धर्म-कर्म

Kashi Vishwanath: मां अन्नपूर्णा साल में सिर्फ चार बार इस मंदिर में देती हैं दर्शन

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के रेड जोन में सैकड़ों वर्ष पुराना अन्नपूर्णा मंदिर (Annapurna Mandir) है, जिसे राजा देवोदास के पुरोहित धनन्जय की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ अन्नपूर्णा, मां भूमि देवी और मां लक्ष्मी जी ने स्वर्ण प्रतिमा के रूप में दर्शन दिया था। जो आम भक्तों के लिए धनतेरस से […]

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के रेड जोन में सैकड़ों वर्ष पुराना अन्नपूर्णा मंदिर (Annapurna Mandir) है, जिसे राजा देवोदास के पुरोहित धनन्जय की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ अन्नपूर्णा, मां भूमि देवी और मां लक्ष्मी जी ने स्वर्ण प्रतिमा के रूप में दर्शन दिया था। जो आम भक्तों के लिए धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक मंदिर के कपाट खोले जाते हैं।

विश्व का अकेला मंदिर, जहां प्रसाद में मिलता है खजाना
यह दुनिया का अकेला ऐसा मंदिर है, जहां धनतेरस के दिन दर्शन करने वाले भक्तों को माता के प्रसाद के रूप में खजाना (पैसा) और धान का लावा दिया जाता है। जिसके कारण लाखों की संख्या में भक्त यहां दर्शन के लिए आते है। माना जाता है कि यहां खजाना प्रसाद के रूप में पाने वाला कभी अभाव में नहीं रहता है।

वैसे तो श्री काशी विश्वनाथ (Kashi Vishwanath Mandir) परिसर में माता अन्नपूर्णा का मंदिर का मुख्य विग्रह मौजूद है। जिसका भक्त काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद आते हैं। लेकिन इसी परिसर के पहले तल पर माता अन्नपूर्णा का स्वर्ण मयी प्रतिमा के साथ भूमि देवी और लक्ष्मी जी की भी प्रतिमा है। जिसे सुरक्षा और जगह अभाव के कारण पूरे वर्ष में सिर्फ चार दिनों के लिए खोला जाता है। अन्नपूर्णा मंदिर के प्रांगण में मां काली, भगवान शंकर, माता पार्वती और नरसिंह भगवान की मूर्तियां भी स्थापित है। जिनका दर्शन सालों भर किया जा सकता है।

धन्वन्तरि के पपौत्र धनन्जय से भी जुड़ी मान्यता
पुराणों की मानें तो इस मंदिर में वैद्यराज धन्वन्तरि के पपौत्र धनन्जय ने कठोर तपस्या की। जिसके बाद माता प्रसन्न होकर उन्हें स्वर्ण रूप में दर्शन दिया। कहा जाता है कि ऐसी ही प्रतिमा कालांतर में मंदिर के पुराने महंतों को किसी रहस्यमयी स्थान से मिली। इसी प्रतिमा को भक्तों के कल्याण के लिए धनतेरस के दिन मंगला आरती के बाद अन्नकूट महोत्सव तक खोला जाता है। लेकिन खजाने के रूप में दिया जाने वाला प्रसाद सिर्फ धनतेरस के पर्व पर ही दिया जाता है।

कहते है कि माता ने स्‍वयं भगवान शिव को खाना खिलाया था। इस मंदिर की दीवारों पर ऐसे चित्र बने हुए हैं। एक चित्र में देवी कलछी पकड़ी हुई है।

बताते हैं कि अन्नपूर्णा मंदिर में ही आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्त्रोत् की रचना कर के ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी। ऐसा ही एक श्‍लोक है अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे, ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती। इस में भगवान शिव माता से भिक्षा की याचना कर रहे हैं।

इस मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कथा यहां बेहद चर्चित है। कहते हैं एक बार काशी में अकाल पड़ गया था, चारों तरफ तबाही मची हुई थी और लोग भूखों मर रहे थे। उस समय महादेव को भी समझ नहीं आ रहा था कि अब वे क्‍या करें। ऐसे में समस्‍या का हल तलाशने के लिए वे ध्‍यानमग्‍न हो गए, तब उन्हें एक राह दिखी कि मां अन्नपूर्णा ही उनकी नगरी को बचा सकती हैं।

इस कार्य की सिद्धि के लिए भगवान शिव ने खुद मां अन्नपूर्णा के पास जाकर भिक्षा मांगी। उसी क्षण मां ने भोलेनाथ को वचन दिया कि आज के बाद काशी में कोई भूखा नहीं रहेगा और उनका खजाना पाते ही लोगों के दुख दूर हो जाएंगे। तभी से अन्‍नकूट के दिन उनके दर्शनों के समय खजाना भी बांटा जाता है।

पूरे साल करते हैं भक्त धन और अन्न की पूजा
इस मंदिर में हालांकि रोजाना भीड़ होती है, लेकिन धनतेरस के दिन इस मंदिर परिसर के पहले तल्ले पर स्थित माता अन्नपूर्णा, भूमि देवी और लक्ष्मी जी के स्वर्ण मयी प्रतिमा का दर्शन होता है। जिसके लिए भक्त देश के कोने-कोने से आते हैं।