जो पृथ्वी पर मस्तक रखकर भगवान सूर्य (Bhagwan Surya) को नमस्कार करता है, वह तत्काल सब पापों से छुट जाता हैं, इसमें जरा भी संदेह नहीं हैं। जो सप्तमी को एक समय भोजन करके नियम और व्रत का पालन करते हुए सूर्यदेव (Suryadev) का भक्तिपूर्वक पूजन करता हैं, उसे अश्वमेध-यज्ञ (Ashwamedha Yagna) का फल मिलता है। जो सप्तमी को दिन-रात उपवास करके भगवान् भास्कर का पूजन करता हैं, वह परम गति को प्राप्त होता है।
जब शुक्लपक्ष की सप्तमी को रविवार हो, उस दिन विजयासप्तमी होती है तो उसमें दिया हुआ दान महान फल देने वाला हैं। विजया सप्तमी को किया हुआ स्नान, दान, तप, होम और उपवास-सब कुछ बड़े-बड़े पातकों का नाश करनेवाला हैं। जो मनुष्य रविवार के दिन श्राद्ध करते और महातेजस्वी सूर्य का यजन करते हैं, उन्हें अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। जिनके समस्त धार्मिक कार्य सदा भगवान सूर्य के उद्देश्य से होते है, उनके कुल में कोई दरिद्र अथवा रोगी नहीं होता। जो सफेद, लाल अथवा पीली मिटटी से भगवान् सूर्य के मंदिर को लीपता हैं, उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
उदयकाल में प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देने से एक ही वर्ष में सिद्धि प्राप्त होती है। सूर्य के उदय से लेकर अस्त तक उनकी ओर मुँह करके खड़ा हो किसी मन्त्र अथवा स्तोत्र का जप करना आदित्यव्रत कहलाता है। भगवान सूर्य की कृपा से मानसिक, वाचिक तथा शरीरिक समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। सूर्यदेव के एक दिन के पूजन से भी जो फल प्राप्त होता है, वह शास्त्रोक्त दक्षिणा से युक्त सैकड़ों यज्ञों के अनुष्ठान से भी नहीं मिलता।