विचार

बिना कानूनी बाध्यता के मौजूदा नेट ज़ीरो संकल्पों से दुनिया नहीं हासिल कर पाएगी जलवायु लक्ष्य

वैश्विक स्तर पर 90% नेट ज़ीरो (Net Zero) ग्रीनहाउस गैस एमिशन (Greenhouse Gas Emissions) प्रतिज्ञाओं के पूर्ण कार्यान्वयन के बाद भी अपेक्षित सफलता मिलना मुश्किल है। उनके मुताबिक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए और अधिक मजबूत उपायों की तत्काल आवश्यकता है।

प्रतिष्ठित जर्नल साइंस में प्रकाशित, इंपीरियल कॉलेज लंदन के नेतृत्व में हुए एक नए अध्ययन से पता चलता है कि जब तक कानूनी रूप से और अधिक बाध्यकारी और सुनियोजित नेट ज़ीरो नीतियाँ नहीं होंगी, दुनिया के तमाम देश अपने प्रमुख जलवायु लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाएंगे।

शोधकर्ताओं ने पाया कि वैश्विक स्तर पर 90% नेट ज़ीरो (Net Zero) ग्रीनहाउस गैस एमिशन (Greenhouse Gas Emissions) प्रतिज्ञाओं के पूर्ण कार्यान्वयन के बाद भी अपेक्षित सफलता मिलना मुश्किल है। उनके मुताबिक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए और अधिक मजबूत उपायों की तत्काल आवश्यकता है।

अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता, इंपीरियल में ग्रांथम इंस्टीट्यूट के शोध के निदेशक प्रोफेसर जोएरी रोगेल ने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए इस बात पर ज़ोर दिया कि लक्ष्य निर्धारित करने के साथ साथ प्रयास उन लक्ष्यों को हासिल करने पआर भी होना चाहिए। उन्होंने कहा, “जलवायु नीति महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने से लेकर उन्हें लागू करने की ओर बढ़ रही है। हालांकि, हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश देश कोई खास उम्मीद नहीं देते हैं कि वे अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करेंगे। दुनिया अभी भी एक उच्च जोखिम वाले जलवायु ट्रैक पर है, और हम एक सुरक्षित जलवायु भविष्य प्रदान करने से बहुत दूर हैं।”

पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे और आदर्श रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्राथमिक रणनीति होनी चाहिए कि जितनी जल्दी हो सके “नेट ज़ीरो” ग्रीनहाउस गैस एमिशन कि स्थिति हासिल कि जा सके और किसी भी तरह के शेष एमिशन को प्रभावी ढंग से ऑफसेट किया जा सके।

अधिकांश देशों ने नेट ज़ीरो लक्ष्य और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) निर्धारित किए हैं, जो गैर-बाध्यकारी राष्ट्रीय योजनाएँ हैं और जो सिर्फ जलवायु क्रियाओं का प्रस्ताव करती हैं। हालांकि ये योजनाएं पूरी तरह से लागू होने पर वार्मिंग को 1.5-2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का मौका देती हैं, लेकिन विज्ञान मॉडल भविष्यवाणी करते हैं कि नेट ज़ीरो प्रतिज्ञाओं के कार्यान्वयन के बिना, तापमान वृद्धि साल 2100 तक 2.5-3 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकती है।

इन परिदृश्यों की संभावना के बारे में अनिश्चितता को कम करने के लिए, यूके, ऑस्ट्रिया, यूएसए, नीदरलैंड, जर्मनी और ब्राजील के वैज्ञानिकों को शामिल करने वाली शोध टीम ने 0.1% से अधिक के वैश्विक ग्रीनहाउस गैस एमिशन लिए जिम्मेदार प्रत्येक देश को शामिल करते हुए 35 नेट ज़ीरो नीतियों का एक विश्वास मूल्यांकन किया।

विश्वास मूल्यांकन तीन नीतिगत विशेषताओं पर आधारित था: क्या नीति कानूनी रूप से बाध्यकारी थी, क्या एक विश्वसनीय नीति योजना कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करने के लिए मौजूद है, और क्या अल्पकालिक योजनाएं अगले दशक में एमिशन को नीचे की ओर ले जाएंगी?

