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भगवान गणेश व उनके स्वरूप से सीखें जीवन जीने की कला

भगवान गणेश (Bhagwan Ganesha) और उनके स्वरूप से जीवन जीने की कला और मैनेजमेंट सीखें तथा उसका आचरण कर अपने जीवन में आने वाले विघ्नों का स्वयं विघ्नहर्ता बनें।

भगवान गणेश (Bhagwan Ganesha) और उनके स्वरूप से जीवन जीने की कला और मैनेजमेंट सीखें तथा उसका आचरण कर अपने जीवन में आने वाले विघ्नों का स्वयं विघ्नहर्ता बनें।

बड़ा सिर : बड़ा सिर बड़े विचार को दर्शाता है। हमेशा बड़ा सोचें। उनका बड़ा सिर जागरूकता, ध्यान, विचारशीलता, मानसिक और भावनात्मक स्थिरता का प्रतीक है।

मस्तक : हाथी हमेशा अपने सामने वाली वस्तु को उसके वास्तविक स्वरूप से दुगुना बड़ा देखता है। अर्थात गणेश जी अपने सामने वाले को दुगुना करके ही देखते हैं। अर्थात सबको अति सम्मानपूर्ण दृष्टि से देखें।

छोटे पैर : मैनेजमेंट में संतुलन का बहुत महत्व है। छोटे-छोटे पैरों पर बड़ा शरीर बेहतर संतुलन की ओर इशारा करता है। संतुलन कैसे बनाना है इस बात का विशेष महत्व है और इसका ज्ञान होना चाहिए I

बड़ी नाक : बड़ी नाक से भाव है कि चीज को सूंघ लेना। यानि कि आने वाले किसी भी हालात को भांपना।

बड़ा पेट : भगवान गणेश का एक नाम लंबोदर भी है। जिसका मतलब है बड़े पेट वाला। बड़ा पेट यही भाव देता है कि हर तरह की बातों को पचाया जाय अर्थात किसी की भी निंदा-चुगली नहीं करनी चाहिए।

टूटा दांत : भगवान गणेश ने अपने दांत को तोड़कर महाऋषि व्यास को महाभारत की रचना के लिये दिया था। मैनेजमेंट में सभी के भले के लिये त्याग को भी बहुत जरुरी बनाया गया है।

छोटी आंखें : भगवान गणेश भले ही भारी शरीर वाले हों मगर उनकी आखें छोटी होती हैं। ये उनकी पैनी नजर की ओर इशारा करती हैं। इसका भाव है कि हर चीज को ध्यान से और गहराई से परखें।

बड़े कान, छोटा मुंह : उनके बड़े कान हैं, जो बिना किसी अनुमान या पूर्वाग्रह के सभी की प्रार्थनाएं सुनते हैं और उनकी चिंताओं को दूर करते हैं। मैनेजमेंट में किसी भी हालात को भांपने के लिये जरूरी है कि सबकी बातों को ध्यान से सुना जाय। हमेशा बड़ा अथवा श्रेष्ठ सुना जाय। बड़े कान सभी को सुनने पर जोर देते हैं। छोटे मुंह से इस बात का प्रतीक है कि व्यर्थ न बोले और जब भी बात की जाए सोच-समझ कर की जाए। व्यर्थ के वाद-विवाद में अपने अमूल्य समय को नष्ट मत करो।

एक हाथ में मोदक और दूसरे से आशीर्वाद : इसका अर्थ है कि मीठा बोलें और दूसरों का भला सोचें।

चार हाथ: उनके चार हाथ चार पुरुषार्थ-धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं। यानी कोई भी निर्णय लेने से पूर्व उसकी नैतिकता, अर्थव्यवस्था, भौतिक लाभों के दृष्टिकोण से विश्लेषण करना और साथ-साथ दीर्घकालिक आध्यात्मिक और सामाजिक लाभ पर भी अनुमान लगाना।

चूहा: भारी भरकम शरीर होने के बाद भी गणेश जी मूषक (चूहे) की सवारी करते हैं। अर्थात चाहे आप जीवन में कितने ही ऊँचे क्यों न उठ जाओ पर आपके पैर सदा जमीन पर ही होने चाहिए। अपने जीवन को हल्का बनाओ और विनम्र बनाओ। दूसरी सीख है कि चूहा चीजों को कुतरता है और गणेश जी सवारी करके दबा रखे हुए हैं, अर्थात कुतरने वालों को अर्थात नुकसान पहुँचाने वालों को दबा कर रखें और सावधान रहें I

विवेक : गणेश जी विवेक के देवता हैं और चूहा धीमी गति का प्रतीक है। विवेक बिना चिन्तन के फलदाई नहीं होता। और चिन्तन के लिये मन की गति विषयानुसार नियमित करनी पड़ती है। अर्थात् विवेक के इस्तेमाल के लिये मन की गति को विषयानुसार नियमित करनी चाहिए ताकि गुण दोष का स्पष्ट मूल्यांकन हो सके।

विघ्नहर्ता : विघ्नहर्ता या बाधाओं के निवारक के रूप में भगवान गणेश से हम कोरोना महामारी के व्यवधानों से उत्पन्न चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने की सीख ले सकते हैं।

विश्लेषण : श्री गणेश अपने हाथों में परशु या कुल्हाड़ी पकड़े हुए हैं, जो जटिल बाधाओं और समस्याओं का विश्लेषण करने के लिये उपयोगी हैं।

संश्लेषण : श्री गणेश कार्य पूर्ण करने की योजना के लिये सभी समाधानों को संश्लेषित करने या बाँधने के लिये एक पाश रखते हैं।

कार्यान्वयन : भगवान गणेश का अंकुश योजना के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक सख्त उपायों या आने वाले उतार-चढ़ाव के महत्व को दर्शाता है।

नवाचार : उनके हाथों में एक गन्ना या इक्षु नवाचार यानि इनोवेशन को दर्शाता है जो एक खराब या नकारात्मक स्थिति को एक मधुर अवसर में बदल सकता है। लचीलापन-उनकी सूंड़ संसाधनों या समय की कमी से निपटने के लिये आवश्यक अनुकूलनशीलता और लचीलेपन का संकेत देती है।

वेद के ज्ञाता : भगवान गणेश वेदों में ब्रह्मणस्पति के नाम से वेदों के ज्ञान के अधिपति के रूप में प्रथम पूज्य हैं I इसका भाव है धर्म का अनुसरण करें।

सीख : दूसरों को सम्मान देने की कला, सदैव उच्च विचारों के चिंतन और मनन की कला, अनुकूलता-प्रतिकूलता सभी परिस्थितियों में समदृष्टि रखने की कला और अपने आप को सदैव विनम्र और शिष्ट रखने की कला, नुकसान पहुँचाने वालों को दबाकर रखने की कला तथा विवेक पूर्ण कार्य करने की कला सभी विघ्न बाधाओं को हर लेती है और सफल बनाती है। इन्हीं गुणों के कारण ही गणेश जी अग्रपूज्य हैं। यही तो गणेश जी महाराज के स्वरूप का संदेश है।