नई दिल्लीः मानसून सत्र के पहले सप्ताह में संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही में तीन नए केंद्रीय कृषि कानूनों, पेगासस जासूसी मामले सहित विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष के हंगामे के बीच शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस के एक राज्यसभा सदस्य को निलंबित कर दिया गया। सदन को शेष सत्र के लिए स्थगित कर दिया गया है।
पूरे सप्ताह के दौरान, केवल मंगलवार को, उच्च सदन चार घंटे तक सामान्य रूप से कार्य कर सका, जब सभी पक्षों के बीच आपसी सहमति के आधार पर कोविड-19 के कारण देश में उत्पन्न स्थिति पर चर्चा हुई।
शुक्रवार को एक बार के स्थगन के बाद लोकसभा को पूरे दिन के लिए और राज्यसभा को तीन बार विपक्ष के हंगामे के कारण स्थगित कर दिया गया। प्रश्नकाल और शून्यकाल दोनों सदनों में आज काम नहीं हो सका और शुक्रवार को होने वाले गैर सरकारी कामकाज में भी बाधा डाली गई।
राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने उच्च सदन में लगातार हो रहे हंगामे पर नाराजगी व्यक्त करते हुए एक विपक्षी सदस्य द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथों से बयान की एक प्रति छीनने और उसके टुकड़े हवा में लहराने की घटना को संसदीय लोकतंत्र पर हमला कहा है।
उन्होंने कहा कि इस सत्र का आयोजन कोविड महामारी की भयावहता के बीच किया गया है और जनता से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होनी है। उन्होंने सदस्यों के सामने कई सवाल भी उठाए और इस पर विचार करने को कहा।
सभापति ने गुरुवार को सदन में हुए हंगामे और तृणमूल कांग्रेस के सदस्य शांतनु सेन समेत अन्य विपक्षी नेताओं के आचरण का जिक्र किया और इसे अशोभनीय बताया। सभापति ने कहा कि कल जो कुछ भी हुआ उसने निश्चित रूप से सदन की गरिमा को प्रभावित किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाएं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की गरिमा को प्रभावित करती हैं।
नायडू ने कहा कि उन्होंने पहले भी इस बात पर जोर दिया है कि संसद राजनीतिक संस्थानों से बड़ी है क्योंकि उसके पास संवैधानिक अधिकार हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि संसद और संविधान की गरिमा के लिए केवल नाममात्र का सम्मान है और यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
राज्यसभा के सभापति ने कहा कि जब देश आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, ऐसे समय में सदन की कार्यवाही में व्यवधान अच्छा संदेश नहीं देता है। उन्होंने सदस्यों से सदन की गरिमा को धूमिल नहीं होने देने की अपील की। उन्होंने सदस्यों को याद दिलाया कि वे संसदीय लोकतंत्र के संरक्षक हैं और उन्हें अपने-अपने राज्यों और वहां के लोगों के मुद्दों को उठाना चाहिए। सदन में व्यवधान न्याय करने का तरीका नहीं है।
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