बहेलिया बिगहा (पक्षियों का शिकार करने वाले) लोगों का निवास स्थान
सन 1718 ईसवीं में टिकारी राज की स्थापना के समय यहां बहेलिया यानी चिड़ीमार लोग रहा करते थे, उन लोगों के रहन-सहन से टिकारी राज के लोग हमेशा परेशान रहा करते थे, इस कारण टिकारी के तत्कालीन राजा के द्वारा उन लोगों को हटाने के लिए काफी प्रयास किया गया था। बहेलिया लोग भगाये जाने के कुछ दिन के बाद पुनः वापस आ जाते थे और अपना बसेरा बना लेते थे। इससे टिकारी राज के लोग काफी परेशान रहा करते थे.

बहेलिया बिगहा में लोगो का बसना
कहा जाता है कि टिकारी राज के महाराजा सुंदर शाह सन 1750 ईसवी के आसपास अपनी मातृभूमि उत्तर प्रदेश, गये हुये थे जहां एक दिन वे नदी के किनारे स्नान कर रहे थे तो नदी के बगल में एक मंदिर के प्रांगण में 10 कि संख्या के आस पास युवा ब्राह्मण लोग, जो देखने में कद काठी से काफी बलशाली और ताकतवर लग रहे थे गदा, तलवारबाज़ी इत्यादि का अभ्यास कर रहे थे।

सुंदर शाह उन लोग के कौशल एवं चपालता को देख कर काफी प्रभावित हुये और उन्होने उन लोगों से कहा कि “मैं बिहार के टिकारी स्टेट, गया के राजा होने कि हैसियत से आपलोगों को प्रस्ताव देता हूँ कि आप लोग मेरे राज में चल कर रहें…।” उनके इस प्रस्ताव पर वह युवा ब्राह्मण युवागण तैयार हो गए और टिकारी चले आए।

युवा ब्राह्मणगण के टिकारी आने पर सुंदर शाह ने उन लोगों को बताया कि उनके किला से उत्तर पूर्व बस्ती में बहेलिया प्रजाति के लोग रहते हैं, जिनके रहने से ऊके राज्य के प्रजाजन को काफी परेशानी होती है, अगर युवा ब्राह्मणगण उनको वहां से भगा सकें तो उन्हें काफी खुशी होगी और यह भी कहा कि बहेलियों को भगाने के पश्चात् वह युवा ब्राह्मणगण उस स्थान पर अपना निवास बना सकते हैं। युवा ब्राह्मणों ने बहेलिया लोग को खदेड़ कर भगा दिया और अपना निवास स्थान बना लिया और बस्ती को बहेलिया बिगहा कहा जाने लगा, सुंदर शाह ने ब्रहमण लोगों के रहने के लिए कुछ गांव भी उपहार स्वरूप भेंट कर दिये थे।

दूसरा कहा जाता है कि सुंदर शाह के मातृभूमि से कुछ युवा ब्राह्मण लोग गया तीर्थ करने के लिए आए और गया में पिण्ड दान और तर्पण करने के बाद उन लोगों को पता चला कि मेरे इलाके का एक राजा का यहां शासन है तो वह लोग उनसे मिलने के लिए टिकारी किला चले आए और सुंदर शाह को आ कर बताएं कि हम लोग आपके मातृभूमि का रहने वाले है और हम लोग चाहते है कि आप के राज में निवास स्थान बनाएं और रहें उनकी इच्छा को सुनकर सुंदरता बहुत खुश हुए और उन्होंने अपने किला के उत्तर पूर्व में बस्ती जहां बहेलिया लोग रहते थे उस स्थान को दिखाएं और बताएं कि बहेलिया लोग के रहन-सहन से मुझे काफी परेशानी होती है अगर आप लोग उस बहेलिया को वहां से हटा देंगे तो मुझे काफी खुशी होगी और आप लोग उस बस्ती में निवास स्थान बना कर रह सकते हैं और उपहार स्वरूप और रहने के लिए कुछ गांव आप लोग को दे देंगें, युवा ब्राह्मण की फौज ने बहेलिया लोग को वहां से खदेड़ दिया और उस स्थान पर अपना निवास स्थान बना कर अमन चैन से रहने लगे।

कुछ दिन के बाद उन लोगों को यह जगह काफी पसंद आने तो अपने मूलस्थान उन्नाव और आसपास से अपने कुछ और रिस्तेदारौ को यहां बुला लिया।

कुछ दिन रहने के बाद लोगो के स्वप्न में देवी माँ आने लगी। स्वप्न में जो स्थान दिखा वैसी ही एक जगह पर लोगों ने एक टिलहा पर देवी माँ की एक मूर्ति स्थापित कर गावँ की देवी के रुप पूजना शुरू कर दिया। उसी स्थान पर औरग्ज़ेब के शासन काल में भग्न की हुई माँ की प्रतिमा रखी हुई थी।

