बिहार

कोरोना वायरस संक्रमण गाँवों में पसार रहा पांव, चिकित्सा संसाधनों की है कमी

छपरा (बिहार): कोरोना महामारी अब गाँवों में भी पैर पसारने लगी है। देश के अधिकांश गांवों में संक्रमण की दर तेजी से बढ़ रही है, जो चिंता का विषय है क्योकि गाँवों में स्वास्थ्य सेवा खुद बीमार है। शहर की तुलना में गाँवों का विकस न के बराबर है और बिहार के गाँवों की हालत […]

छपरा (बिहार): कोरोना महामारी अब गाँवों में भी पैर पसारने लगी है। देश के अधिकांश गांवों में संक्रमण की दर तेजी से बढ़ रही है, जो चिंता का विषय है क्योकि गाँवों में स्वास्थ्य सेवा खुद बीमार है। शहर की तुलना में गाँवों का विकस न के बराबर है और बिहार के गाँवों की हालत अधिक नाजुक है। महंगाई और बेरोजगारी ने पहले ही सबकी कमर तोड़ दी है। रोजगार के अवसर नहीं है। सरकारी रिकार्ड में कोरोना भले ही नियंत्रित दिख रहा है, मगर गाँव के गाँव बीमार हैं। हर परिवार में कोई न कोई सर्दी, खांसी, बुखार, बदन दर्द और कमजोरी का शिकार है। इन लोगों को स्वास्थ्य सेवाएँ ठीक से नहीं मिल पाती। आर्थिक दृष्टि से कमजोर होने के कारण ये अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए कुछ खा-पी नहीं सकते हैं। न तो कोविड-19 के वायरस से खुद को बचाए जाने के उपायों के बारे में इन्हें जानकारी है। अपनी जाँच भी ये नहीं करा सकते, क्योंकि इसके लिए उन्हें शहर की रुख करना होगा, जो खर्चीला है। गाँव में जो भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं उनमे अधिकांश में चिकित्सक, नर्स, दवा और चिकित्सा सामग्री की किल्लत है। गाँव के वार्ड कमिश्नर की भूमिका भी संतोषजनक नहीं है। जन प्रतिनिधियों को गाँव जाने की फुर्सत नहीं हैं। फिर वहां उनका राजसी तरीके से स्वागत भी तो नहीं होगा न।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्राप्त तथ्यों के अनुसार भारत में 14 लाख चिकित्सकों की कमी है। प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर भी शहर में चले जाते है, क्योकि वहां चेकअप के नाम पर मनमाने तरीके से रकम ले सकते हैं। ग्रामीण लोगों के पास तो रुपये की कमी रहती है। गाँव के, चिकित्सालय या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सा के संसाधनों की कमी के चलते डाॅक्टर वहां जाना भी नहीं चाहते। चिकित्सा और जानकारी के अभाव में गाँव के बहुतेरे लोग जान गँवा देते हैं।

गाँव के लोग अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित रहते हैं क्योकि उन्हें योजनाओं की जानकारी नहीं होती है। सरकार की तरफ से भी उन्हें जानकारी नहीं दी जाती है। यदि कोई भूले-भटके योजना से लाभ उठाने के लिए दफ्तर चला भी गया तो उसे संतोषप्रद जवाब नहीं मिलता। भ्रष्टचार इस कदर बढ़ गया कि पूछिए मत। एक व्यक्ति ने लाटसाब संवाददाता को बताया कि उसे अपने पोस्ट ऑफिस के बचत खाते में जमा रकम पर जो सूद रकम मिलनी थी, उसे पासबुक में दर्ज कराने के लिए अपने घर से 11 किलोमीटर दूर के मुख्य डाकखाने में जाना पड़ता है। और हम तो यह है कि वहां भी उससे इस काम के लिए पैसे मांगे गए।

जब तक आंगनबाड़ी, आशाकर्मी, एएनएम आदि फ्रंटलाइन कार्यकर्ता को सक्रिय नहीं किया जायेगा, तब तक ग्रामीण अंचल के लोगो को स्वास्थ्य सेवा का लाभ नहीं मिलेगा। सरकार को चाहिए कि वह इन फ्रंटलाइन वर्कर को समुचित प्रशिक्षण दे, इन्हें समुचित वेतन आय और सुविधा दे, ग्राम पंचायत स्तर पर अधिकांश चिकित्सा सामग्री से लैस चिकित्सालय बनाये और उसमें चिकित्सक, नर्स आदि को नियुक्त करे। देश के विकास के लिए गाँवों की सुरक्षा व् विकास जरुरी है। देश की बाह्य सुरक्षा के समान ही आंतरिक सुरक्षा भी जरुरी है तभी ‘स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत’ की उक्ति सार्थक होगी।

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कोरोना वायरस संक्रमण गाँवों में पसार रहा पांव, चिकित्सा संसाधनों की है कमी

छपरा (बिहार): कोरोना महामारी अब गाँवों में भी पैर पसारने लगी है। देश के अधिकांश गांवों में संक्रमण की दर तेजी से बढ़ रही है, जो चिंता का विषय है क्योकि गाँवों में स्वास्थ्य सेवा खुद बीमार है। शहर की तुलना में गाँवों का विकस न के बराबर है और बिहार के गाँवों की हालत […]

छपरा (बिहार): कोरोना महामारी अब गाँवों में भी पैर पसारने लगी है। देश के अधिकांश गांवों में संक्रमण की दर तेजी से बढ़ रही है, जो चिंता का विषय है क्योकि गाँवों में स्वास्थ्य सेवा खुद बीमार है। शहर की तुलना में गाँवों का विकस न के बराबर है और बिहार के गाँवों की हालत अधिक नाजुक है। महंगाई और बेरोजगारी ने पहले ही सबकी कमर तोड़ दी है। रोजगार के अवसर नहीं है। सरकारी रिकार्ड में कोरोना भले ही नियंत्रित दिख रहा है, मगर गाँव के गाँव बीमार हैं। हर परिवार में कोई न कोई सर्दी, खांसी, बुखार, बदन दर्द और कमजोरी का शिकार है। इन लोगों को स्वास्थ्य सेवाएँ ठीक से नहीं मिल पाती। आर्थिक दृष्टि से कमजोर होने के कारण ये अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए कुछ खा-पी नहीं सकते हैं। न तो कोविड-19 के वायरस से खुद को बचाए जाने के उपायों के बारे में इन्हें जानकारी है। अपनी जाँच भी ये नहीं करा सकते, क्योंकि इसके लिए उन्हें शहर की रुख करना होगा, जो खर्चीला है। गाँव में जो भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं उनमे अधिकांश में चिकित्सक, नर्स, दवा और चिकित्सा सामग्री की किल्लत है। गाँव के वार्ड कमिश्नर की भूमिका भी संतोषजनक नहीं है। जन प्रतिनिधियों को गाँव जाने की फुर्सत नहीं हैं। फिर वहां उनका राजसी तरीके से स्वागत भी तो नहीं होगा न।

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