धर्म-कर्म

400 साल पुराने गणपतिपुले मंदिर में खुद प्रकट हुए थे गणेश जी

इस मंदिर को गणपतिपुले मंदिर (Ganpatipule temple) के नाम से जाना जाता है और यह मंदिर रत्नागिरि जिले में स्थित है। मंदिर आश्चर्यजनक रूप से 400 साल पुराना है।

कोंकण समुद्र तट पर श्री गणेश (Shri Ganesh) का विशाल मंदिर स्थापित है। मंदिर में भक्तों का तांता सालभर लगा रहता है। यहां स्थित स्वयंभू गणेश मंदिर पश्चिम द्वार देवता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं।

इस मंदिर को गणपतिपुले मंदिर (Ganpatipule temple) के नाम से जाना जाता है और यह मंदिर रत्नागिरि जिले में स्थित है। मंदिर आश्चर्यजनक रूप से 400 साल पुराना है। यह माना जाता है कि भगवान गणपति खुद यहां प्रकट हुए जिससे स्वयंभू का खिताब दिया गया। मंदिर में स्थित गणेश जी की मूर्ति सफेद रेत से बनी हुई है और सालाना हजारों भक्तों को आकर्षित करती है।

यहां एक अखंड चट्टान से नक़्क़ाशा गया है। यह हजारों और हजारों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो मंदिर में भगवान गणपति का आशीर्वाद पाने के लिए हर साल भीड़ करते है। गणपति को पश्चिम द्वार का देवता माना जाता है। यह माना जाता है कि स्थानीय लोग जो गणपतिपुले में रहते हैं उन्हें खुद भगवान आशीर्वाद देकर उनकी देखभाल करते है। मोदक, भगवान गणपति का पसंदीदा भोजन बिल्कुल एक स्वादिष्ट मिठाई का भोग गणपतिजी को लगाया जाता है।

गणेश जी के इस प्राचीन मंदिर में लोग अपना भगवान का आशीर्वाद लेने दूर दूर से आते हैं और प्रसन्न होकर जाते हैं। कोंकण समुद्र तट पर स्थित यह मंदिर सुंदर बीच और स्वच्छ पानी के अलावा गणपतिपुले वनस्पति के मामले में भी काफी समृद्ध है। यह समुद्र तट मुंबई से 375 किलोमीटर की दूर, रत्नागिरि जिले में बना है। महाराष्ट्र राज्य में रत्नागिरि के एक छोटे से गांव में बने इस मंदिर वाले क्षेत्र में मैनग्रोव और नारियल के पेड़ों की भरमार है।