धर्म-कर्म

अम्मान मंदिर: यहीं माता सीता को रावण ने बंदी बनाकर रखा था

सीता माता का अम्मान मंदिर (Amman Temple) श्रीलंका (Sri Lanka)के न्युवार इलिया नामक पर्वत पर स्थित है। जिस तरह भगवान राम (Lord Rama) भारत के लोगों के लिए पूज्य हैं, उसी तरह उसी तरह माँ श्रीलंका में पूज्य है। खास बात ये है कि माँ सीता के मंदिर के अलावा यहाँ कई और मंदिर और लेकिन सिर्फ माँ सीता के मंदिर के आसपास बहुत अधिक वानर आज भी पहरा देते नजर आते हैं।

सीता माता का अम्मान मंदिर (Amman Temple) श्रीलंका (Sri Lanka)के न्युवार इलिया नामक पर्वत पर स्थित है। जिस तरह भगवान राम (Lord Rama) भारत के लोगों के लिए पूज्य हैं, उसी तरह उसी तरह माँ श्रीलंका में पूज्य है। खास बात ये है कि माँ सीता के मंदिर के अलावा यहाँ कई और मंदिर और लेकिन सिर्फ माँ सीता के मंदिर के आसपास बहुत अधिक वानर आज भी पहरा देते नजर आते हैं।

माँ सीता के मंदिर के पीछे एक चट्‌टान पर महाबली हनुमान के पैरों के निशान हैं। यहाँ एक चौकाने वाली बात ये है कि मंदिर के पास ही एक बेहद खास किस्म का अशोक का पेड़ है। रामायण के अनुसार, रावण की अशोक वाटिका नुवारा एलिया के घुमावदार ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के बीच घनी हरियाली में स्थित है। यहीं पर रावण ने माँ सीता का हरण करके बंदी बनाकर रखा था।

ऐसा कहा कहा जाता है कि यहीं माता सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी। माता सीता के अग्नि परीक्षा देने के कारण जलने वाली अग्नि से यहां की मिट्‌टी काली राख की परत जैसी हो गई है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर अंत तक हनुमान के विभिन्न वीर योद्धा मंदिर की रक्षा करते हैं। श्रीलंका में हर महीने माँ की पूजा का एक दिन निश्चित है। इस दिन सीता अम्मा मंदिर में भारी संख्या में लोग माँ के दर्शन करने आते हैं।

इस मंदिर के पास एक झरना है जिसे, सीता झरना कहा जाता है। मान्यता के मुताबिक कि इसी झरने में एक स्थल पर सीता जी स्नान करती थी। यहां के लोगों द्वारा बताया गया है कि झरने में एक स्थान ऐसा भी है जहां का जल स्वाद रहित है। जिसके बारे ये क्था प्रचलित है कि ऐसा सीता जी द्वारा दिए गए शाप के कारण है। इसके अलावा झरने के किनारे एक चट्टान है जिसे ‘सीता साधना’ कहा जाता है।

बताया जाता है नदी के किनारे लगभग एक शताब्दी पूर्व तीन मूर्तियां मिली थी, जिन्हें श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण जी के लंका युद्ध मानकर इसी मंदिर में स्थापित कर दिया गया है। इससे ये संकेत मिलता है कि स्थानीय श्रद्धालुओं द्वारा इन मूर्तियों की प्राचीनकाल से पूजा-अर्चना की जा रही है।