मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य ब्रह्मस्वरूप है, सू्र्य से जगत उत्पन्न होता है। सूर्य नवग्रहों में प्रमुख देवता हैं। सूर्यदेव की दो भुजाएं हैं। वे कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित हैं। उनके सिर पर सुंदर स्वर्ण मुकुट और गले में रत्नों की माला है। सूर्य देव 7 घोड़ों के रथ पर सवार हैं।
एक बार दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें पराजित कर दिया। तब इंद्र की माता अदिति ने सूर्यदेव (Suryadev) की उपासना की। भगवान सूर्य उपासना से प्रसन्न हुए और उन्होंने देवमाता अदिति के गर्भ से जन्म लेकर दैत्यों को पराजित किया। अदिति के पुत्र होने के कारण सूर्यदेव आदित्य कहलाए।
सूर्य देव का वर्ण लाल है। इनके रथ में एक ही चक्र है जो संवत्सर कहलाता है। इस रथ में मासस्वरूप बारह चक्र हैं, ऋतुरूप छः नेमियां और तीन चौमास- रूप तीन नाभियां हैं। इनके साथ 60 हजार बालखिल्य स्वास्तिवाचन और स्तुति करते हुए चलते हैं। ऋषि, अप्सरा, नाग, यक्ष, राक्षस, और देवता सूर्य नारायण की उपासना करते हुए चलते हैं। चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश इनके मुख्य अस्त्र है।
सूर्य देवता सिंह राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा 6 वर्ष की होती है। सूर्य की प्रसन्नता और शांति के लिए रोज सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। साथ ही हरिवंश पुराण का स्मरण करना चाहिए।