धर्म-कर्म

इकलौता मंदिर, जहां देवी की पीठ की होती है पूजा

राजस्थान के बाराँ जिले की अंता तहसील में स्थित सोरसन गाँव में ब्रह्माणी माता का मंदिर विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहाँ पर देवी की पीठ की पूजा-अर्चना होती है। कहा जाता है कि ब्रह्माणी माता का प्राकट्य यहाँ पर 700 वर्ष पूर्व हुआ था। तब यह देवी खोखर गौड़ ब्राह्मण पर प्रसन्न हुई थी, इसलिए आज भी खोखरजी के वंशज ही मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं।

राजस्थान (Rajasthan) के बाराँ जिले की अंता तहसील में स्थित सोरसन गाँव में ब्रह्माणी माता का मंदिर (Brahmani Mata Mandir) विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहाँ पर देवी की पीठ की पूजा-अर्चना होती है। कहा जाता है कि ब्रह्माणी माता का प्राकट्य यहाँ पर 700 वर्ष पूर्व हुआ था। तब यह देवी खोखर गौड़ ब्राह्मण पर प्रसन्न हुई थी, इसलिए आज भी खोखरजी के वंशज ही मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं।

एक कथा यह भी है कि माना जी नामक बोहरा अपने खेत में काम कर रहे थे तब उनकी पत्नी उनके लिए खाना लेकर आई। तभी खेत में उन्हें ठोकर लग गई और पारस पत्थर निकल आया, जिससे हल की लोहे की सभी वस्तुएँ स्वर्ण की हो गई। जब माना जी को यह पता चला तो वे उस पारस पत्थर को लेकर घर आ गए। रात में देवी ने स्वप्न में आकर उन पर प्रसन्न होने की बात कही ।

धीरे-धीरे माना जी की प्रसिद्धि चारो ओर फैलने लगी तो गुप्तचरों द्वारा यह बात राजा तक पहुँच गई कि माना जी के पास पारस पत्थर है। राजा ने उन्हें दरबार में हाजिर होने के लिए संदेशा भेजा, लेकिन वे नहीं आए। इसपर राजा ने उन्हें पकड़कर लाने के लिए अपने सैनिक भेज दिए। माना जी को जब इस विपत्ति का पता चला तो उन्होंने वह पारस पत्थर पास में स्थित कुंड में फेंक दिया। उधर, उनकी पुत्रवधू ने अचानक आई इस विपत्ति का कारण देवी को मानकर अपशब्द कह दिए, जिससे देवी नाराज हो गई और क्रोधित होकर वहाँ से जाने लगी। चूंकि जाते समय देवी की पीठ माना जी की तरफ थी, इसलिए पीछे से आवाज लगाते हुए उन्होंने कहा कि देवी! मैं तीर्थयात्रा के लिए जा रहा हूँ। जब तक मैं लौटकर न आऊँ तब तक यहीं रहो, मेरे लौटकर आने के बाद चले जाना।

कहा जाता है कि माना जी तीर्थयात्रा से कभी लौटकर नहीं आये और वचनबद्ध होने के कारण देवी वहीं विराजमान हो गई। माना जाता है कि तबसे यहाँ पर देवी की पीठ ही पूजी जाने लगी। आज भी यहाँ पर 400 वर्षों से अखण्ड ज्योति अबाध रूप से जल रही है। यहाँ मंदिर परिसर में एक परम्परा यह भी है कि एक गुजराती परिवार के सदस्य ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और मीणों के राव भाट परिवार के सदस्य ही नगाड़े बजाते हैं।

यह मंदिर चारों ओर से परकोटे से घिरा हुआ है। यह गुफा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि मंदिर के गर्भगृह में एक विशाल चट्टान है। जिस पर बनी चरण चौकी पर देवी की पाषाण प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के तीन प्रवेश द्वार है, जिनमें दो लघु आकार के हैं और एक जो मुख्य प्रवेश द्वार है वह दीर्घाकार और कलात्मक है।

परिसर के मध्य स्थित देवी मंदिर में गुम्बद द्वार मण्डप और शिखर युक्त गर्भगृह है। गर्भगृह के प्रवेश द्वार की चौखट 5 गुणा 7 फुट आकार की है। देवी प्रतिमा तक जाने का मार्ग 3 गुणा 2 फुट का ही है। इसलिए इसमें झुककर ही प्रवेश करना पड़ता है। आज भी पुजारी झुककर ही पूजा करते हैं।

इस मंदिर की विशेष खासियत यह है कि यहाँ पर देवी विग्रह के अग्रभाग की पूजा न होकर पृष्ठ भाग (पीठ) की पूजा की जाती है। इसलिए यहाँ के स्थानीय निवासी इसे पीठ पुजाना भी कहते हैं। यहां प्रतिदिन देवी की पीठ पर सिंदूर लगाया जाता है और कनेर के पत्तों से श्रृंगार किया जाता है। भोग भी पीठ को ही लगाया जाता है तथा पीठ पर ही नेत्र स्थापित हैं। साथ ही रोजाना दाल-बाटी चूरमा का भोग लगाया जाता है।

यह नन्दवाना बोहरा परिवार की आराध्य देवी मानी जाती है, जिसमें माना जी नामक बोहरा का जन्म हुआ था। साथ ही गौतम ब्राह्मण भी इसे अपनी कुलदेवी मानकर पूजा करते हैं। मंदिर के परिक्रमा स्थल के मध्य में देवी के विग्रह का मुख भी है, जहाँ पर भी लोग परिक्रमा देते समय ढोक लगाते है। मंदिर के दायीं ओर एक प्राचीन शिव मंदिर और नागा बाबाओं की समाधियाँ भी स्थित हैं। यहाँ आने वाले लोग मन्नत माँगते हैं और जिसकी मन्नत पूरी हो जाती है तो कोई पालना या झूला चढ़ाता है तो कोई चाँदी का छत्र ।