झारखंड (Jharkhand) की राजधानी रांची (Ranchi) से 150 किमी दूरी इटखोरी (Itkhori) मेें सनातन, बौद्ध और जैन धर्म का समागम हुआ है। सनातन धर्मावलंबियों के लिए यह पावन भूमि मां भद्रकाली (Maa Bhadrakali) तथा सहस्र शिवलिंग महादेव के सिद्ध पीठ (Sahasra Shivling Siddha Peeth) के रूप में आस्था का केंद्र है। वहीं बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए भगवान बुद्ध की तपोभूमि के रूप में आराधना व उपासना का स्थल है। Maa Bhadrakali, Sahasra Shivling Siddha Peeth: Itkhori is the place of faith of Buddhism and Jainism
सिद्धार्थ ने यहां तपस्या की थी व मां मनाने आई थी
माना जाता है कि शांति की खोज में निकले युवराज सिद्धार्थ (भगवान बुद्ध) ने यहां तपस्या की थी। उस वक्त उनकी मां उन्हें वापस ले जाने आई थी। लेकिन जब सिद्धार्थ का ध्यान नहीं टूटा तो उनके मुख से इतखोई शब्द निकला जो बाद में इटखोरी में तब्दील हुआ। जैन धर्मावलंबियों ने जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर भगवान शीतल नाथ स्वामी की जन्म भूमि की मान्यता दी है।
प्राचीन काल में तपस्वी मेघा मुनि ने अपने तप से इस परिसर को सिद्ध करके सिद्धपीठ के रूप में स्थापित किया था। भगवान राम के वनवास तथा पांडवों के अज्ञातवास की पौराणिक धार्मिक कथाओं से मां भद्रकाली मंदिर परिसर का जुड़ाव रहा है। पुरातात्विक दृष्टिकोण से भी मंदिर परिसर काफी महत्वपूर्ण है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा वर्ष 2011-12 तथा 2012-13 में की गई पुरातात्विक खुदाई के दौरान कई पुरातात्विक तथ्य सामने आए हैं। पुरातत्व विभाग ने यहां नौवीं-दसवीं शताब्दी काल में मठ-मंदिरों के निर्माण की पुष्टि की है। इसके प्रमाण मंदिर के म्यूजियम में पुरावशेषों के रूप में सहेज कर रखे हुए हैं। सैंड स्टोन पत्थर तराश कर बनाए गए प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष तथा बहुमूल्य काले पत्थरों से निर्मित प्रतिमाएं अपने गौरवशाली अतीत की गाथा स्वयं सुनाती हैं।
काले पत्थर की मां की प्रतिमा
मां भद्रकाली की प्रतिमा कीमती काले पत्थर को तराश कर बनाई गई है। करीब पांच फुट ऊंची आदमकद प्रतिमा चतुर्भुज है। प्रतिमा के चरणों के नीचे ब्राम्ही लिपि में अंकित है कि प्रतिमा का निर्माण नौवीं शताब्दी काल में राजा महेंद्र पाल द्वितीय ने कराया था।
अनूठा सहस्र शिवलिंग
यहां का सहस्र शिवलिंग काफी अनूठा है। एक ही पत्थर को तराश कर बनाए गए सहस्र शिवलिंग में 1008 शिवलिंग उत्कीर्ण हैैं। सहस्र शिवलिंग के जलाभिषेक करने पर एक साथ सभी एक हजार आठ शिवलिंग का जलाभिषेक होता है। सहस्र शिवलिंग मंदिर के सामने ही नंदी की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है।
मंदिर परिसर में अद्भुत बौद्ध स्तूप
मंदिर परिसर में एक अद्भुत बौद्ध स्तूप है। इसे मनौती स्तूप भी कहा जाता है। बौद्ध स्तूप में भगवान बुद्ध की 1004 छोटी व चार बड़ी प्रतिमाएं बनी हैं। भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा महाप्रयाण की मुद्रा में भी है। इस स्तूप को पुरातत्व विभाग ने नौवीं शताब्दी काल का बताया है। वैसे किवदंती है कि सम्राट अशोक ने जिन चौरासी हजार स्तूपों का निर्माण कराया था, उनमें यह स्तूप भी शामिल है। इस स्तूप के ऊपरी हिस्से में पानी का संग्रह होना आश्चर्य के साथ खोज का भी विषय है।
मंदिर म्यूजियम में शीतलनाथ का चरण चिह्न
मंदिर के म्यूजियम में जैन धर्म के दसवें तीर्थकर भगवान शीतलनाथ स्वामी का एक चरण चिह्न है। पत्थर को तराशकर बनाया गया यह चरण चिह्न वर्ष 1983 में ग्रामीणों द्वारा खुदाई के दौरान प्राप्त हुआ था। उस वक्त एक तांब्र पत्र भी मिला था। जिसमें ब्राह्मी लिपि में जैन धर्म के दसवें तीर्थकर भगवान शीतलनाथ स्वामी का जन्म स्थान इस स्थल को बताया गया है। वर्तमान में जिला प्रशासन ने शीतलनाथ तीर्थ क्षेत्र कमेटी को ढाई एकड़ भूमि मंदिर, धर्मशाला आदि के निर्माण के लिए प्रदान की है।
कनुनिया माई का मंदिर
मंदिर परिसर में ही एक प्राचीन कनुनिया माई का मंदिर है। एक शिला में सूरज, चांद के साथ त्रिशूल उत्कीर्ण है। इसी शिला में नर व नारी की भी प्रतिमा उत्कीर्ण है। पुरातत्व विभाग इसे सती स्तंभ बताता है।
कैसे पहुंचें मंदिर तक
इटखोरी प्रखंड में स्थित मां भद्रकाली मंदिर परिसर राज्य की राजधानी रांची से 150 किलोमीटर, जिला मुख्यालय चतरा से 35 किलोमीटर, प्रमंडलीय मुख्यालय हजारीबाग से 50 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। मंदिर परिसर से निकटतम रेलवे स्टेशन कोडरमा 56 किलोमीटर की दूरी पर है। जबकि निकटतम हवाई अड्डा बोध गया 90 किलोमीटर की दूरी पर है।