रायपुर: छत्तीसगढ़ शासन की महत्वाकांक्षी परियोजना राम वन गमन पर्यटन परिपथ विकास के तहत पहले चरण में जिन 9 स्थलों का चयन कर उन्हें पर्यटन तीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है, उनमें से सरगुजा संभाग के भी दो स्थल शामिल हैं। इनमें से एक है कोरिया जिले में स्थित सीमामढ़ी हर चौका, और दूसरा है सरगुजा जिले में स्थित रामगढ़। 07 अक्टूबर को जब चंदखुरी में राम गमन पर्यटन परिपथ का शुभारंभ होगा तब देश के पर्यटन नक्शे में भगवान श्री राम के वनवास काल से जुड़े ये दोनों महत्वपूर्ण स्थल भी नयी संभावनाओं के साथ उभरकर सामने आएंगे। चंदखुरी में इस परियोजना के शुभारंभ के लिए नवरात्रि के अवसर पर तीन दिवसीय समारोह आयोजित करने की भव्य तैयारी की जा रही है।
राम वन गमन पर्यटन परिपथ में रायपुर के निकट स्थित चंदखुरी के प्राचीन माता कौशल्या मंदिर परिसर के विकास और सौंदर्यीकरण का एक चरण पूरा हो चुका है। 07 अक्टूबर को यहां विकसित नयी पर्यटन सुविधाओं के लोकार्पण के साथ-साथ पूरे राम वन गमन पर्यटन परिपथ का भी शुभारंभ किया जाना है। कोरोना-काल में बाधित हुई पर्यटन गतिविधियों के बाद यह नया परिपथ घरेलू पर्यटन में रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए एक बड़ा उपहार होगा।
वनवास के दौरान भगवान राम ने कोरिया जिले से ही छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया था। भरतपुर तहसील के जनकपुर में स्थित सीतामढ़ी-हरचौका को उनका पहला पडा़व माना जाता है। मवाई नदी के किनारे स्थित सीतामढ़ी-हरचौका की गुफा में 17 कक्ष हैं। इसे सीता की रसोई के नाम से भी जाना जाता है। वहां एक शिलाखंड है जिसे लोग भगवान राम का पद-चिन्ह मानते हैं। मवाई नदी तट पर स्थित गुफा को काट कर 17 कक्ष बनाए गए हैं, जिनमें शिवलिंग स्थापित हैं। इसी स्थान को हरचौका (रसोई) के नाम से जाना जाता है। भगवान राम हरचौका से रापा नदी के तट पर स्थित सीतामढ़ी-घाघरा पहुंचे थे। यहां करीब 20 फीट ऊपर 4 कक्षों वाली गुफा है, जिसके बीच में शिवलिंग स्थापित है। आगे की यात्रा में वे घाघरा से निकलकर कोटाडोला होते हुए सरगुजा जिले की रामगढ़ पहाड़ी पहुंचे थे।
सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर से 50 किलोमीटर दूर स्थित रामगढ़ एक ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व का स्थल है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 3 हजार 202 फीट है। इस स्थान को महाकवि कालिदास की अनुपम रचना ‘‘ मेघदूतम’’ की रचना स्थली माना जाता है। विश्व की सर्वाधिक प्राचीनतम् शैल नाट्यशाला के रूप में भी यह विख्यात है। ‘‘सीताबेंगरा’’ और ‘‘जोगीमारा’’ की गुफाएं तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्यकाल के समय की मानी जाती हैं। जोगीमारा गुफा में मौर्य कालीन ब्राह्मी लिपि में अभिलेख तथा सीताबेंगरा गुफा में गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में अभिलेख के प्रमाण मिलते है। जोगीमारा गुफा की एक और विशेषता है कि यहां भारतीय भित्ति चित्रों के सबसे प्राचीन नमूने अंकित हैं।
पुरातात्विक दस्तावेजों के रूप में मूर्तियों, शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों का बड़ा महत्व माना जाता है। रामगढ़ में ऐसे महत्व की वस्तुएं उपलब्ध है। जोगीमारा गुफा में लगभग 8 मूर्तियां संग्रहित हैं। यह मूर्तियां लगभग 2 हजार वर्ष पुरानी हैं।
रामगढ़ पहाड़ी के ऊर्ध्व भाग में दो शिलालेख मौजूद हैं। प्रस्तर पर नुकीली छेनी से काटकर लिखे गए इस लेख की लिपि पाली और कुछ-कुछ खरोष्टी से मिलती जुलती है। लिपि विशेषज्ञों ने इसे एक मत से पाली लिपि माना है।
रामगढ़ के निकट स्थित महेशपुर वनस्थली महर्षि की तपोभूमि थी। इस स्थल पर ही लगभग 10 फीट ऊपर ’’कालीदासम्’’ खुदा हुआ है। सीताबेंगरा के ही पार्श्व एक सुगम सुरंग मार्ग है, जिसे हाथी पोल कहते हैं। इसकी लम्बाई लगभग 180 फीट है। इसका प्रवेश द्वार लगभग 55 फीट ऊंचा है। इसके अंदर से ही इस पार से उस पार तक एक नाला बहता है। इस सुरंग में हाथी आसानी से आ-जा सकता है। इसलिए इसे हाथी पोल कहा जाता है। सुरंग के भीतर ही पहाड़ से रिसकर एवं अन्य भौगोलिक प्रभाव के कारण एक शीतल जल का कुण्ड बना हुआ है।
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