धर्म-कर्म

अद्भुत लेपाक्षी मंदिर, जिसका एक खंभा हवा में झूलता रहता है

आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के अनंतपुर (Anantpur) जिले में स्‍थापित लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Temple) 70 खंभों पर खड़ा है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी क‍ि मंदिर का एक खंभा जमीन को छूता ही नहीं है। बल्कि हवा में झूलता रहता है। यही वजह है कि इस मंदिर को हैंगिंग टेंपल (Hanging Temple) के नाम से भी जाना जाता है।

आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के अनंतपुर (Anantpur) जिले में स्‍थापित लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Temple) 70 खंभों पर खड़ा है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी क‍ि मंदिर का एक खंभा जमीन को छूता ही नहीं है। बल्कि हवा में झूलता रहता है। यही वजह है कि इस मंदिर को हैंगिंग टेंपल (Hanging Temple) के नाम से भी जाना जाता है।

बताया जाता है कि वर्ष 1902 में एक ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने मंदिर के रहस्य को सुलझाने की तमाम कोशिशें कीं। इमारत का आधार किस खंभे पर है, ये जांचने के लिए उस इंजीनियर ने हवा में झूलते खंभे पर हथौड़े से भी वार किए। उससे तकरीबन 25 फीट दूर स्थित खंभों पर दरारें आ गईं। इससे यह पता चला क‍ि मंद‍िर का सारा वजन इसी झूलते हुए खंभे पर है। इसके बाद वह इंजीनियर भी मंदिर के झूलते हुए खंभे की थ्‍योरी के सामने हार मानकर वापस चला गया।

अद्भुत रहस्य
लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Mandir) के झूलते हुए खंभे को लेकर एक परंपरा चली आ रही है। कहा जाता है क‍ि जो भी श्रद्धालु लटके हुए खंबे के नीचे से कपड़ा निकालते हैं। उनके जीवन में फिर क‍िसी भी बात की दु:ख-तकलीफ नहीं होती। परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है। बताया जाता है क‍ि पहले दूसरे खंभों की ही तरह यह खंभा भी जमीन से जुड़ा था।

शिव का अवतार वीरभद्र
मंदिर के न‍िर्माण को लेकर अलग-अलग मत हैं। इस धाम में मौजूद एक स्वयंभू शिवलिंग भी है, जिसे भगवान शिव का रौद्र अवतार यानी वीरभद्र अवतार माना जाता है। जानकारी के अनुसार, यह श‍िवलिंग 15वीं शताब्दी तक खुले आसमान के नीचे विराजमान था। लेकिन 1538 में दो भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने मंदिर का न‍िर्माण क‍िया था, जो विजयनगर राजा के यहां काम करते थे। वहीं पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्थित वीरभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्‍त्‍य ने करवाया था।

लेपाक्षी मंदिर को लेकर एक और कहानी मिलती है। इसके मुताबिक एक बार वैष्णव यानी विष्णु के भक्त और शैव यानी शिव के भक्त के बीच सर्वश्रेष्ठ होने की बहस शुरू हो गई। जो कि सद‍ियों तक चलती रही। जिसे रोकने के लिए ही अगस्‍त्‍य मुनि ने इसी स्‍थान पर तप क‍िया और अपने तपोबल के प्रभाव से उस बहस को खत्‍म कर द‍िया। उन्‍होंने भक्‍तों को यह भी भान कराया कि विष्णु और शिव एक दूसरे के पूरक हैं। शिव की पीठ पर विष्णु

मंदिर के पास ही विष्णु का एक अद्भुत रूप है रघुनाथेश्वर का। जहां विष्णु, भगवान शंकर की पीठ पर आसन सजाए हुए हैं। यहां विष्णुजी को श‍िवजी के ऊपर प्रतिष्ठित किया है, रघुनाथ स्वामी के रूप में। इसलिए वह रघुनाथेश्‍वर कहलाए।

लेपाक्षी मंदिर में देखने लायक कई चीजे है, जो कलात्मक दृष्टि से बेहद उत्कृष्ट है।

नंदी की सबसे विशाल प्रतिमा
लेपाक्षी मंदिर से 200 दूर मेन रोड पर एक ही पत्थर से बनी विशाल नंदी प्रतिमा है जो की 8. 23 मीटर (27 फ़ीट) लम्बी, 4.5 मीटर (15 फ़ीट) ऊंची है। यह एक ही पत्थर से बनी नंदी की सबसे विशाल प्रतिमा है जबकि एक ही पत्थर से बनी दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है (प्रथम स्थान गोमतेश्वर की मूर्ति का है)।

विशाल नागलिंग प्रतिमा
मंदिर परिसर में एक ही पत्थर से बनी विशाल नागलिंग प्रतिमा भी स्थापित है, जो संभवत: सबसे विशाल नागलिंग प्रतिमा हैं। इस काले ग्रेनाइट से बनी प्रतिमा में एक शिवलिंग के ऊपर सात फन वाला नाग फन फैलाय बैठा है।