नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने देश भर की अदालतों को सुनवाई के दौरान ‘बेहद सतर्क’ होकर टिप्पणी करने का आदेश दिया है। बता दें कि इन दिनों मामलों की सुनवाई लाइव प्रसारित हो रही है, जिसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के दौरान दिए गए बयानों से काफी प्रभाव पड़ता है और प्रतिष्ठा को बड़ी चोट लग सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च को ज्यूडिशयल सिस्टम में ट्रांसपेरेंसी (Transparency in judicial system) की बात करते हुए कहा कि लाइव और वर्चुअल सुनवाई आ जाने के बाद से काफी पारदर्शिता देखने को मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने इस सिस्टम को ‘पहले कभी नहीं देखी गई पारदर्शिता’ करार दिया है। साथ ही मामलों की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट और निचली अदालतों को सोच समझ कर बयान देने के निर्देश दिए हैं।
न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह की पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा पिछले साल जुलाई में दिए गए एक आदेश को रद्द करते हुए अपने फैसले में ये टिप्पणियां कीं। इसमें एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के खिलाफ एक जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान कुछ प्रतिकूल टिप्पणियां की गई थीं।
बता दें कि हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश ने सीबीआई को एक निर्देश जारी कर याचिकाकर्ता के पिछले रिकॉर्ड की जांच करने का आदेश दिया गया था। पीठ ने उनके फैसले को रद्द करते हुए कहा-अदालती कार्यवाही के लाइव प्रसारण के कारण अदालत में दी गई टिप्पणियों के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं और जैसा कि इस मामले में देखा जा सकता है, इसमें शामिल पक्षों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच सकता है।
पीठ ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में अदालतों के लिए यह आवश्यक है कि वे शामिल पक्षों के खिलाफ टिप्पणी करते समय ज्यादा सतर्क रहें। उन्होंने कहा, अदालत कोई भी टिप्पणी तभी करे जब यह उचित मंच पर उचित औचित्य के साथ न्यायिक उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा हो।
इस मुद्दे से निपटने के दौरान कि क्या जमानत की कार्यवाही के दौरान हाई कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी को समाप्त किया जा सकता है, पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने पिछले साल जुलाई में दो अलग-अलग मौकों पर अपीलकर्ताओं के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की थी, जिसके बारे में कहा जाता है कि जमानत की कार्यवाही के दौरान उनकी प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान पहुँचाया।
पीठ ने कहा कि अदालतों को तब अभियुक्तों के खिलाफ टिप्पणी पारित करने में अत्यंत सतर्क होना चाहिए।