नई दिल्ली : कुतुब मीनार (Qutub Minar) परिसर में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने के दावे को लेकर दिल्ली की साकेत कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस मामले में आदेश को सुरक्षित रख लिया है। 9 जून को अदालत फैसला सुनाएगी। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने कोर्ट को बताया कि इस बात को कई प्रमाण नहीं है कि कुतुब मीनार परिसर में स्थित मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।
ASI ने कहा कि इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि लोहे का पिलर और मंदिर के अवशेष वहां पहले से मौजूद थे या कहीं बाहर से लाए गए थे। ASI ने स्पष्ट रूप से कहा कि कुतुब मीनार कभी भी पूजा का स्थान नहीं था। साथ ही कुतुब मीनार परिसर में मंदिर का जीर्णोद्धार कराने की मांग का ASI ने विरोध किया। उसने कहा कि 1914 से कुतुब मीनार की एक ऐतिहासिक इमारत के रूप में सुरक्षा की जा रही है और इसके स्ट्रक्चर को बदला नहीं जा सकता।
देवी-देवताओं की मूर्तियां पाए जाने का दावा
बता दें कि याचिका में दावा किया गया था कि कुतुब मीनार परिसर में हिंदू और जैन मंदिर थे, जिन्हें तोड़ दिया गया था। याचिकाकर्ता ने परिसर में पूजा कि इजाजत भी मांगी थी। यह विवाद तब शुरू हुआ जब ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा ने दावा किया कि कुतुब मीनार को हिंदू राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था न कि कुतुब अल दीन एबक ने। उनका कहना था कि यह एक सूर्य टावर था। उन्होंने यह भी दावा किया था कि परिसर में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां पाई गईं और कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद को 27 जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील हरिशंकर जैन ने कहा कि पूजा का संवैधानिक अधिकार नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि अगर एक मूर्ति तोड़ दी जाती है तो भी यह अपना देवत्व नहीं खोती है। परिसर में मूर्तियां हैं। कोर्ट ने पहले भी मूर्तियों की हिफाजत को लेकर आदेश दिया था। जब वहां मूर्तियां हैं तो पूजा का अधिकार भी होना चाहिए।