गोस्वामी तुलसीदास जी हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) में लिखते हैं, “अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस बर दीन्ही जानकी माता” अर्थात हनुमान जी महाराज आठ सिद्धियों और नौ निधियों के अधिकारी देव हैं, दाता हैं। यह शक्ति उन्हें लक्ष्मी स्वरूपा जगतमाता जानकी से प्राप्त हुई थी।
ये आठ सिद्धियां हैं- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशत्व और वशित्व। अन्य की चर्चा फिर कभी करेंगे, पर इसमें जो छठवीं सिद्धि है प्रकाम्य, उसे प्राप्त कर लेने वाला साधक दूसरों के मनोभावों को सहजता से पढ़ लेता है। बिना अभिव्यक्त किये ही उसके मन की बातें जान लेता है।
प्रकाम्य सिद्धि के अधिकारी देव हनुमान जी महाराज हैं, वे ही हनुमान जी महाराज जो बागेश्वर धाम में पूजे जाते हैं। और धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उन्ही के सेवक हैं। दूसरों के मन में चल रहे प्रश्नों को जानने का गुण उन्हें इसी सिद्धि से आया है।
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को यह सिद्धि कितनी प्राप्त है यह मुझे ज्ञात नहीं, पर ऐसी सिद्धि लोग प्राप्त करते रहे हैं इसकी लम्बी परम्परा रही है। यह सिद्धि प्राप्त करने वाले वे न पहले व्यक्ति हैं और न ही अंतिम।