धर्म-कर्म

द्रोणाचार्य द्वारा स्थापित इस शिवलिंग की आज भी पूजा करने आते हैं अश्वत्थामा!

यह स्थान उत्तर प्रदेश के कानपुर के ग्रामीण क्षेत्र बांका छतरपुर, शिवराजपुर में बाबा खेरेश्वर धाम के नाम से स्थित है। कहते हैं कि अमर अश्वत्थामा आज भी यहां नित्य शिव उपासना करने आते हैं।

द्वापर युग के महाभारत (Mahabharat) काल में अरण्य वन का उल्लेख आता है, जहां पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य रहते थे। यहां गुरु द्रोणाचार्य (Dronacharya) ने एक शिवलिंग (Shivlinga) की स्थापना की थी। यहीं पर द्रोणाचार्य अपने अजर अमर पुत्र अश्वत्थामा का गुप्त शस्त्र विधाओं का ज्ञान देते थे।

गुरु द्रोणाचार्य ने यहीं अपने शिष्यों को ब्रह्मास्त्र व शब्दभेदी वाण जैसे अनेक दिव्य शस्त्र प्रदान किए थे। यह स्थान गंगा के तट पर है। प्राचीन किवदंती है कि अश्वत्थामा द्रौपदी के पांच पुत्रों का वध करने के बाद इसी शिवलिंग के सामने हत्यारे की तरह चिल्लाया करते थे।

तब खेरेश्वर बाबा ने उन्हें समाधिस्थ होने का आशीष दिया और साथ ही कहा कि तुम सप्तऋषि मंडल में अपना स्थान प्राप्त करोगे।

प्रात: शिवलिंग पर चढ़े मिलते हैं जंगली पुष्प
यह स्थान उत्तर प्रदेश के कानपुर के ग्रामीण क्षेत्र बांका छतरपुर, शिवराजपुर में बाबा खेरेश्वर धाम के नाम से स्थित है। कहते हैं कि अमर अश्वत्थामा आज भी यहां नित्य शिव उपासना करने आते हैं।

यहां के पुजारी पीढ़ी दर पीढ़ी बाबा खेरेश्वर की सेवा करते चले आ रहे हैं। पुजारियों के पूर्वजों के अनुसार यहां शिवलिंग के ऊपर प्रातः जंगली पुष्प और जल प्राप्त होता रहा है। जबकि नित्य रात्रि में शिवलिंग को स्नान करा स्वच्छ करने के पश्चात मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं।

जब सुबह यहां मंदिर के पट खोले जाते हैं तो पूजा-अर्चना की हुई मिलती है। सबका मानना है कि अश्वत्थामा यहां अब भी हर रोज पूजा करने आते हैं।

अपने आप गाय का दूध यहां गिरता था
आज किसी के पास इतने दिव्य चक्षु नहीं हैं जो अश्वत्थामा के दर्शन पा सके। अंतिम बार अश्वत्थामा के दर्शन पृथ्वीराज चौहान ने किए थे। इस शिवलिंग का पता अब से 500 वर्ष पहले लगा था।

इसकी एक चर्चित कथा है कि एक यादव वंश का ग्वाला था जिसके पास श्यामा गाय थी, यह गाय इतनी उच्च कोटि की थी कि बिना बच्चे दिए ही दूध देती थी। ग्वाला गाय को सुबह चरने के लिए छोड़ देता था और शाम को जब वह वापस आती थी तो उसके थन दूध खाली होते थे, इस कारण ग्वाला काफी परेशान रहा करता था।

एक दिन उसने गाय का पीछा करने का निर्णय लिया। इस पर उसने कई दिन तक उसका पीछा किया और एक खास बात पाई कि श्यामा गाय उसी झाड़ी में एक ही जगह पर दूध गिराती थी। जिज्ञासा वश ग्वाले ने भूमि को खोदा और इस शिवलिंग को पाया।

उसी समय लखनऊ के एक धनी व्यक्ति बिहारी लाल सेठ को एक स्वप्न आया कि द्रोणाचार्य द्वारा स्थापित शिवलिंग के मंदिर का निर्माण कराओ। इस पर उसने इस मंदिर का गुप्तदान से निर्माण कराया।

हालांकि इस बात का कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है किंतु यहां के पुजारियों और स्थानीय वासियों के बीच यह आम चर्चा है। चूंकि उस समय मुगलों का शासन था, इसलिए इस मंदिर में मुगल काल के स्थापत्य की झलक देखने को मिलती है।

बिठूर के राजा नानाराव पेशवा भी यहीं शिवोपासना किया करते थे। पृथ्वीराज चौहान ने इसी स्थान पर वर्षो शिवजी की घोर तपस्या की थी। बाबा खेरेश्वर की असीम कृपा से एक दिन शिवोपासना के समय पृथ्वीराज चौहान को अश्वत्थामा के दर्शन हो गए। पृथ्वीराज चौहान ने अश्वत्थामा के विशाल स्वरूप और तेज को देखकर जान लिया कि यह कोई साधारण मानव नहीं हैं।

पृथ्वीराज चौहान अपनी उपासना के बल पर समझ गए थे कि इनकी आयु कई हजार साल की है। कहते हैं पृथ्वीराज चौहान की शिव उपासना से प्रसन्न होकर ही अश्वत्थामा ने उन्हें शब्दभेदी बाण दिया। पृथ्वीराज चौहान के बाद कोई भी शब्दभेदी बाण चलाना नहीं जान पाया।

पृथ्वीराज का भविष्य देख अश्वत्थामा ने उन्हें यह विधा दी जिसके कारण पृथ्वीराज ने प्रतिशोध लेने का चमत्कारी इतिहास रचा।

“चार बास चौबीस गज, अंगुल अष्ट परिमाण
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।”

जब मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान की आंखे निकाल ली तब उक्त संवाद को सुनकर पृथ्वीराज चौहान ने अश्वत्थामा द्वारा दिए गए शब्द भेदी बाण का प्रयोग करके गोरी का वध किया था।

खेरेश्वर बाबा की महिमा असीम है। यहां पर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होती देख भक्तगण लाभान्वित होते रहते हैं। खेरेश्वर बाबा का अरघा 4 गुणा 4 फुट का तांबा और दो नागमणियां चांदी जड़ित हैं। यह शिवलिंग 6 इंच का श्याम वर्ण का गोलाकार है। यहां पास ही में एक सरोवर भी है, जिसे गंधर्व सरोवर के नाम से जाना जाता है।