लंका युद्ध की समाप्ति के पश्चात श्रीराम सभी के साथ अयोध्या की ओर पुष्पक विमान द्वारा चले। रास्ते में विमान किष्किंधा में उतरा तथा सुग्रीव की आज्ञा से तारा तथा अन्य सुंदर स्त्रियां वैदेही के पास पहुंच गईं।
माता सीता की आज्ञा से सुग्रीव की रानियां श्रीराम के राज्याभिषेक का उत्सव देखने के लिए चल पड़ीं, उसी समय हनुमान जी (Hanumanji) ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक निवेदन किया-प्रभो! मुझे अपनी माता अंजनी से मिले बहुत दिन बीत गए हैं। यदि आज्ञा हो तो मैं उनके चरणों का स्पर्श कर आऊं?
श्रीराम ने कहा-हम लोग भी उस पुण्यशीला माता, जिसने ऐसे बलवान पुत्र को उत्पन्न किया उनके दर्शन अवश्य करेंगे।
भगवान राम की आज्ञा से विमान अयोध्या मार्ग से हटकर कांचनगिरि की ओर उड़ान भरने लगा। विमान के धरती पर उतरते ही हनुमान जी के साथ जानकी एवं राम भी उतर गए।
राम, सीता, लक्ष्मण तथा विभीषण आदि सभी वानर, भालुओं एवं राक्षसों के साथ हनुमान जी अंजना के पास पहुंचे। उनके नेत्रों में आंसू थे तथा कंठ अवरुद्ध हो गया था। माता अंजना ने हनुमान जी को गले लगा लिया तथा सजल नेत्रों से उनके सिर पर हाथ फेरने लगीं।
उसी समय श्रीराम, सीता तथा अन्य लोग भी वहां पहुंच गए। मारुति ने उन सबका परिचय अपनी माता को दिया। अंजना की प्रसन्नता का पारावार न था। श्रीराम ने अपने पिता के नाम का उच्चारण करके अंजना के चरणों में प्रणाम किया। माता ने उन्हें बैठने के लिए उचित आसन दिए।
लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण आदि सभी राक्षस, वानर एवं भालू व उनकी पत्नियां भी माता अंजना को मस्तक झुकाकर बैठ गईं। फिर अंजना ने बड़े प्यार से जानकी को गले लगाया तथा कहा-मैं अर्पित कर दिया है| उसी कारण त्रिलोकों के स्वामी ने मेरे पास आकर मुझे कृतार्थ किया है तथा मुझे मां कहा है।
हनुमान जी ने माता अंजना के चरण दबाते हुए कहा-मां! इन करुणामूर्ति माता सीता को दशानन हर ले गया था। श्रीराम की आज्ञा से मैंने समुद्र पार कर लंका में जाकर माता सीता का पता लगाया| फिर प्रभु राम ने समुद्र पर सेतु बनाया और लंका में राक्षसों के साथ भीषण संग्राम किया।
मेघनाद, कुंभकर्ण तथा रावण जैसे महान एवं दुर्जेय वीरों का प्रभु ने वध कर विभीषण को लंका का राज दे दिया। अब सभी माता जानकी के साथ अयोध्या गमन कर रहे हैं।
हनुमान जी की बात सुनकर माता अंजना ने कुपित होकर उन्हें अपनी गोद से धकेलते हुए कहा-तूने व्यर्थ ही मेरी कोख से जन्म लिया। मैंने व्यर्थ ही तुझे इतना दूध पिलाया। तुझे और तेरे बल तथा पराक्रम को धिक्कार है| क्या तुझमें इतनी भी शक्ति नहीं थी कि तू लंका में प्रवेश करके त्रिकूट पर्वत को उखाड़कर समूची लंका को समुद्र में डुबो देता?
क्या तू दुष्ट दशानन को उसके सैनिकों सहित मार नहीं सकता था? यदि तू उन्हें मारने में समर्थ नहीं था तो युद्ध में स्वयं ही मर जाता, परंतु तेरे जीवित रहते श्रीराम को सेतुबंध बनाकर राक्षसों से युद्ध करने का कष्ट उठाना पड़ा। तुझे मेरा दूध पिलाना व्यर्थ हुआ। तूने मेरे दूध को लज्जित कर दिया है| धिक्कार है तुझ पर। अब तू मुझे अपना मुंह मत दिखाना।
माता अंजना के क्रोध भरे वचन सुनकर हनुमान जी ने कहा-मां! मैंने तुम्हारे दूध को कतई लज्जित नहीं किया है, न ही तुम्हारे महिमामय दूध को कभी लज्जित होना पड़ेगा। यदि मैं स्वतंत्र होता तो लंका तो क्या, समस्त ब्रह्मांड को ही पीसकर रख देता।
राक्षसों को मच्छरों की भांति मसल डालता तथा उसी समय माता जानकी को श्रीराम के चरणों में पहुंचा देता, परंतु जानकी का पता लगाने के लिए समुद्र पार जाते समय मेरे नायक जांबवान ने मुझे आदेश दिया था कि तुम सीता को देखकर उनका कुशल क्षेम जानकर लौट आना।
हे मां! तुम इनसे ही पूछ लो। यदि मैं आज्ञा का उल्लंघन कर देता तो उनकी अवज्ञा होती। उनकी आज्ञा का पालन करना मैं अपना कर्तव्य मानता हूं। इस पर जांबवान ने हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक कहा-माता जी! हनुमान जी सत्य कह रहे हैं। आपके दूध के प्रताप से इनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है, किंतु यदि ये मनमानी करते तो प्रभु के यश का विस्तार कैसे होता?
श्रीराम ने भी जांबवान के वचनों का अनुमोदन किया| माता अंजना का क्रोध दूर हो गया। उन्होंने कहा-अरे बेटा! यह सब मैं नहीं जानती थी| मुझे आश्चर्य हुआ कि मैंने हनुमान को अपना दूध पिलाकर पाला है, अतः यह इतना कायर कैसे हो सकता है कि उसके रहते स्वामी को स्वयं ही कष्ट उठाना पड़ा।
मां अंजना ने लक्ष्मण को दिखाया अपनी दूध की शक्ति
माता अंजना के बार-बार अपने दूध की प्रशंसा करने पर लक्ष्मण को कुछ आश्चर्य सा हुआ। तभी अंजना ने उनके मुख की ओर देखकर कहा-लखनलाल! आप सोच रहे हैं कि यह बुढ़िया बार-बार अपने दूध की क्यों बड़ाई कर रही है? वास्तव में मेरा दूध असाधारण है, अभी आप स्वयं देख लीजिए।
मां अंजना ने तब अलग होकर अपने स्तन को दबाया। उसके दूध की धार पर्वत शिखर पर जा गिरी। उससे वह पर्वत भयानक शब्द के साथ फटकर दो भागों में बंट गया| अंजना ने लक्ष्मण से कहा-हे लक्ष्मण! यही मेरा दूध हनुमान ने पिया है। मेरा दूध कभी व्यर्थ नहीं जाता। फिर श्रीराम ने माता अंजना से हाथ जोड़कर विदा के लिए आज्ञा मांगी और अयोध्या के लिए चल दिए।