एक नए विश्लेषण से यह पता लगता है कि कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल (सीडीआर) तकनीक के कम से कम इस्तेमाल और सस्टेनेबिल तरीक़े को अपनाकर अगर हम ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना चाहते हैं तो 2030 तक पांच गुना तेज़ दर से हमें 1.5 टेरा वाट (TW) नई विंड और सोलर ऊर्जा क्षमता को स्थापित करने की ज़रुरत है। वैश्विक पवन और सौर क्षमता को इस दशक के अंत तक लगभग 10 TW तक बढ़ाने की ज़रुरत है। साल 2022 में यह 2 TW थी । अगर हाल की क्षमता वृद्धि में तेज़ी बनी रहती है तो यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
क्लाइमेट एनालिटिक्स में पॉलिसी प्रमुख, क्लेयर फायसन कहती हैं कि, “यूरोपीय संघ से लेकर सीओपी प्रेसीडेंसी तक हर कोई एक वैश्विक रिन्यूएबिल्स लक्ष्य स्थापित करने का आह्वान कर रहा है, लेकिन यह नेट ज़ीरो प्राप्त करने के लिए सबसे सुरक्षित मार्ग पर आधारित होना चाहिए। हमने यह दिखाया है कि अगर दुनिया 2030 तक जीवाश्म उपयोग में 40% की कटौती के साथ-साथ नई विंड और सोलर एनर्जी को पांच गुना बढ़ाकर कम से कम 1.5 TW प्रति वर्ष कर देती है, तो हमें भविष्य में कार्बन डाइऑक्साइड हटाने की ऐसी संभावित मात्रा पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा जो टिकाऊ या सस्टेनेबिल नहीं हो।”
अध्ययन उन प्रमुख लक्ष्यों को साफ़ तौर से बताता है जो 2030 तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए दुनिया को हासिल करने की ज़रुरत है। इन में इस दशक में रिन्यूएबिल एनर्जी को तेज़ी से वैश्विक एनर्जी मिश्रण में 70% तक बढ़ाना, वैश्विक उत्सर्जन को 2030 तक आधा करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में प्रति वर्ष 8% की कटौती करना और जलवायु कार्रवाई के लिए इस महत्वपूर्ण दशक में वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में 34% कटौती करना शामिल है। एनर्जीक्षेत्र में मीथेन उत्सर्जन को और भी तेज़ी से, 66% तक, कम करने की आवश्यकता होगी।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
1. 2030 तक 1.5 TW/वर्ष से अधिक नई पवन और सौर क्षमता स्थापित करें
2. 2030 तक बिजली उत्पादन में कम से कम 70% नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त करना
3. 2030 तक जीवाश्म ईंधन उत्पादन में लगभग 40% की कटौती – प्रति वर्ष 6%
4. 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को आधा करना, प्रति वर्ष 8% की वार्षिक कटौती करना
5. इस दशक में मीथेन उत्सर्जन में 34% की कटौती और ऊर्जा क्षेत्र में मीथेन
क्लाइमेट एनालिटिक्स में एनर्जी एंड क्लाइमेट एनालिस्ट डॉ. नील ग्रांट कहते हैं कि,”हमारा तरीक़ा प्रौद्योगिकियों और लागतों पर केवल सबसे अद्यतित जानकारी के साथ नवीनतम वैश्विक मार्ग लेती है। हम जानते हैं कि विंड और सोलर एनर्जीतेज़ी से बढ़ सकते हैं और जीवाश्म ईंधन की क़ीमत से कम हो सकते हैं। हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि वे इस दशक में अत्यावश्यक ज़रुरत के एक बड़े हिस्से को पूरा कर सकते हैं, तो आइए उनके रोलआउट को फ़ास्टट्रैक करें।”
आईपीसीसी एआर6 डाटाबेस के सभी रास्ते ,पेरिस समझौते के साथ पूरी तरह से अनुरूप या संगत नहीं हैं। अध्ययन के तरीक़े नवीनतम 1.5-संरेखित पाथवे / मार्गों पर केंद्रित है जो सस्टेनेबिलिटी की बाधाओं को एकीकृत करती/करते है/हैं, और पुराने विश्लेषणों और जो जोखिम भरे अनुमानों पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं उन को को फ़िल्टर करती/करते है/हैं। नतीजतन, अध्ययन में पाया गया है कि 2030 तक वैश्विक बिजली/ऊर्जा का सिर्फ 0.1% सीसीएस से आएगा।