प्रयागराज: इलाहाबाद (Allahabad) हाईकोर्ट ने कहा है कि एक मुस्लिम ससुर को कोई हक नहीं है कि वो अपनी बहू को ससुराल में रहने के लिए कहे। कोर्ट ने मोहम्मद हाशिम नाम के शख्स की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में हाशिम ने मांग की थी कि उसकी बहू दो साल से मायके में रह रही है। उसके माता-पिता उसे ससुराल नहीं आने दे रहे हैं। ऐसे में उसको ससुराल आने के लिए कोर्ट आदेश दे।
जस्टिस शमीम अहमद की अदालत ने कहा कि एक मुस्लिम ससुर को बहू की कस्टडी की मांग करने वाली बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने का ही कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि महिला का शौहर कुवैत में अपनी आजीविका कमाने के लिए रह रहा है। ऐसे में संभव है कि वह खुद ससुराल में रहना नहीं चाहती हो। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शिकायत है, तो बीवी के पास उचित मंच से संपर्क करने का उपाय है, लेकिन ससुर के पास ये हक नहीं है।
हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि मुस्लिम कानून के तहत शादी एक अनुबंध है और पति अपनी बीवी की सुरक्षा, आश्रय और सभी इच्छाओं और रोजाना की जरूरतों को पूरा करने के लिए बाध्य है। ऐसे में जब वह कुवैत में है, उसकी कोई शिकायत होगी तो उसे सुना जा सकता है।