महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Temple) भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga) मतलब वह स्थान जहां भगवान शिव ने स्वयं लिंगम स्थापित किए थे। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में स्थित है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। मंदिर की महिमा यूं तो इस मंदिर का काफी महत्व है। यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन कुंभ के दौरान यहां भीड़ और भी अधिक बढ़ जाती है।
महाकुंभ मेले में कलापिक बाबा ने भगवान शिव की भस्म आरती को लेकर सवाल खड़े किए थे और उन्होंने महाकाल की आरती में श्मशान की राख का इस्तेमाल किए जाने की मांग रखी। इनका कहना है कि लोगों को इस बात पर उनके साथ आना चाहिए, नहीं तो यह उज्जैन के लिए संकटकारी हो सकता है। यह मांग बाबा ने इसलिए उठायी है, क्योंकि वर्तमान में महाकाल की भस्म आरती में कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर तैयार किए गए भस्म का प्रयोग किया जाता है। महाकाल का श्रृंगार इन्हीं भस्म से हर सुबह महाकाल की आरती होती है। दरअसल यह भस्म आरती महाकाल का श्रृंगार है और उन्हें जगाने की वििध है।
शिव पुराण में जिक्र
भस्म आरती का जिक्र सबसे पहले शिवपुराण में मिलता है। दरअसल माता सती के अग्नि समाधि का संदेश मिलते ही भगवान शिव क्रोधित हो गए थे। क्रोध में उन्होंने अपना मानसिक संतुलन खो दिया और माता सती के मृत शरीर को लेकर इधर-उधर घूमने लगे। भगवान शिव की ये हालत जब भगवान विष्णु ने देखा तो उन्हें संसार की चिंता सताने लगी।
भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से कई हिस्सों में बांट दिया था। यह हिस्से देश के कई स्थानों पर गिरे और पिंड बन गए। मगर शिव जी के हाथों में केवल माता के शव की भस्म रह गई। भगवान शिव को लगा कि कहीं वह सती का हमेशा के लिए न खो दें इसलिए उन्होंने उनकी शव की राख को अपने शरीर पर लगा दी थी।
ऐसी मान्यता है कि वर्षों पहले श्मशान के भस्म से भूतभावन भगवान महाकाल की भस्म आरती होती थी, लेकिन अब यह परंपरा खत्म हो चुकी है और अब कंडे के बने भस्म से आरती श्रृंगार किया जा रहा है।
आरती का नियम
इस आरती का एक नियम यह भी है कि इसे महिलाएं नहीं देख सकती हैं। इसलिए आरती के दौरान कुछ समय के लिए महिलाओं को घूंघट करना पड़ता है। पुजारी के वस्त्र आरती के दौरान पुजारी एक वस्त्र धोती में होते हैं। इस आरती में अन्य वस्त्रों को धारण करने का नियम नहीं है। महाकाल की आरती भस्म से होने के पीछे ऐसी मान्यता है कि महाकाल श्मशान के साधक हैं और यही इनका श्रृंगार और आभूषण है।
भस्म का प्रसाद
महाकाल की पूजा में भस्म का विशेष महत्व है और यही इनका सबसे प्रमुख प्रसाद है। ऐसी धारणा है कि शिव के ऊपर चढ़े हुए भस्म का प्रसाद ग्रहण करने मात्र से रोग दोष से मुक्ति मिलती है।
उज्जैन में महाकाल के प्रकट होने के विषय में कथा है कि दूषण नाम के असुर से लोगों की रक्षा के लिए महाकाल प्रकट हुए थे। दूषण का वध करने के बाद भक्तों ने जब शिव जी से उज्जैन में वास करने का अनुरोध किया तब महाकाल ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ।