बिहार

पितृ पक्ष मेला नहीं लगने पर कारोबारी एवं पंडों के समक्ष भुखमरी की नौबत

गयाः हिंदू धर्म की अगाध आस्था का प्रतीक पितृपक्ष मेले का आयोजन है जिसमें देश के कोने कोने से श्रद्धालु अपने पितरों के आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करने भारी मात्रा में गया आते हैं, जिसके कारण पंडा समाज और कारोबारियों को अच्छा मुनाफा होता है। कोरोना संकट के कारण विगत वर्ष पितृपक्ष […]

गयाः हिंदू धर्म की अगाध आस्था का प्रतीक पितृपक्ष मेले का आयोजन है जिसमें देश के कोने कोने से श्रद्धालु अपने पितरों के आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करने भारी मात्रा में गया आते हैं, जिसके कारण पंडा समाज और कारोबारियों को अच्छा मुनाफा होता है। कोरोना संकट के कारण विगत वर्ष पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं हो पाया था। इस वर्ष भी जिला प्रशासन द्वारा चुप्पी साधे जाने के कारण पंडा समाज और व्यापारियों में दहशत व्याप्त है। 17 दिनों तक चलने वाले इस मेले में अनुमानित 100 करोड़ से अधिक का कारोबार होता है। इस मेले में विदेश से भी तीर्थयात्री आते हैं।

पितृपक्ष मेला लगने का इंतजार गया पाल पुरोहित होटल व्यवसाय बर्तन व्यवसाई कपड़ा व्यवसाय ऑटो और रिक्शा चालक बस चालक आदि इंतजार करते रहते हैं जिससे उनकी गाड़ी कमाई होती है। मेले में आए तीर्थयात्रियों का भी कारोबार से सीधा ताल्लुक रहता है। यातायात में रेल बस और ऑटो कार का महत्वपूर्ण स्थान है।

किसी जमाने में 365 पिंड वीडियो पर हुआ करता थे। कर्मकांड जो अब लुप्त हो चुकी है। उसमें से मात्र 55 से 60 पिंड बेदी बची है, जहां पिंडदान करने वाले अपने पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान करते हैं। मेले को लेकर लोगों में अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है, क्योंकि पितृपक्ष मेले के आयोजन को लेकर अभी जिला प्रशासन की बैठक नहीं हुई है जबकि पितृपक्ष शुरू होने में अब कुछ ही दिन शेष हैं।

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पितृ पक्ष मेला नहीं लगने पर कारोबारी एवं पंडों के समक्ष भुखमरी की नौबत

गयाः हिंदू धर्म की अगाध आस्था का प्रतीक पितृपक्ष मेले का आयोजन है जिसमें देश के कोने कोने से श्रद्धालु अपने पितरों के आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करने भारी मात्रा में गया आते हैं, जिसके कारण पंडा समाज और कारोबारियों को अच्छा मुनाफा होता है। कोरोना संकट के कारण विगत वर्ष पितृपक्ष […]

गयाः हिंदू धर्म की अगाध आस्था का प्रतीक पितृपक्ष मेले का आयोजन है जिसमें देश के कोने कोने से श्रद्धालु अपने पितरों के आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करने भारी मात्रा में गया आते हैं, जिसके कारण पंडा समाज और कारोबारियों को अच्छा मुनाफा होता है। कोरोना संकट के कारण विगत वर्ष पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं हो पाया था। इस वर्ष भी जिला प्रशासन द्वारा चुप्पी साधे जाने के कारण पंडा समाज और व्यापारियों में दहशत व्याप्त है। 17 दिनों तक चलने वाले इस मेले में अनुमानित 100 करोड़ से अधिक का कारोबार होता है। इस मेले में विदेश से भी तीर्थयात्री आते हैं।

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