बिहार

राजद की नजर में नया संसद भवन ताबूत

नए संसद भवन के साथ ताबूत, देश में मोदी इतिहास लागू किया जा रहा है : संजय सिंह

पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने नए संसद भवन का लोकार्पण कर दिया है। जदयू, राजद और कांग्रेस सहित 19 दलों ने इस उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया। अब जहां केंद्र की भाजपा सरकार नए संसद का महिमामंडन करने में जुटी है। वहीं, लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने ताबूत के साथ नए संसद भवन की तस्वीर पोस्ट कर नई बहस छेड़ दी है। वहीं, सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने कहा-नए संसद के जरिए देश के कलंक का इतिहास लिखा जा रहा है।

राजद द्वारा ट्विटर पर शेयर की गई तस्वीर में एक तरफ ताबूत है और दूसरी तरफ नया संसद भवन है। कैप्शन में लिखा है- ये क्या है? हालांकि, सोशल मीडिया पर यूजर्स अटकलें लग रहे हैं कि नए संसद भवन के आकार की ताबूत से तुलना की गई है। राजद के इस ट्वीट को भाजपा ने आड़े हाथों लिया है।

राजद ने दी सफाई
बीजेपी के हमलावर होने के बाद राजद की ओर से इस पर सफाई आई है। राजद नेता शक्ति सिंह यादव ने अपनी पार्टी द्वारा नई संसद की तुलना एक ताबूत से करने पर कहा कि हमारे ट्वीट में ताबूत लोकतंत्र को दफन किए जाने का प्रतिनिधित्व कर रहा है। देश इसे स्वीकार नहीं करेगा। संसद लोकतंत्र का मंदिर है और यह चर्चा करने की जगह है।

वहीं जदयू ने कहा कि नए संसद भवन के जरिए देश के कलंक का इतिहास लिखा जा रहा है। पार्टी एमएलसी नीरज कुमार ने कहा कि नए संसद का उद्घाटन तानाशाही और देश में मोदी इतिहास लागू किया जा रहा है। नए संसद के जरिए देश के कलंक का इतिहास लिखा जा रहा है।

दक्षिण के कट्टरपंथी ब्राह्मणों को बुलाना दुर्भाग्यपूर्ण : स्वामी मौर्य
इससे पहले सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने सेंगोल की स्थापना के में दक्षिण के अधीनम संतों को बुलाए जाने पर सवाल उठाए थे। मौर्य ने ट्वीट कर कहा कि सेंगोल की स्थापना पूजन में केवल दक्षिण के कट्टरपंथी ब्राह्मण गुरुओं को बुलाया जाना अत्ंयत दुर्भाग्यपूर्ण है। बीजेपी सरकार को सभी धर्मगुरुओं को आमंत्रित करना चाहिए था। ऐसा न करके बीजेपी ने अपनी दूषित मानसिकता और घृणित सोच को दर्शाया है। सपा नेता के बयान पर बीजेपी ने पलटवार किया है। सपा के ब्राह्मणवाद के आरोप हास्यास्पद हैं। इनमें अज्ञानता की बू है। ये अधीनम उन समुदायों द्वारा चलाए जाते हैं जो बीसी और ओबीसी श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं। उनके पास तमिल साहित्य का एक समृद्ध इतिहास है जो भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस तरह की टिप्पणी करना इन पवित्र अधीमों और हिंदू धर्म की विविधता का अपमान है।