धर्म-कर्म

जानें क्यों किया भगवान विष्णु ने महादेव से छल व देवी वृंदा का सतीत्व भंग

जगत के पालनहार भगवान विष्णु (Lord Vishnu) सृष्टि को रक्षा करने के लिए कई बार धर्म और मर्यादा का भी उल्लंघन करना पड़ा, यहां तक कि इन्हें भगवान शिव (Lord Shiva) को धोखा और एक स्त्री के साथ छल से संबंध भी बनाने पड़े। जानिए ऐसी घटनाएं, जिनमें सृष्टि के कल्‍याण के लिए उन्होंने छल का सहारा लिया।

जगत के पालनहार भगवान विष्णु (Lord Vishnu) सृष्टि को रक्षा करने के लिए कई बार धर्म और मर्यादा का भी उल्लंघन करना पड़ा, यहां तक कि इन्हें भगवान शिव (Lord Shiva) को धोखा और एक स्त्री के साथ छल से संबंध भी बनाने पड़े। जानिए ऐसी घटनाएं, जिनमें सृष्टि के कल्‍याण के लिए उन्होंने छल का सहारा लिया।

मधु व कैटभ का वध
मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली दैत्‍य थे, जो ब्रह्माजी को मारना चाहते थे। स्‍वभाव से तपस्‍वी ब्रह्माजी भगवान विष्‍णु की शरण में आए और बोले कि प्रभु आप हमारी इन दैत्‍यों से रक्षा करें। मगर इन दोनों दैत्‍यों को इच्‍छामृत्‍यु का वरदान प्राप्‍त था। भगवान विष्‍णु ने छल से कुछ ऐसी सम्‍मोहन विद्या अपनाई कि दोनों दैत्‍यों ने प्रसन्‍न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। भगवान विष्‍णु ने वरदान मांगा कि मेरे हाथों से मृत्‍यु स्‍वीकार करो। उनके तथास्‍तु बोलते ही भगवान विष्‍णु ने अपनी जांघ पर दोनों का सिर रखकर सुदर्शन चक्र से काट डाला।

शिशु रूप में शिव-पार्वती से छीना बदरीनाथ
भगवान विष्‍णु को तपस्‍या के लिए एकांतवास की आवश्‍यकता थी तो उन्‍हें भगवान शिव और पार्वती का निवास स्‍थान बदरीनाथ धाम सर्वाध‍िक उपयुक्‍त लगा। तब विष्‍णु ने शिशु अवतार लिया और बदरीनाथ स्थित शिव की कुटिया के बाहर आकर रोने लगे। बच्‍चे के रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती आईं और उसे दूध पिलाया और कुटिया के अंदर ले जाकर सुला दिया और शिवजी के साथ स्‍नान करने चली गईं।

जब पार्वती जी वापस आई तो देखा कि दरवाजा अंदर से बंद था। उन्होंने बच्‍चे को जगाने का काफी प्रयास लेकिन बच्‍चा नहीं जगा। तब शिवजी ने कहा कि अब उनके पास दो ही विकल्‍प है या तो यह कि हर चीज को वो जला दें या फिर यहां से कहीं और चले जाएं। बच्‍चे के अंदर सोने के कारण वह उस कुटिया को नहीं जला सकते थे। अत: अंत में उन्‍हें बदरीनाथ छोड़कर केदारनाथ में अपना निवास स्‍थापित करना पड़ा।

बलि से छीना राजपाट
त्रेतायुग में बलि नाम का एक बड़ा दैत्य भगवान विष्‍णु का परमभक्त था। वह बड़ा दानी, सत्यवादी और धर्मपरायण था। आकाश, पाताल और पृथ्वी तीनों लोक उसके अधीन थे, जिससे दुखी होकर सभी देवताओं ने श्रीहरि भगवान विष्णु के पास जाकर उनकी स्तुति की।

प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने सभी को राजा बलि से मुक्ति दिलवाने के लिए वामन अवतार लिया और एक छोटे से ब्राह्मण का वेश बनाकर उन्होंने राजा बलि से तीन पग पृथ्वी मांगी, राजा बलि के संकल्प करने के पश्चात भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण करके अपने तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया तथा राजा बलि को सुतल क्षेत्र में भेज दिया।

