आस्था व परंपरा की परिपाटी से जुड़े छपरा (Chhapra) जिले के मशरख प्रखण्ड के अरना पंचायत मे घोघारी नदी के तट पर विगत डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से कार्तिक पूर्णिमा के दूसरे दिन लगने वाला बड़वाघाट मेला आधुनिकता की चकाचौंध के बाद भी अपनी पुरातन पहचान को कायम रखे हुए है जनश्रुतियों के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम ने यहां प्रवास किया था।
ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां पैर धोने से सभी पाप धुल जाते हैं इस परंपरा को आज भी लोग काम किए हुए है.छपरा जिले के मशरख थाना अंर्तगत बरवाघाट में स्थापित ऐतिहासिक रामजानकी मंदिर 18वीं सदी में घोघारी नदी के तट पर बना है। इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में बहुत सारी जनश्रुतिया भी प्रचलित है।
कार्तिक पूर्णिमा के दूसरे दिन यहां विशाल मेला लगता है. ऐसी कहानी प्रचलित है कि वनवास के दौरान भगवान राम यहां आए थे और खुद से इस मंदिर का निर्माण किया था. 1983 से पहले इस मंदिर के गुंबज में सोने का त्रिशूल लगा हुआ था जिसे डकैतों ने काट लिया। उफनती नदी के मुहाने पर जब डकैत सीढ़ी लगाकर मंदिर के गुंबद से सोने का त्रिशूल काट रहे थे। तब हजारों की संख्या में ग्रामीण चारों तरफ से डकैतो को घेरे हुए थे। ऊफनती नदी की धारा का फायदा उठाकर डकैत भाग निकले।
2015 में स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था। मंदिर के गुंबज पर पिछले वर्ष वज्रपात हुआ था। आसपास के इलाके के लोग दैवीय चमत्कार मानते हैं। अरना पंचायत के निवासी वरिष्ठ पत्रकार सह फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य अनूप नारायण सिंह कहते हैं कि इस ऐतिहासिक मेले के जीर्णोद्धार के लिए कभी प्रशासनिक स्तर पर कोई प्रयास नहीं हुआ।
उन्होंने इस वर्ष पर्यटन और कला संस्कृति विभाग को पत्र भेजकर इस मेले को सरकारी स्तर पर संरक्षित करने तथा मेला अवधि में सांस्कृतिक आयोजन कराने की मांग भी की है। जिस पर जिला प्रभारी मंत्री सुमित कुमार सिंह व कला संस्कृति मंत्री जितेंद्र कुमार राय ने अपनी सहमति जताई है। समय अभाव के कारण इस वर्ष कोई बड़ा कदम तो नहीं उठाया गया है, पर अगले वर्ष से मेले के स्वरूप में जरूर बदलाव नजर आएगा।
भगवान राम जनकपुर जाने के क्रम में यहां आए थे अब इस बात पर इसलिए भी मुहर लग गई है की अयोध्या से जो सड़क जनकपुर तक रामायण परिपथ के नाम से बन रहा है वह इस इलाके से गुजर रहा है। अनूप कहते हैं कि कुछ लोगों ने जानबूझकर मेले का स्वरूप बिगाड़ने के लिए इसे पियाकड़ो के मेले के रूप में प्रचारित प्रसारित करना शुरू कर दिया। यह मेला ग्रामीण स्तर पर लगने वाले जिले के एक दिवसीय मेले में सबसे प्रसिद्ध है जहां दूर-दूर के श्रद्धालु जुटते हैं।