निष्कर्षों से पता चला कि लगभग 90% नेट ज़ीरो नीतियों ने “कम” या “बहुत कम” आत्मविश्वास हासिल किया, जिसमें चीन और अमेरिका जैसे प्रमुख उत्सर्जक शामिल हैं, जो सामूहिक रूप से वर्तमान एमिशन के 35% से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि, यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम और न्यूजीलैंड सहित कुछ क्षेत्रों ने उच्च आत्मविश्वास का भी स्कोर प्राप्त किया।

एक आधार के रूप में विश्वास मूल्यांकन का उपयोग करते हुए, अनुसंधान दल ने भविष्य के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और परिणामी तापमान के लिए पांच परिदृश्यों का मॉडल तैयार किया। ये परिदृश्य केवल वर्तमान नीतियों (सबसे रूढ़िवादी परिदृश्य) पर विचार करने से लेकर सभी नीतियों और NDCs (सबसे क्षमाशील परिदृश्य) के पूर्ण कार्यान्वयन तक के हैं।

सबसे रूढ़िवादी परिदृश्य ने 1.7-3 डिग्री सेल्सियस की तापमान सीमा और 2.6 डिग्री सेल्सियस के औसत अनुमान का अनुमान लगाते हुए सबसे बड़ी अनिश्चितता प्रदर्शित की। इसके विपरीत, सबसे आशावादी परिदृश्य ने 1.7 डिग्री सेल्सियस के औसत अनुमान के साथ 1.6-2.1 डिग्री सेल्सियस की सीमा का अनुमान लगाया। हालाँकि, बड़ी संख्या में कम-विश्वास वाली नीतियों को देखते हुए, पेरिस समझौते में उल्लिखित लक्ष्यों को प्राप्त करना अतिरिक्त प्रयासों के बिना इच्छाधारी सोच है।

वाशिंगटन डीसी में विश्व संसाधन संस्थान से सह-लेखक टैरिन फ्रांसेन और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय-बर्कले में ऊर्जा और संसाधन समूह ने कार्यान्वयन के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “जलवायु परिवर्तन लक्ष्य अपने स्वभाव से महत्वाकांक्षी हैं – इसलिए इस बात का कोई मतलब नहीं है कि हम एक पूर्व निर्धारित निष्कर्ष को ही अपना लक्ष्य मान कर काम करें। ध्यान अगर किसी बात पर देना है तो वो है इन योजनाओं के कार्यान्वयन पर।”

यह अध्ययन इस बात पर रौशनी डालता है कि वक़्त कि मांग है कि अब कानूनी रूप से बाध्यकारी नेट ज़ीरो नीतियों की संख्या में वृद्धि हो। इसके अलावा, देशों को विभिन्न क्षेत्रों के लिए स्पष्ट नेट ज़ीरो नीति कार्यान्वयन मार्ग विकसित करने चाहिए, आवश्यक विशिष्ट परिवर्तनों की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए और तदनुसार कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए।

इंपीरियल में सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल पॉलिसी के सह-लेखक डॉ. रॉबिन लेम्बोल ने भी लक्ष्यों को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “लंबी अवधि की योजनाओं को अपनाना सुनिश्चित करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य बनाना महत्वपूर्ण है। हमें ठोस कानूनी रूप से बाध्यकारी नीतियाँ देखने की जरूरत है क्योंकि तब ही हमें विश्वास हो पाएगा कि कार्यवाही होगी।”

इस रिपोर्ट में इंपीरियल कॉलेज लंदन, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस, द वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया-बर्कले, नीदरलैंड एनवायरनमेंटल असेसमेंट एजेंसी, इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंटल स्टडीज, न्यूक्लाइमेट, इंस्टीट्यूट, कोपर्निकस इंस्टीट्यूट ऑफ सस्टेनेबल डेवलपमेंट, और यूनिवर्सिडेड फेडरल डो रियो डी जनेइरो सहित दुनिया भर के प्रतिष्ठित संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल हैं। इन सब ने साथ आ कर वैश्विक नेट ज़ीरो नीतियों और जलवायु परिवर्तन शमन पर उनके संभावित प्रभाव का व्यापक मूल्यांकन प्रदान करने के लिए इस अध्ययन में सहयोग किया है।