शुक्राचार्य की फोड़ी आंख
राजा बलि जब वामन अवतार को तीन पग धरती दान करने का संकल्‍प ले रहे थे तब दैत्‍यों के गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को आगाह किया कि ये वामन अवतार कोई और नहीं भगवान विष्‍णु ही हैं, जो छल से आपका सारा राज-पाट छीन लेंगे। लेकिन बलि तब भी नहीं माने और कहा कि वह दान करने के अपने धर्म से पीछे नहीं हट सकते। जैसे ही राजा बलि संकल्‍प करने के लिए अपने कमंडल से जल लेने चले शुक्रचार्य उनके कमंडल की टोंटी में जाकर बैठ गए, ताकि जल न निकल सके। वामन के रूप में भगवान विष्‍णु शुक्राचार्य की चाल समझ गए और उन्‍होंने टोंटी में सींक डाली तो उसमें बैठे शुक्राचार्य की आंख फूट गई।

यूं देवताओं को पिलाया अमृत
दैत्‍यों के राजा बलि से युद्ध में हार जाने के बाद देवराज इंद्र अन्‍य देवताओं के साथ अपना स्‍वर्गलोक वापस पाने के लिए भगवान श्रीहरि की शरण में गए। श्रीहरि ने कहा कि आप सभी देवतागण दैत्यों से सुलह कर लें और उनका सहयोग पाकर मदरांचल को मथानी तथा वासुकि नाग को रस्सी बनाकर क्षीरसागर का मंथन करें। समुद्र मंथन से जो अमृत प्राप्त होगा उसे पिलाकर मैं आप सभी देवताओं को अजर-अमर कर दूंगा तत्पश्चात ही देवता, दैत्यों का विनाश करके पुनः स्वर्ग का आधिपत्य पा सकेंगे। अमृत के लालच में आकर दैत्‍य समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए।

जब समु्द्र मंथन करने पर अमृत निकला तो सुर और असुरों में उसको लेकर झगड़ा होने लगा। तब भगवान विष्‍णु ने मोहिनी रूप धरकर छल से केवल देवताओं को ही अमृतपान कराया।

देवी वृंदा (Devi Vrinda) का किया सतीत्व भंग
एक समय जलंधर नाम के एक राक्षस के आतंक से तीनों लोक तंग आ चुके थे। यहां तक कि एक बार युद्ध में भगवान शिव को भी उसने पराजित कर दिया था। उसकी अपार शक्तियों का कारण थी उसकी पत्‍नी वृंदा। वृंदा के पतिव्रता धर्म के चलते जलंधर इतना शक्तिशाली था। आखिरकार, भगवान विष्‍णु समूचे विश्‍व की रक्षा के लिए जलंधर का रूप धरकर वृंदा के करीब आए और उसका सतीत्‍व भंग कर दिया। ऐसा होते ही जलंधर की शक्तियां क्षीण होने लगीं और वह देवताओं से युद्ध में हार गया।

छल से ही शिव के बचाए प्राण
भस्मासुर एक महापापी असुर था। उसने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए भगवान शंकर की घोर तपस्या की और उनसे अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन भगवान शंकर ने कहा कि तुम कुछ और मांग लो तब भस्मासुर ने वरदान मांगा कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूं वह भस्म हो जाए। भगवान शंकर ने कहा- तथास्तु। ऐसा होते ही भस्‍मासुर भगवान शिव के ऊपर ही हाथ रखकर उन्‍हें भस्‍म करने के लिए दौड़ने लगा। तब शिवजी को बचाने के लिए भगवान विष्‍णु ने सुंदर स्‍त्री का रूप धरा और भस्‍मासुर को अपने मोहपाश में फंसाकर उसका हाथ उसी के सिर पर रखवा दिया, जिससे वह तत्‍काल भस्‍म हो गया और भगवान शिव की जान बच सकी।