धर्म-कर्म

शनिदेव पर भगवान विष्णु के ‘शरीर का मैल’ चढ़ाने से मिलते है शुभ प्रभाव

शनिवार का दिन शनिदेव (Shanidev) की पूजा के लिए खास माना जाता है। शनिदेव के अशुभ प्रभाव को कम करने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के पूजन किए जाते हैं। शनिवार को कौन सा कार्य करना चाहिए व कौन सा नहीं, इन बातों का भी ध्यान रखना चाहिए। जिससे अनजाने में भी शनिदेव का कुप्रभाव न पड़े।

शनिवार का दिन शनिदेव (Shanidev) की पूजा के लिए खास माना जाता है। शनिदेव के अशुभ प्रभाव को कम करने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के पूजन किए जाते हैं। शनिवार को कौन सा कार्य करना चाहिए व कौन सा नहीं, इन बातों का भी ध्यान रखना चाहिए। जिससे अनजाने में भी शनिदेव का कुप्रभाव न पड़े।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनिवार को घर में तेल खरीद कर नहीं लाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से शनिदेव का कुप्रभाव घर-परिवार पर पड़ता है। शनिदेव की कृपा पाने के लिए हर शनिवार शनिदेव पर तेल चढ़ाना चाहिए। इसलिए लोग हर शनिवार मंदिर में शनिदेव की मूर्ति पर तिल के तेल को अर्पित करते देखे जा सकते हैं।

अधिकांश लोग इस कर्म को शनि की कृपा प्राप्त करने की प्राचीन परंपरा मानते हैं। वास्तविकता में इस परंपरा के पीछे धार्मिक और ज्योतिषी महत्व है। धार्मिक मतानुसार तिलहन अर्थात तिल भगवान विष्णु के शरीर का मैल हैं। इससे बने हुए तेल को सर्वदा पवित्र माना जाता है।
तिल का तेल चढ़ाने का धार्मिक महत्व

आंनद रामायण के अनुसार हनुमान जी पर जब शनि की दशा प्रांरभ हुई उस समय समुद्र पर रामसेतु बांधने का कार्य चल रहा था। राक्षस पुल को हानि न पहुंचाए, यह आंशका सदैव बनी हुई थी। पुल की सुरक्षा का दायित्‍व हनुमान जी को सौपा गया था। शनिदेव हनुमान जी के बल और कीर्ति को जानते थे। उन्होंने पवनपुत्र को शरीर पर ग्रह चाल की व्यवस्था के नियम को बताते हुए अपना आशय बताया।

हनुमान जी ने कहा कि वे प्रकृति के नियम का उल्‍लघंन नहीं करना चाहते लेकिन राम-सेवा उनके लिए सर्वोपरि हैं। उनका आशय था कि राम-काज होने के बाद ही शनिदेव को अपना पूरा शरीर समर्पित कर देंगे, परंतु शनिदेव ने हनुमान जी का आग्रह नहीं माना। वे अरूप होकर जैसे ही हनुमान जी के शरीर पर आरूढ़ हुए तब हनुमान जी ने विशाल पर्वतों से टकराना शुरू कर दिया। शनिदेव शरीर पर जिस अंग पर आरूढ़ होते, महाबली हनुमान जी उसे ही कठोर पर्वत शिलाओं से टकराते। फलस्वरूप शनिदेव बुरी तरह घायल हो गए। उनके शरीर पर एक-एक अंग आहत हो गया। शनिदेव जी ने हनुमान जी से अपने किए की क्षमा मांगी। हनुमान जी ने शनिदेव से वचन लिया कि वे उनके भक्तों को कभी कष्ट नहीं पहुंचाएंगे।

आश्वस्‍त होने के बाद रामभक्त अंजनीपुत्र ने कृपा करते हुए शनिदेव को तिल का तेल दिया, जिसे लगाते ही उनकी पीड़ा शांत हो गई। तब से शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए उन पर तिल के तेल से अभिषेक किया जाता हैं।

तिल का तेल चढ़ाने का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि की धातु सीसा है। इसे संस्कृत भाषा में नाग धातु भी कहते हैं। इसी धातु से सिंदूर का निर्माण होता हैं। सीसा धातु विष भी हैं। तंत्र शास्त्र में इसके विभिन्‍न प्रयोगों की विस्तार से चर्चा की गई है। सिंदूर पर मंगल का अधिपत्य होता है।

लोहा पृथ्वी के गर्भ से निकलता है और मंगल ग्रह देवी पृथ्वी के पुत्र माने जाते हैं। अतः लोहा मंगल ग्रह की धातु है। तेल को स्नेह भी कहा गया है। यह लोहे को सुरक्षित रखता है। लोहे पर यह जंग नहीं लगने देता और यदि लगा हुआ हो तो उसे साफ कर देता है। मंगल प्रबल हो तो शनि का दुष्प्रभाव खत्म हो जाता है। इसे शनि को शांत करने का सरल उपाय कहा गया हैं।