मन्दिर का निर्माण
मां शीतला मंदिर का पहला पुनरुद्धार सन 1928 में बहेलिया बीघा के रईस, जमींदार और Honorary Magistrate देवकीनंदन बाजपेई ने अपने प्रथम पुत्र के जन्म पर शुरू किया उन्होंने अपने सहायक बुतरु शंकर मिश्र जो धराउत गावँ, जहानाबाद के निवासी थे, को मिर्जापुर भेजा और वहां से काले पत्थर की देवी मां की मूर्ति मंगवाकर विधिवत रूप से उनकी प्राण प्रतिष्ठा करवाई। देवकीनंदन बाजपेई ने देवी मां के नाम पर ही अपने नवजात पुत्र का नाम शीतला प्रसाद बाजपेई रखा।

मंदिर का दूसरा पुनरुद्धार स्वर्गीय देवकीनंदन बाजपेई के छोटे पुत्र स्वर्गीय दुर्गा प्रसाद बाजपेई जी ने कराया जब वह सन् 1963 में टिकारी नगर पालिका के अध्यक्ष बने। तब उन्होंने टिकारी बहेलिया विभाग के निवासियों के सहयोग से मंदिर में कुछ पक्का निर्माण करवाया।

माँ की सेवा
यहां के स्थानीय निवासी नारद प्रसाद विश्वकर्मा, जो मां के अंध भक्त थे, ने कुछ वर्षों तक मां के मंदिर के पुजारी के रूप में अपना योगदान दिया और अपने कार्यकाल में बहेलिया बिगहा के ब्राह्मण परिवारों के सहयोग से मंदिर के कुछ और भाग निर्माण किया।

नारद प्रसाद विश्वकर्मा के अस्वस्थ हो जाने के बाद यहां के एक युवा ब्राह्मण अमित अवस्थी उर्फ विदुर ने मां के पुजारी के रूप में सन 2001 से अपना योगदान देना शुरू कर दिया जो वर्तमान में भी हैं। उन्होंने यहां के कुछ ब्राह्मण लड़कों के सहयोग से मंदिर का काफी विकास किया और आगे भी मंदिर के विकास में अपना निरंतर योगदान के लिए संकल्पित हैं।

स्थानीय निवासिओं, विशेषकर युवाओं के द्वारा मन्दिर के नव निर्माण में तन, मन और धन से काफीसहयोग मिल रहा हैं जो अत्यंत प्रशंसनीय एवं सराहनीय है।

बहेलिया बिगहा के निवासी रमा शंकर मिश्रा, नागेन्द्र पाठक एवं ललित शुक्ला के मार्ग निर्देशन में स्थानीय युवा वर्ग माँ की सेवा में रात दिन लगे रहते है।

मन्दिर में आश्विन माह में भव्य नवरात्र
नवरात्र में मन्दिर को बहुत ही सुन्दर सजाया जाता है, जो देखने में दर्शनीय होता है, प्रतिदिन दुर्गा सप्त्शती की पाठ, सांध्य के भव्य आरती, अष्टमी के दिन कन्या को प्रसाद खिलाना, विजयदशमी के भण्डारा और अन्त 24 घंटा का अखंड कीर्तन होता है, जो देखने में भव्य और मनोरम होता है।

छठ पर्व:
मन्दिर के पच्छिम भाग मे छठ पर्व के लिये एक बड़ा पक्का तालाब का निर्माण किया है.

मंदिर परिसर में छठ मेला (प्रत्येक वर्ष चैत्र एवं कार्तिक मास के शुल्क पक्ष के पंचमी से सप्तमी तिथि तक) लगता है. उस समय इस मन्दिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु गण छठ करने के लिए आते हैं और मंदिर के प्रांगण में आकर भगवान भास्कर को अर्घ्य दे कर उनकी पूजा करते हैं।

कहा जाता है कि जो श्रद्धालु भक्तगण इस मंदिर में आकर भगवान भास्कर की पूजा करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।

मनोकामना
यहां टिकारी और आसपास के काफी लोग इस मंदिर में शीतला मां का दर्शन करने के लिए आते हैं और मां से मन्नतें मांगते हैं। मनौती पूर्ण होने पर लोग पुन: मां के प्रांगण में विशेष पूजा करने के लिए आते हैं।

पुराने समय से चली आ रही परम्परा का पालन करते हुए श्रद्धालु भक्तजन द्वारा इस मंदिर परिसर में अपने लड़कों का मुंडन संस्कार कार्य भी कराया जाता रहा है।

आप जब कभी टिकारी आएं तो मां के दर्शन करने के लिए एक बार इस मन्दिर में अवश्य जाएं।