विविधताओं में एकता का प्रतीक भारतवर्ष पर्वों व त्योहारों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व के भीतर निहित है संपूर्ण मानव जाति के लिए अनेक प्रेरणाएं व संदेश।
इस कार्तिक माह में भी एक ऐसा हीं पर्व आ रहा है छठ। कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ महापर्व भारत के अनेक राज्यों जैसे बिहार, झारखंड, त्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात व दिल्ली आदि जगहों सहित विश्व भर के अन्य देशों जैसे नेपाल, मॉरीशस, फिजी आदि विदेशी प्रांतों में भी बहुत हीं हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
समय के साथ साथ छठ पर्व संपूर्ण विश्व भर में प्रचलित होता जा रहा है।
कहा जाता है कि बिहार के नालंदा जिले के बड़गाँव में स्थित सूर्य मंदिर हीं वह जगह है जहाँ से छठ पर्व की शुरुआत हुई थी।
इस पर्व के संबंध में पुराणों में एक कथा प्रचलित है। यह कथा है राजा प्रियव्रत की।
प्रियव्रत की कोई संतान न होने के कारण अत्यंत दुखी व व्यथित रहते थे। राजा ने महर्षि कश्यप के समक्ष प्रार्थना की। महर्षि ने राजा व उनकी पत्नी मालिनी की विनती स्वीकार कर पुत्रेष्ठी यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के समाप्ति के उपरान्त महर्षि ने आहुति हेतु बनाई गई खीर रानी मालिनी को ग्रहण करने के लिए दी। उस खीर के प्रभाव से राजा के घर पुत्र ने जन्म लिया, किंतु वह मृत पैदा हुआ। इससे राजा प्रियव्रत अत्यंत विचलित हो उठे, उन्होंने पुत्र-वियोग में स्वयं के प्राण को त्यागने की ठानी, परन्तु विधाता की कुछ और हीं इच्छा थी। राज के समक्ष ईश्वर की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं।
राजा ने उन्हें प्रणाम कर पुछा कि हे देवि आप कौन हैं?
देवी बोलीं मेरा नाम षष्ठी है, क्योंकि मैं श्रृष्टि के मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुईं हुँ।
राजा ने पुनः पूछा कि हे देवि आपके प्राकट्य का क्या कारण है?
देवसेना ने कहा– राजन् आप पुत्र वियोग में विचलित ना होइए, निश्चिंत होकर मेरा पूजन किजिए।
कथा के अनुसार राजा ने देवसेना की आज्ञा का पालन कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा हेतु षष्ठी का व्रत व पूजन किया। फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
राजा प्रियव्रत ने यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को की थी। अतः ऐसी मान्यता है कि तभी से यह षष्ठी व्रत मनाया जाने लगा।
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