माना जाता है कि महापंडित और शिवभक्त रावण युद्ध में अपनी विजय सुनिश्चत करने के लिए त्रिदेवों की जननी माता चंडी दुर्गा का पाठ ब्राह्मणों से करवा रहा था। ब्राह्मणों के पाठ की तैयारी और उनकी सेवा के लिए कई लोग नियुक्त थे। उन्हीं लोगों के बीच हनुमानजी (Hanumanji) भी ब्राह्मण बालक का रूप धरकर ब्राह्मणों की सेवा में जुट गए।
बालक हनुमानजी की निःस्वार्थ सेवा देखकर चण्डी पाठ करने वाले उन ब्राह्मणों ने प्रसन्न होकर हनुमानजी से वर मांगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा-प्रभु, यदि आप मेरी सेवा से प्रसन्न हैं तो आप जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका केवल एक अक्षर मेरे कहे अनुसार बदल दीजिए।
माना जाता है कि हनुमानजी स्वयं शास्त्रों के ज्ञाता हैं। उनके जैसा ज्ञानी अन्य कोई नहीं हैं, इसलिए हनुमानजी चण्डी पाठ के लिए उच्चारित किए जा रहे एक-एक मंत्र का गूढ़ अर्थ जानते थे, जबकि मंत्रों का इतना गहन ज्ञान उन ब्राह्मणों को नहीं था। सो वे ब्राह्मण रूपी हनुमानजी के इस रहस्य को समझ न सके और जल्दबाजी में तथास्तु कह दिया। दरअसल, हनुमानजी ने चण्डीपाठ के जयादेवी…भूर्तिहरिणी वाले मंत्र में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करने का निवेदन किया, जिसे उन ब्राह्मणों ने मान लिया था।
‘भूर्तिहरिणी’ का अर्थ होता है प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ‘भूर्तिकरिणी‘ का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली। उच्चारण के इस परिवर्तन मात्र से माता चण्डी का पाठ विकृत हो गया, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण को अमरता प्रदान करने के स्थान पर उसका सर्वनाश कर दिया।