हिंदुओं की आस्था के केंद्र यमुनोत्री धाम (Yamnotri Dham) यमुनोत्तरी हिमनद से 5 मील नीचे दो वेगवती जलधाराओं के मध्य एक कठोर शैल पर है। बांदरपूंछ के पश्चिमी छोर के एक संकरे स्थान पर पवित्र यमुनाजी का मंदिर (Yamunaji ka Mandir) है। परंपरागत रूप से यमुनोत्री (Yamnotri) चार धाम यात्रा (Char Dham Yatra) का पहला पड़ाव है। जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर की चढ़ाई पर यमुनोत्री स्थान है। यहां पर स्थित यमुना मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर बांदरपूंछ चोटी के पश्चिमी किनारे पर स्थित है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना सूर्यदेव की बेटी थी और यम उनका बेटा था। यही वजह है कि यम अपनी बहन यमुना में श्रद्धापूर्वक स्नान किए हुए लोगों के साथ सख्ती नहीं बरतता है। यमुना का उदगम स्थल यमुनोत्री से लगभग एक किलोमीटर दूर 4,421 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोबत्री ग्लेशियर है।
यमुनोत्री मंदिर के समीप कई गर्म पानी के स्रोत हैं, जो विभिन्न पूलों से होकर गुजरते हैं। इनमें से सूर्य कुंड प्रसिद्ध है। कहा जाता है अपनी बेटी को आर्शीवाद देने के लिए भगवान सूर्य ने गर्म जलधारा का रूप धारण किया। श्रद्धालु इसी कुंड में चावल और आलू कपड़े में बांधकर कुछ मिनट तक छोड़ देते हैं, जिससे यह पक जाता है। तीर्थयात्री पके हुए इन पदार्थों को प्रसादस्वरूप घर ले जाते हैं। सूर्य कुंड के नजदीक ही एक शिला है जिसको ‘दिव्य शिला’ के नाम से जाना जाता है। तीर्थयात्री यमुना जी की पूजा करने से पहले इस दिव्य शिला का पूजन करते हैं।
इसके नजदीक ही ‘जमुना बाई कुंड’ है, जिसका निर्माण आज से कोई सौ साल पहले हुआ था। इस कुंड का पानी हल्का गर्म होता है जिसमें पूजा के पहले पवित्र स्नान किया जाता है। यमुनोत्री के पुजारी और पंडा पूजा करने के लिए गांव खरसाला से आते हैं जो जानकी बाई चट्टी के पास है। यमुनोत्री मंदिर नवंबर से मई तक खराब मौसम की वजह से बंद रहता है।