धर्म-कर्म

पिता शिव के मोह से पैदा हुए क्रोधासुर को सबक सिखाने के लिए लंबोदर अवतार का जन्म हुआ

इस पौराणिक कथा की मानें तो एक तरह से क्रोधासुर श्री गणेश का भाई ही था, क्योंकि वो शिव जी के स्खलन से जन्मा उनका ही अंश था। उसी को नियंत्रित करने के लिए गणपति ने लंबोतर के रूप में अवतार लिया था

जब समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) ने अमृत रक्षा (Amrit Raksha) के लिए मोहिनी रूप (Mohini Roop) धारण किया था तो स्वयं शिव जी (Shiv Ji) उनके रूप पर मोहित हो गए थे। इसके बाद मोहिनी रूप को त्याग अपने असली रूप में आये श्री हरि को देख कर उनका मोह क्रोध तथा क्षोभ में बदल गया और उनके स्खलन से क्रोधासुर नाम का राक्षस उत्पन्न हुआ जिसने सूर्य देव से ब्रह्मांड विजय का वरदान प्राप्त कर तीनो लोक कैलाश और बैकुंठ पर कब्जा जमा लिया स्वयं सूर्यदेव को भी सूर्यलोक छोड़कर जाना पड़ा तब सब देवताओं की उपासना से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने लंबोदर अवतार लेकर क्रोधासुर से युद्ध कर उसे अपनी शरण में आने पर विवश कर दिया।

इस पौराणिक कथा की मानें तो एक तरह से क्रोधासुर श्री गणेश का भाई ही था, क्योंकि वो शिव जी के स्खलन से जन्मा उनका ही अंश था। उसी को नियंत्रित करने के लिए गणपति ने लंबोतर के रूप में अवतार लिया था।

समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु के मोहिनी रुप को देखकर भगवान शिव (Bhagwan Shiv) कामातुर हो गए। उसी समय उनका वीर्य स्खलित हुआ जिससे एक असुर पैदा हुआ। युवा होने पर वह शुक्राचार्य का शिष्य बना और उन्होंने उसका नाम क्रोधासुर रखा। शुक्राचार्य ने शम्बर दैत्य की कन्या प्रीति के साथ उसका विवाह भी करवा दिया। एक दिन क्रोधासुर ने आचार्य से इच्छा व्यक्त की कि वो सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों पर विजय प्राप्त करना चाहताहै। तब शुक्राचार्य ने उसे विधि पूर्वक सूर्य-मन्त्र की दीक्षा दी, और उनकी तपस्या करने के लिए कहा।

इसके बाद क्रोधासुर ने घने जंगल में सारे मौसमों का प्रहार सहते हुए, अन्न जल त्याग कर सूर्य की कठोर तपस्या की। उसकी भक्ति से प्रसन्न हो कर सूर्य प्रकट हुए और उसे मृत्यु एवम् सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर विजय का इच्छित वरदान दिया। साथ ही उसे सर्वोत्तम योद्धा होने का आशीर्वाद भी दिया। वरदान प्राप्त करके आने पर वो असुरों का राजा बना और ब्रह्मांड विजय के लिए चल पड़ा।

उसने पहले पृथ्वी फिर वैकुण्ठ और कैलाश पर उसने अधिकार कर लिया और अंत में उसने सूर्य को भी अपदस्थ करके सूर्यलोक पर भी अपना कब्जा कर लिया। अपने ही वरदान का ये परिणाम देख कर दुखी सूर्य अन्य देवी देवताओं और ऋषियों के साथ श्री गणेश की शरण में पहुंचे। उनका कष्ट जान कर गणेश जी ने लंबोदर अवतार लिया और क्रोधासुर पर आक्रमण कर दिया। दोनों में भीषण संग्राम हुआ और अंत में उनसे पराजित होकर क्रोध उनका शरणागत हो गया और अपने जीते हुए सभी लोकों को स्वतंत्र कर दिया।