श्रीमद्भगवद गीता (Srimad Bhagavad Gita) के अनुसार जब महाभारत युद्ध (Mahabharat Yuddha) में धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों की मृत्यु हो गई थी जिसके बाद गांधारी ने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दिया था अब तुम्हारा भी विनाश होगा।
युद्ध के बाद एक दिन भगवान वन में एक पेड़ के नीचे योग समाधि में लीन थे तब जरा नामक शिकारी भगवान के पैर को हिरण समझ उन पर तीर चला देता है। जिसके बाद शिकारी भगवान से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगता है। तब भगवान ने उन्हें समझाया कि इसमें उनका कोई दोष नहीं है। उनकी मृत्यु तो पहले से ही तय थी।
भगवान ने उन्हें त्रेता युग की बात बताई कि मैं त्रेता युग में राम अवतार में जब मृत्यु लोक आया था और तब तुम सुग्रीव के बड़े भाई बाली थे और मैंने तुम्हारा छिपकर वध किया था। यह मेरे पिछले जन्म के कर्म का फल है जो मुझे इस जन्म में मिला है। इतना कह कर भगवान श्री कृष्ण ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था।
जब अर्जुन द्वारका आए तब कृष्ण और बलराम दोनों की मृत्यु हो चुकी थी। जिसके बाद अर्जुन ने दोनों भाइयों का अंतिम संस्कार किया। कहा जाता है कि श्री कृष्ण और बलराम दोनों का शरीर जलकर राख हो गई थी लेकिन श्री कृष्ण का हृदय राख नहीं हुआ था। कुछ समय बाद समस्त द्वारका नगरी समुद्र में समा गई थी। जिसके अवशेष आज भी समुद्र में हैं। भगवान का हृदय लोहे के मुलायम पिंड में परिवर्तित हो गया था।
अवंतिकापुरी के राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे और उनके दर्शन के अभिलाषी थे, एक रात उन्हें भगवान नारायण का सपना आया कि भगवान उन्हें नीले माधव के रूप में दर्शन देंगे। जिसके बाद राजा भगवान नीले माधव के खोज में निकल गए। राजा को बहुत दिनों की खोज के बाद नीले माधव मिले तब उन्हें अपने साथ लाकर जगन्नाथ मंदिर में उनकी स्थापना कर दिया।
एक बार नदी स्नान करते समय राजा इंद्रद्युम्न को पानी में लोहे का पिंड तैरता हुआ दिखा जिसे देख राजा आश्चर्य में पड़ गए और उस पिंड को अपने हाथ में उठा लिया । पिंड के स्पर्श करने के बाद राजा के कान में भगवान विष्णु की अवाज सुनाई दी। भगवान ने राजा से कहा कि यह मेरा हृदय है जो इस लोहे के पिंड के रूप में धरती में हमेशा धड़कता रहेगा। राजा ने उस पिंड को भगवान जगन्नाथ के मंदिर में स्थापित कर दिया और सभी को सावधान करते हुए उस पिंड को छूने और देखने के लिए सख्त मना किया। कहा जाता है कि आज तक राजा इंद्रद्युम्न के अलावा भगवान श्री कृष्ण के ह्रदय को किसी ने भी नहीं देखा है और न ही स्पर्श किया है।
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को हर 12 साल में बदला जाता है। इस दौरान पूरे शहर की रोशनी बंद कर दी जाती है। बिजली बंद करने के बाद, मंदिर के पूरे परिसर को घेर लिया जाता है। CRPF व सेना के संरक्षण में आने के बाद, मंदिर में कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता। पुजारी की आंखों पर पट्टी बांधी जाती है। उनके हाथों में मोटे दस्ताने पहनाए जाते हैं। मंदिर के अंदर घोर-घने अंधकार के बीच, पुजारी उस पदार्थ को बाहर निकलता है। फिर उसे नई मूर्ति में स्थापित कर देता है। इसी भगवान श्रीकृष्ण के हृदय को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है। इस ब्रह्म पदार्थ के रहस्य को आज तक कोई नहीं जान पाया।
सैकड़ों वर्षो से एक मूर्ति से दूसरी मूर्ति में, यह ब्रह्म पदार्थ स्थानांतरित किया जाता रहा है। खास बात यह है कि ब्रह्म पदार्थ को बदलने वाला पुजारी भी, यह नहीं जानता। कि वह किस चीज को हस्तांतरित कर रहा है। क्योंकि उसके हाथों में दस्ताने और आंख में पट्टी बंधी होती है। हालांकि ब्रह्म पदार्थ को बदलने वाले पुजारी, यह जरूर कहते हैं। कि वह जिस पदार्थ को बदलते हैं। वह किसी खरगोश के जैसे उछलता है।