पटना: सारण (Saran) की समृद्ध संस्कृति व विरासत यहां बिखरे प्राचीन स्मारकों में झलकती है। इन्हें सहेज व संवार कर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाया जा सकता है। छपरा (Chapra) में करिगा के पास स्थित करीब तीन सौ साल पुराना मकबरा व कब्रिस्तान यहां के डच कनेक्शन की याद दिलाता है।
यह तत्कालीन डच गवर्नर जैकबस वान होर्न की याद में बनाया गया था। यह पर्यटन केंद्र में स्थापित होने के सभी मानकों को पूरा करता है। पर्यटन अब देश का सबसे बड़ा सेवा उद्योग बन गया है। इसका राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 6.23 और रोजगार में 8.78 प्रतिशत के करीब योगदान है।
ऐसे में छपरा वासियों का यह सवाल जायज है कि पर्यटन के मानचित्र पर छपरा का डच मकबरा (Dutch Makbara) आखिर कब स्थापित होगा।यह सवाल यूंही नहीं बल्कि यहां के मौजूदा संरचनाओं को एक ऐतिहासिक स्थल में बदलने की एक साल पूर्व प्रारंभ की गई सरकारी कवायद को लेकर है।
कहा तो यह गया था कि इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित कर डच कनेक्शन वाले भारत के सबसे पुराने ऐतिहासिक स्थलों में से एक घोषित किया जाएगा। इस कथन के करीब एक साल गुजर गए, सरकारी फाइलें दौड़ती रहीं, लेकिन धरातल पर अबतक कोई काम नहीं दिखा।
स्मारक अधिनियम के तहत संरक्षित स्थल का होना था जीर्णोद्धार छपरा का यह डच मकबरा, कब्रिस्तान व तालाब करीब एक एकड़ भूमि में फैला है। बिहार सरकार के स्मारक अधिनियम के तहत वर्ष 2021 के मार्च में इसे संरक्षित घोषित किया गया। यहां की संरचनाओं के नवीकरण के बड़े पैमाने पर कार्य कराने की योजना बनी।
फारसी व डच शैली की वास्तुकला से निर्मित यहां के दो मकबरे की मरम्मत का काम भी एक साल पहले ही शुरू होना था। पोखरे का जीर्णोद्धार, आगंतुकों के लिए बेंच, पर्याप्त रोशनी व यहां अन्य सार्वजनिक सुविधाएं स्थापित होनी थी। अबतक इस संरक्षित स्थाल की घेराबंदी का भी काम नहीं हुआ।
तत्कालीन डीएम दीपक आनंद ने देखा था पर्यटन केंद्र का सपना इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए 2015 में तत्कालीन डीएम दीपक आनंद ने इसे पर्यटन केंद्र बनाने का सपना देखा था। उन्होंने विस्तृत कार्ययोजना तैयार करा स्वीकृति के लिए सरकार को भेजा। उनके प्रस्ताव पर उस समय के पुरातत्व निदेशक अतुल कुमार वर्मा ने विभाग के वरीय तकनीकी अधिकारी हर्ष रंजन कुमार को छपरा भेजा।
यहां स्थल निरीक्षण करने के बाद उस तकनीकी अधिकारी ने डीएम के प्रस्ताव को जनहित व कार्यहित में अत्यधिक लाभकारी बताया था। दीपक आनंद के स्थानांतरण के कुछ वर्ष बाद डा. नीलेश देवरे यहां के डीएम बने। उन्होंने इस स्थल का दौरा किया और लंबे समय से उपेक्षित यहां की संरचनाओं की क्षमता का एहसास किया।
उन्होंने इसे पर्यटन के विश्व मानचित्र पर लाने का संकल्प लिया। उनका संकल्प हकीकत में बदले इसके पूर्व ही उनका यहां से स्थानांतरण हो गया और करिगा पर्यटन केंद्र की योजना फाइलों में दब गया। डच कंपनी का वर्ष 1770 तक रहा था छपरा पर कब्जा डच यात्री ट्रैवरिन सबसे पहले 21 दिसंबर 1665 को पटना पहुंचे।
इसके बाद उन्होंने पटना से बाहर की पहली यात्रा छपरा की की। छपरा में उस समय नोनिया समुदाय के लोग मिट्टी से नोनी एकत्र कर शोरा का उत्पादन करते थे। यहां के शोरा की क्वालिटी सबसे बेहतर मानी जाती थी। इसलिए यहां शोरा का शुद्धिकरण भी किया जाता था। डच इसका यहां से व्यापार करने लगे। सारण गजेटियर के अनुसार छपरा पर डचों का कब्जा 1770 तक रहा।