भगवान गणेश (Lord Ganesha) के शीश कटने को लेकर पुराणों में कई कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक कथा है कि शनिदेव (Shanidev) के कारण ही भगवान गणपति का शीश कटा था। ब्रह्मवैवर्तपुराण में इस कथा का वर्णन है। इसमें कहा गया है कि शनिदेव की दृष्टि पड़ने से गणपति का शीश धड़ से अलग होकर चंद्रमंडल में चला गया था। गणेश चालीसा का पाठ करने में भी इस प्रसंग का उल्लेख मिलता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, गणपति के जन्म पर शिवलोक में उत्सव का माहौल था। देवलोक से सभी देवी-देवता गणपति जी को आशीर्वाद देने शिवलोक पहुंचे। इनमें शनि देव भी शामिल थे। जब उत्सव खत्म हो गया तो शनिदेव ने भगवान विष्णु, ब्रह्मा और शिव को प्रणाम किया। अंत में माता पार्वती को भी उन्होंने प्रणाम किया। उन्होंने गणपति को देखे बिना ही आशीर्वाद दे दिया। यह देख माता पार्वती ने शनिदेव को टोका और पूछा कि वो उनके बेटे को देखे बिना ही क्यों जा रहे हैं।
माता पार्वती की बात का जवाब देते हुए शनिदेव ने कहा कि मेरा उसे देखना मंगलकारी नहीं है। अगर मेरी दृष्टि उस पर पड़ी तो उसके साथ अमंगल हो सकता है। इस पर माता पार्वती रुष्ट हो गईं और उनसे कहा कि वो उनके बेटे के जन्म से प्रसन्न नहीं हैं, इसलिए ऐसा कह रहे हैं। साथ ही कहा कि उनकी आज्ञा है कि वो उनके पुत्र को देखें और आशीर्वाद दें। इससे कुछ भी अमंगल नहीं होगा।
यह सुनकर शनिदेव ने देवी पार्वती की आज्ञा का पालन किया। जैसे ही शनि महाराज ने गणपति को देखा तो उनका शीश कटकर हवा में विलीन हो गया। यह देख देवी पार्वती बेहोश हो गईं। इससे पूरे शिवलोक में हाहाकार मच गया। इस स्थिति को देख भगवान विष्णु जंगल से एक नवजात हथिनी का शीश काट लाए। यह शीश गणपति को लगा दिया गया। सभी से ही गणपति गजानन कहलाने लगे।