दिवाली का हिंदू त्योहार या रोशनी का त्योहार 2,500 साल से अधिक पुराना है। यह हर साल दुनियाभर के हिंदू समुदायों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाने वाली दिवाली इस साल 4 नवंबर, वीरवार को मनाई जाएगी। दिवाली देवी लक्ष्मी को समर्पित एक उत्सव है। इस दिन, उपासक समृद्धि और धन की देवी लक्ष्मी की पूजा-प्रार्थना करते हैं। किंवदंतियों के अनुसार, इस दिन, देवी लक्ष्मी अपने उपासकों के पास जाती हैं और उन्हें उपहार देती हैं।
इतिहास
लक्ष्मी पूजा के दिन भगवान विष्णु ने लक्ष्मी सहित सभी देवताओं को बलि के कारागार से मुक्त किया था और उसके बाद सभी देवता क्षीर सागर में सोने चले गए, ऐसी कथा है।
त्योहार मनाने की विधि
इस दिन सुबह मंगल स्नान कर लक्ष्मी पूजन किया जाता है। दोपहर में पार्वण श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन तथा प्रदोष के दौरान बंदनवार द्वारा सजाए गए मंडप में देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु आदि देवता तथा कुबेर की पूजा की जाती है।
लक्ष्मी पूजन करते समय एक चौकी पर अक्षत से अष्टदल कमल अथवा स्वस्तिक बना कर उस पर लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करते हैं। कहीं-कहीं कलश पर ताम्बे की थाली रखकर लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित की जाती है। कुबेर की मूर्ति लक्ष्मी के पास कलश पर रखी जाती है। उसके बाद, लक्ष्मी और अन्य देवताओं को लौंग, इलायची और चीनी मिलाकर गाय के दूध से बना खोवा (मावा) का भोग लगाया जाता है। धनिया, गुड़, धान की लाही, बताशे आदि लक्ष्मीजी को प्रसाद मे चढ़ाते है। उसके उपरांत प्रसाद परिजनों में बांटा जाता है। ब्राह्मणों और गरीब लोगों को भोजन कराया जाता है । कार्तिक की अमावस्या की रात, लक्ष्मी जगह – जगह भ्रमण करती है और अपने निवास के लिए उपयुक्त स्थान खोजती है। लक्ष्मी ऐसे घर में रहना पसंद करती हैं जहां चरित्रवान, कर्तव्यनिष्ठ, संयमी, पवित्र, धर्मपरायण और क्षमाशील पुरुष तथा गुणी और पतिव्रता महिलाएं हों।
लक्ष्मीपूजन के दिन का महत्व
अमावस्या को आम तौर पर एक अशुभ दिन के रूप में वर्णित किया जाता है; परन्तु इसका अपवाद, यह अमावस्या है। इस दिन को शुभ माना जाता है; लेकिन यह सभी कार्यों के लिए शुभ हो ऐसा नहीं है, इसलिए इस दिन को शुभ दिन की अपेक्षा आनंद देने वाले दिन कहना अधिक योग्य है।
देवी लक्ष्मी से की जाने वाली प्रार्थना
लक्ष्मी जी के सामने अपना लेखा-जोखा रखें और यह प्रार्थना कर सकते हैं , 'हे लक्ष्मी देवी, हमने आपके आशीर्वाद से प्राप्त धन का विनियोग सत्कार्य और धार्मिक कार्यों के लिए किया है तथा इसका तालमेल बिठाकर आपके सामने रखा है। इस पर आप अपनी कृपा दृष्टि डालें । मैं आपसे कुछ भी छुपा नहीं सकता। मैंने अगर आपका विनियोग योग्य रीति से नहीं किया तो आप मुझसे दूर चली जाएंगी इसका एहसास निरंतर मेरे मन में रहता है । इसलिए हे लक्ष्मीदेवी, आप मुझे मेरे खर्चे को सहमति देने के लिए कृपया भगवान को कहें ; क्योंकि आपकी सिफारिश के बिना वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे । अगले साल भी हमारा काम सुचारू रूप से चलता रहे ऐसी आप से प्रार्थना है ।'
लक्ष्मी पूजन की रात को कचरा घर से क्यों निकालते हैं?
लक्ष्मी पूजन की रात को कचरा घर से निकालने की कृति को अलक्ष्मी निस्सारण कहा जाता है।
महत्त्व
हमने अपने गुणों की वृद्धि की तब भी दोषों के कम करने पर ही गुणों का महत्व होता है । उसी प्रकार जहाँ लक्ष्मी का वास हुआ तब भी अलक्ष्मी का नाश होना चाहिए; इसलिए इस दिन नई झाडू खरीदते हैं। उन्हें 'लक्ष्मी' कहा जाता है।
इस दिन करने योग्य कृतियां
"लक्ष्मी पूजन की मध्यरात्रि को नई झाड़ू से कचरा सूप में भरकर घर से बाहर फेंकना चाहिए, इसे 'अलक्ष्मी निस्सारण कहते है। प्रायः रात को घर में झाड़ू लगाना और कचरा बाहर फेंकना ऐसे नहीं किया जाता, मात्र इस रात्रि को ही ऐसा किया जाता है। कचरा निकालते समय सूप को झाड़ू से बजाते हैं, जिसे अलक्ष्मी (दरिद्रता) को बाहर करना कहते है।
Comment here
You must be logged in to post a comment.