धर्म-कर्म

कोणार्क से भी 200 साल पुराना है देवभूमि उत्तराखंड का सूर्य मंदिर

भारत में उड़ीसा के कोणार्क का सूर्य मंदिर ऐसे तो विश्व प्रसिद्ध है, लेकिन उत्तराखंड (Uttarakhand) की पवित्र देवभूमि में भी भगवान सूर्यदेव साक्षात विराजते हैं कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Surya Mandir) के रूप में।

इस मंदिर में सूर्य भगवान (Surya Bhagwan) की मूर्ति किसी धातु या पत्थर से निर्मित नहीं, बल्कि यह मूर्ति बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी है। लाल वर्ण, सात घोड़ों के रथ में सवार भगवान सूर्य देव को सर्वप्रेरक, सर्व प्रकाशक, सर्व कल्याणकारी माना जाता है। भगवान सूर्य देव (Surya Dev) को “जगत की आत्मा” कहा जाता है। सूर्य देव से ह़ी पृथ्वी में जीवन है और सूर्य ही नवग्रहों में प्रमुख देवता माने जाते हैं।

सारे देवताओं में सिर्फ भगवान सूर्य ही एक ऐसे देव हैं जो हर रोज साक्षात दर्शन देते हैं और जिन से समस्त विश्व के प्राणियों, पेड़ पौधों का जीवन चक्र अविरल रूप से चलता रहता है। इसीलिए हमारे धार्मिक ग्रंथो में सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व बताया ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌गया है। प्रातः उठकर उगते हुए सूर्य देव को जल देना व उनकी आराधना को सर्वोच्च माना गया है। सूर्य देव से ह़ी समस्त मनुष्य जाति को बिना रुके, बिना थके अविरल चलते रहने की प्रेरणा मिलती हैं चाहे समय कैसा ह़ी क्यों ना हो।

भारत में उड़ीसा के कोणार्क का सूर्य मंदिर ऐसे तो विश्व प्रसिद्ध है, लेकिन उत्तराखंड (Uttarakhand) की पवित्र देवभूमि में भी भगवान सूर्यदेव साक्षात विराजते हैं कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Surya Mandir) के रूप में। अल्मोड़ा से लगभग 16-17 किलोमीटर की दूरी में अधेली सुनार गांव में स्थित हैं। यह भव्य सूर्य मंदिर समुद्र तल से लगभग 2116 मीटर की ऊंचाई पर है। यह सूर्य मंदिर कोणार्क (Surya Mandir Konark) के सूर्य मंदिर से भी लगभग 200 साल पुराना माना जाता है।

मंदिर का निर्माण
इस कटारमल सूर्य मंदिर का निर्माण लगभग नवी शताब्दी का माना जाता है। उस वक्त उत्तराखंड में कत्यूरी राजवंश का शासन हुआ करता था। इस मंदिर के निर्माण का श्रेय कत्यूरी राजवंश के राजा कटारमल को जाता है। इसीलिए इस मंदिर को “कटारमल सूर्य मंदिर” कहा जाता हैं। ऐसा माना जाता हैं कि इस मंदिर का निर्माण राजा कटारमल ने एक ह़ी रात में करवाया था।

मंदिर की विशेषता
सीढीनुमा खेतों को पार करने के बाद ऊंचे-ऊंचे देवदार के हरे भरे पेड़ों के बीच तथा पहाड़ी सड़कनुमा पगडंडी से चढ़ते हुए एक पर्वत पर स्थित कटारमल सूर्य मंदिर पर जब पहुंचते हैं। मंदिर में कदम रखते ही उसकी भव्यता, विशालता का अनुभव अपने आप ही हो जाता है। विशाल शिलाओं पर उकेरी गयी कलाकृतियों व लकड़ी के दरवाजों में की गयी अद्धभुत नक्काशी देखते ह़ी बनती हैं।और सारी थकान अपने आप ही मिट जाती हैं।

कटारमल सूर्य मंदिर का मुख पूर्व दिशा की तरफ है। इस मंदिर को एक ऊंचे वर्गाकार चबूतरे पर बनाया गया है। मुख्य मंदिर की संरचना त्रिरथ है। गर्भगृह का आकार वर्गाकार है तथा शिखर वक्र रेखीय है जो नागर शैली की विशेषता है।

इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पर सूर्य भगवान की मूर्ति किसी धातु या पत्थर से निर्मित नहीं है बल्कि यह मूर्ति बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी है जो‌ अपने आप में अद्भुत व अनोखी है। इसीलिए इस सूर्य मंदिर को बड़ आदित्य मंदिर भी कहा जाता है।
कटारमल सूर्य मंदिर की वास्तुकला व शिल्पकला का एक अद्भुत नमूना है।

मुख्य सूर्य मंदिर के अतिरिक्त इस जगह पर 45 छोटे-बड़े और भी मंदिर है। यहां पर भगवान सूर्य देव के अलावा शिव, पार्वती, गणेश जी, लक्ष्मी नारायण, कार्तिकेय व नरसिंह भगवान की मूर्तियां भी स्थापित है।